'जलवायु परिवर्तन से बचाना सरकार की जिम्मेदारी नहीं'
१५ मार्च २०२२पिछले साल हाई स्कूल में पढ़ने वाले कुछ बच्चों की याचिका पर अदालत के फैसले को मील का पत्थर करार दिया गया. पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले समूहों ने कहा था कि यह फैसला एक ऐसा कानूनी हथियार बन सकता है जिससे जीवाश्म ईंधन वाली परियोजनाओं का सामना किया जा सके. हालांकि अब ऑस्ट्रेलिया की संघीय अदालत ने पर्यावरण मंत्री सूजन ले की ओर से की गई अपील के पक्ष में फैसला सुना दिया है.
अदालत ने कहा है कि नई परियोजना को मंजूरी देने से पहले पर्यावरण मंत्री को यह देखने की जरूरत नहीं है कि इसके कारण होन वाले जलवायु परिवर्तन से बच्चों को कितना नुकसान होगा.
जुलाई 2021 में निचली अदालत ने बच्चों की याचिका पर फैसला सुनाया था कि मंत्री का कर्तव्य है कि वह 18 साल से कम उम्र के लोगों को ऐसी "निजी चोट या मौत से बचाए" जिसका कारण "धरती के वातावरण में होने वाला कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन" बन सकता है. 17 साल की अंजलि शर्मा ने 2020 में इस मामले में कानूनी लड़ाई छेड़ी थी.
ताजा फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए अंजलि ने कहा कि मंत्री की अपील को मिली जीत से छात्र "तबाह" हो गए हैं. अंजलि ने कहा, "दो साल पहले ऑस्ट्रेलिया जल रहा था, आज पानी में डूबा है. कोयला जलाने से झाड़ियों में आग पकड़ती है और बाढ़ पहले से भी ज्यादा तबाही और मौतें ला रही है. कुछ तो बदलने की जरूरत है."
याचिकाकर्ताओं में से एक 15 साल की इजी राज-सेपिंग्स ने कहा कि कोर्ट का यह मानना कि युवा लोगों को "जलवायु संकट का बुरा असर झेलना होगा" अपने आप में अहम कदम है. हालांकि अदालत ने उस कोयला खदान से होने वाले उत्सर्जन को बच्चों पर जोखिम को बहुत थोड़ा बढ़ाने वाला बताया. याचिका डालने वाले स्कूली बच्चों ने व्हाइट हेवेन्स विकरी कोल माइन को लेकर सवाल उठाया था.
ऑस्ट्रेलिया की पर्यावरण मंत्री सूजन ले ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है. उनकी प्रवक्ता ने कहा, "मंत्री पर्यावरण मंत्रालय की अपनी जिम्मेदारी को बहुत गंभीरता से लेती हैं."
ऑस्ट्रेलिया की मैक्वेरी यूनिवर्सिटी के वकील जॉर्ज न्यूहाउस ने इस मामले पर प्रतिक्रिया दी है, "मैं निराश हूं लेकिन हैरान नहीं." उनका कहना है कि ऑस्ट्रेलिया में क्लाइमेट चेंज लिटिगेशन के मामले सफल नहीं हो सकते क्योंकि यहां यूरोप के जैसे कानून नहीं हैं. उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया के संविधान में जानबूझ कर ऐसा कोई मानवाधिकार नहीं रखा गया है. उन्होंने दूसरी यादगार फैसलों जैसे यूर्गेंडा मामले का जिक्र किया जिसमें डच नागरिकों ने जलवायु परिवर्तन को लेकर अपनी सरकार के खिलाफ कानूनी लड़ाई जीती थी. न्यूहाउस ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया में तो ऐसा होना संभव ही नहीं है.
याचिकाकर्ताओं में अंजलि शर्मा के अलावा और भी बच्चे थे. नाबालिग होने के कारण उनके साथ एक शिक्षक भी उनकी कानूनी लड़ाई में उनका साथ दे रही थीं. अब बच्चे सोच रहे हैं कि इस लड़ाई को देश की सर्वोच्च अदालत में ले जाएं या नहीं.
जलवायु और पर्यावरण से जुड़े कानूनों की विशेषज्ञ लॉरा शूजर्स ने कहा है कि इस मामले ने बहुत अहम सवाल उठाए हैं. सिडनी यूनिवर्सिटी की शूजर्स का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया में संवैधानिक रूप से मानवाधिकारों का संरक्षण ना होने के कारण "यह जलवायु परिवर्तन के मामलों के लिए एक दिलचस्प जगह बनी रहेगी." यानि आने वाले सालों में नीति निर्माता, आम जनता और वैज्ञानिकों के बीच जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों पर बार बार यह सवाल उठना तय है कि उसकी जिम्मेदारी किसी है.
आरपी/एनआर (एएफपी, एपी)