क्या आपने देखे हैं बांग्लादेश के ये रंग-बिरंगे रिक्शे
बांग्लादेश के पारंपरिक रंगीन रिक्शों को यूनेस्को ने अपनी "मानवता की सांस्कृतिक धरोहर" सूची में शामिल कर लिया है. संस्था का उद्देश्य है कि कला के इस रूप को आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बचाकर रखा जा सके.
यूनेस्को से मान्यता
यूनेस्को ने "ढाका में रिक्शों और रिक्शा पेंटिंग' को अपनी "मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की प्रतिनिधि सूची" में डाल दिया है. संस्था का कहना है कि ये खास रिक्शे "शहरी लोक कला के एक रूप में शहर की सांस्कृतिक परंपरा का प्रमाणित हिस्सा" बन गए हैं.
ढाका की गलियों में बिखरे रंग
रिक्शों पर दिखाए गए दृश्य काल्पनिक भी हैं और सजीव भी. चित्रकार शहर के जीवन को अपनी कल्पना के जरिए दिखाते हैं. यूनेस्को ने इन रंगीन रिक्शों को "ढाका के शहरी जीवन का प्रतीक" बताया है.
कला, धर्म और संस्कृति का मिलन
चित्रकारों को इन रिक्शा-चित्रों को बनाने की प्रेरणा बांग्लादेश की सांस्कृतिक पहचान के पहलुओं से भी मिलती है. इस चित्र में हिंदुओं के भगवान कृष्ण और उनकी भक्त मीरा को दिखाया गया है. कृष्ण को उनके लोकप्रिय छवि के मुताबिक नीले रंग का दिखाया गया है. बांग्लादेश एक मुस्लिम-बहुल देश है, लेकिन वहां कला में हिंदू प्रतीक भी लोकप्रिय हैं.
सीमाएं लांघने वाली कला
इन रिक्शों पर दिखने वाले चित्र कई बार ढाका या बांग्लादेश की संस्कृति से आगे के भी होते हैं, जैसे भारत के ताजमहल का यह चित्र. साथ में बने हंस कल्पना के इस्तेमाल को दर्शाते हैं.
भविष्य के लिए
ढाका में करीब 70 सालों से रिक्शा पेंटिंग के जरिए चित्रकारों को आजीविका मिल रही है. लेकिन कई कलाकारों का रोजगार अब खतरे में है. यूनेस्को की दक्षिण एशिया निदेशक ने कहा कि संस्था, समुदायों और अधिकारियों के साथ मिलकर "आने वाली पीढ़ियों के लिए इस जिंदा धरोहर को जीवित रखने के अभिनव और सस्टेनेबल तरीके" तलाश करेगी. (जोआना बनर्जी-फिशर)