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समाज

राजदूत को ऑस्ट्रेलिया भेजने को राजी हुआ फ्रांस

७ अक्टूबर २०२१

ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस के अपने राजदूत को वापस कैनबरा भेजने के फैसले का स्वागत किया है. एक समझौता तोड़ने से नाराज फ्रांस ने पिछले महीने अपना राजदूत वापस बुला लिया था.

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तस्वीर: Brendan Eposito/POOL/AFP

फ्रांस ने अपना राजदूत ऑस्ट्रेलिया भेजने का फैसला किया है. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने इस फैसले का स्वागत किया. गुरुवार को मीडिया से बातचीत में मॉरिसन ने कहा कि ऐसा होना ही था क्योंकि दोनों देशों के संबंध एक समझौते से कहीं ज्यादा बड़े हैं.

ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस से 2016 में हुआ 60 अरब डॉलर से ज्यादा का परमाणु खरीद समझौता एकाएक तोड़ दिया था जिसके बाद नाराज फ्रांस ने अपना राजदूत वापस बुला लिया था. तब से दोनों देशों के संबंधों में लगातार तनाव बना हुआ है.

तस्वीरों मेंः सिर्फ छह देशों के पास हैं परमाणु पनडुब्बियां

मॉरिसन ने इस बात से इनकार किया कि ऑस्ट्रेलिया को फ्रांस के साथ अपने संबंध दोबारा बनाने की जरूरत होगी. उन्होंने कहा, "हम पहले से सहयोगी हैं. देखिए, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस के रिश्ते एक समझौते से बड़े हैं.”

ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने कहा कि फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया विविध विषयों पर साथ काम करते हैं. उन्होंने कहा, "हिंद-प्रशांत में फ्रांस की अहमियत, प्रभाव और मौजूदगी सिर्फ एक समझौते पर आधारित नहीं है. यह इस तथ्य पर आधारित है कि फ्रांस असल में यहां मौजूद है. उनकी एक लंबी प्रतिबद्धता है और ऑस्ट्रेलिया के साथ वे विविध मुद्दों पर काम करते हैं.”

क्यों नाराज था फ्रांस?

फ्रांस ऑस्ट्रेलिया के साथ करीब 60 अरब डॉलर का समझौता रद्द किए जाने से नाराज था. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और युनाइटेड किंग्डम ने मिलकर एक नया रक्षा समूह बनाया है जो विशेषकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर केंद्रित होगा. इस समूह के समझौते के तहत अमेरिका और ब्रिटेन अपनी परमाणु शक्तिसंपन्न पनडुब्बियों की तकनीक ऑस्ट्रेलिया के साथ साझा करेंगे जिसके आधार पर ऐडिलेड में नई पनडुब्बियों का निर्माण होगा.

इस कदम को क्षेत्र में चीन के बढते प्रभाव के जवाब के तौर पर देखा जा रहा है. लेकिन नए समझौते के चलते फ्रांस की जहाज बनाने वाली कंपनी नेवल ग्रुप का ऑस्ट्रेलिया के साथ हुआ समझौता खत्म हो गया है.

नेवल ग्रुप ने 2016 में ऑस्ट्रेलिया के साथ समझौता किया था जिसके तहत पनडुब्बियों का निर्माण होना था. ये पनडुब्बियां ऑस्ट्रेलिया की दो दशक पुरानी कॉलिन्स पनडुब्बियों की जगह लेतीं. अब ऑस्ट्रेलिया अपनी पनडुब्बी अमेरिका से मिली तकनीक पर बनाएगा.

फ्रांस का दावा है कि इस समझौते से पहले उस बताया नहीं गया. पिछले महीने फ्रांस के विदेश मंत्री ज्याँ-इवेस ला ड्रिआँ ने कहा था कि ऑस्ट्रेलिया ने आकुस के ऐलान से जुड़ीं अपनी योजनाओं के बारे में उनके देश को सिर्फ एक घंटा पहले बताया.

ऑस्ट्रेलिया की बॉलीवुड टैक्सी

टीवी चैनल फ्रांस 2 को ला ड्रिआँ ने कहा, "असली गठजोड़ में आप एक दूसरे से बात करते हैं, चीजें छिपाते नहीं हैं. आप दूसरे पक्ष का सम्मान करते हैं और यही वजह है कि यह एक असली संकट है."

कैसे सुधरेंगे संबंध?

फ्रांस ने अमेरिका से भी अपना राजदूत वापस बुलाया था लेकिन हफ्तेभर के अंदर ही उसे भेज दिया था. परन्तु ऑस्ट्रेलिया के साथ तनाव लंबा खिंच गया.

ला ड्रियाँ ने एक संसदीय समिति को बताया कि राजदूत ज्याँ-पिएरे थेबॉल्ट द्वीपक्षीय संबंधों की शर्तों को पुनर्भाषित करने के लिए और समझौता रद्द होने के चलते फ्रांस के हितों की रक्षा के लिए कैनबरा लौटेंगे.

यह अभी स्पष्ट नहीं है कि समझौता तोड़ने का ऑस्ट्रेलिया को कितना नुकसान होगा. स्कॉट मॉरिसन ने पिछले महीने बताया था कि इस योजना पर 1.8 अरब डॉलर से ज्यादा तो पहले ही खर्च किए जा चुके थे.

ऊन उद्योग में ऑस्ट्रेलिया ने चिप लगाई

जब गुरुवार को उनसे पत्रकारों ने पूछा कि ऑस्ट्रेलिया को कितना नुकसान होगा तो उन्होंने साफ जवाब नहीं दिया. उन्होंने कहा, "इस मामले पर आगे कैसे बढ़ना है, इस बारे में हमने सोच-समझ लिया है. हम समझौते के मुताबिक ही काम करेंगे.”

यूरोप से भी तनाव

फ्रांस के साथ समझौता तोड़ने का असर ऑस्ट्रेलिया के यूरोपीय संघ में अन्य देशो के संबंधों पर भी पड़ा है. तनाव इस कद्र बढ़ गया था कि फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने तब से स्कॉट मॉरिसन से फोन पर भी बात नहीं की है.

यूरोपीय संघ के साथ ऑस्ट्रेलिया के व्यापार समझौते पर होने वाली एक बैठक को टाल दिया गया है. पहले यह बैठक अक्टूबर में होनी थी. इस हफ्ते ऑस्ट्रेलिया के व्यापार मंत्री पैरिस में थे जहां उन्हें फ्रांसीसी नेताओं ने ज्यादा भाव नहीं दिया.

मॉरिसन ने कहा कि वह माक्रों से मिलने को लेकर उत्सुक हैं. उन्होंने कहा, "मैं दोबारा अपनी पहली बैठक को लेकर उत्सुक हूं और पहले फोन कॉल को लेकर भी. मैं मानता हूं कि यह एक मुश्किल समय है. लेकिन फ्रांस को नाराज किए बिना बिना हम यह फैसला नहीं कर सकते थे.”

सितंबर में ऑस्ट्रेलिया छोड़ते वक्त नाराज थेबॉल्ट ने कहा था कि ऐसा करना ऑस्ट्रेलिया के स्वभाव के उलट था. उन्होंने कहा था, "यह एक बड़ी गलती है. साझीदारी को बहुत बहुत गलत तरीके से संभाला गया.”

वीके/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)

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