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अल्बानीजी का दौरा मिटा पाएगा ऑस्ट्रेलिया और भारत की झिझक?

विवेक कुमार, सिडनी से
८ मार्च २०२३

ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी बड़ी उम्मीदों के साथ अगले दो दिन भारत में हैं. इस दौरे से ऐतिहासिक बाधाओं को दूर करने और एक दूसरे को लेकर झिझक मिटाने की उम्मीद की जा रही है.

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ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजीतस्वीर: Martin Ollman/Getty Images

छह साल पहले ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल भारत दौरे पर गए थे और नाराज होकर लौटे थे क्योंकि भारत मुक्त व्यापार समझौते के लिए राजी नहीं हो रहा था. तब से गंगा में बहुत पानी बह चुका है. भारत और ऑस्ट्रेलिया के संबंध ऐतिहासिक रूप से सबसे अच्छे दौर से गुजर रहे हैं. ऐसे वक्त में ऑस्ट्रेलिया के मौजूदा प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी भारत में हैं और इस दौरे से दोनों देशों को संबंधों की नई ऊंचाइयां छूने की उम्मीद होना लाजमी है.

एंथनी अल्बानीजी एक लंबा-चौड़ा प्रतिनिधिमंडल लेकर नई दिल्ली पहुंचे हैं. इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व व्यापार और पर्यटन मंत्री डॉन फैरल को सौंपा गया है, जो एक तरह से प्रतीक है कि इन दोनों ही क्षेत्रों में ऑस्ट्रेलिया को भारत से बड़ी उम्मीदें हैं. साथ ही, संसाधन मंत्री मैडलिन किंग की मौजूदगी बताती है कि अपने विशाल कुदरती संसाधनों के लिए नए बाजार खोजने में भारत की भूमिका को ऑस्ट्रेलिया किस तरह देख रहा है.

यह दौरा तब हो रहा है जबकि भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच ऐतिहासिक इकनॉमिक कोऑपरेशन ऐंड ट्रेड एग्रीमेंट (एक्टा) हो चुका है.पिछले साल मार्च में इस समझौते पर दस्तखत हुए थे और दिसंबर में यह लागू हो गया था. बीते दस साल में भारत का किसी विकसित अर्थव्यवस्था के साथ यह पहला व्यापार समझौता है जिससे एक पांच साल में भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार 27.5 अरब डॉलर यानी लगभग 20 खरब रुपये के मौजूदा स्तर से बढ़कर 45-50 अरब डॉलर होने की उम्मीद है.

इस समझौते के तहत ऑस्ट्रेलिया से भारत को निर्यात होने वाले 85 फीसदी उत्पाद पूरी तरह कर मुक्त हो गए हैं. अगले छह साल में इनकी संख्या 90 फीसदी हो जानी है. बदले में ऑस्ट्रेलिया ने 90 फीसदी भारतीय उत्पादों को करमुक्त कर दिया है, जो आने वाले चार साल में सौ फीसदी हो जाएगा.

क्या हैं दौरे से उम्मीदें?

भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों की विशेषज्ञ और न्यूलैंड ग्लोबल ग्रुप की एग्जेक्यूटिव डाइरेक्टर नताशा झा भास्कर कहती हैं कि अल्बानीजी के इस दौरे में दोनों देशों के पास ऐतिहासिक बाधाओं को दूर करने का मौका है. डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने कहा, "इस दौरे से उन बहसों को उभारा जा सकता है, जो ऐतिहासिक अवधारणाओं और झिझकों को चुनौती दे सकें. कॉरपोरेट ऑस्ट्रेलिया नए भारत के बढ़ते रणनीतिक और भू-आर्थिक प्रभावों में बहुत दिलचस्पी ले रहा है. ऐसा ही जोश भारत की तरफ से भी दिखाए जाने की जरूरत है.”

इस यात्रा का ऑस्ट्रेलिया के लिए कितना आर्थिक महत्व है, इसका अंदाजा प्रधानमंत्री के साथ जा रहे प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों से भी हो सकता है. इस प्रतिनिधिमंडल में ऑस्ट्रेलियन स्टॉक एक्सचेंज (एएसएक्स) के प्रतिनिधि शामिल हैं जो मैक्वायरी ग्रुप, फोर्टेस्क्यू, कांतस एयरलाइंस, वेसफार्मर्स, कॉमनवेल्थ बैंक, एएनजेड बैंक और ओरिका जैसी सबसे विशाल कंपनियों समेत देश के 82 फीसदी शेयर मार्किट का प्रतिनिधित्व करता है. इसके अलावा सेंटर फॉर ऑस्ट्रेलिया इंडिया रिलेशंस, बिजनस काउंसिल ऑफ ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रेलियन चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्रीज, मिनरल काउंसिल ऑफ ऑस्ट्रेलिया, एक्सपोर्ट फाइनेंस ऑस्ट्रेलिया और ऑस्ट्रेलियन ट्रेड ऐंड इन्वेस्टमेंट कमीशन के प्रतिनिधि भी भारत पहुंचे हैं.

ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े विश्वविद्यालय भी भारत में बेहद दिलचस्पी ले रहे हैं. इस दौरे पर मेलबर्न यूनिवर्सिटी, डीकिन यूनिवर्सिटी, विक्टोरियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और यूनिवर्सिटीज ऑस्ट्रेलिया जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के प्रतिनिधि भी भारत में हैं.

नताशा झा भास्कर कहती हैं कि अल्बानीजी के भारत दौरे पर कई अहम सवालों के जवाब मिलने की उम्मीद होगी. वह कहती हैं, "कई अहम सवाल हैं, मसलन क्या ऑस्ट्रेलिया की विशाल कंपनियां भारत में अपनी सक्रिय मौजूदगी बना सकती हैं और आर्थिक संबंधों को एक नई रफ्तार दे सकती हैं? क्या ऑस्ट्रेलियाई कंपनियां अपनी आय और उत्पादकता बढ़ाने के लिए लंबी अवधि का निवेश करने जैसे कदम उठाने को तैयार होंगी?”

कितनी है गुंजाइश?

भारत अभी ऑस्ट्रेलिया का छठा सबसे बड़ा व्यापार-साझीदार है. निर्यात के मामले में भारत का नंबर चौथा और ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था के सबसे अहम क्षेत्रों में से एक, शिक्षा में भारत का योगदान दूसरे नंबर का है. दोनों देशों के बीच 1941 में ही व्यापारिक संबंधों की शुरुआत हुई थी जब भारत ने सिडनी में अपना ट्रेड ऑफिस खोला था. बाद में यह उच्चायोग में तब्दील कर दिया गया था. पहली बार 1950 में ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री सर रॉबर्ट मेंजिज ने भारत का दौरा किया था.

1968 में इंदिरा गांधी के रूप में पहली बार भारत के प्रधानमंत्री ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया था और उसके बाद से दोनों तरफ से लगातार आना-जाना होता रहा है. इसी साल मई में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर आने वाले हैं.

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इस यात्रा में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री नई दिल्ली के अलावा अहमदाबाद और मुंबई भी जाएंगे. ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया, "इस तरह की यात्राएं ऑस्ट्रेलिया-भारत संबंधों को और मजबूत करने के लिए जरूरी हैं.”

भारतीय मूल के लोग ऑस्ट्रेलिया में सबसे तेजी से बढ़ता आप्रवासी समुदाय हैं. 2016 में हुई जनगणना के मुताबिक 9,76,000 भारतीय लोग ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं जो कि उसकी आबादी का 3.8 फीसदी हैं. इनमें 6,73,000 लोग ऐसे हैं जिनका जन्म भारत में हुआ है.

भारत और ऑस्ट्रेलिया के संबंध अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी बहुत मजबूत हुए हैं. दोनों देश क्वॉड समेत कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों में सदस्य हैं. इन संगठनों के जरिए भारत की अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीतिक पहुंच तेजी से बढ़ी है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मई में क्वॉड नेताओं की बैठक में हिस्सा लेने ही ऑस्ट्रेलिया आएंगे. उसके बाद सितंबर में ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एक बार फिर भारत में होंगे जब वह जी20 देशों की बैठक में हिस्सा लेंगे.