छह दशक बाद असम-नागालैंड सीमा विवाद सुलझने की उम्मीद
२५ जनवरी २०२२मिजोरम से लगी सीमा पर तो जमीन के मुद्दे पर बीते दिनों बड़े पैमाने पर हिंसा हो चुकी है. एक अन्य राज्य नागालैंड के साथ भी रह-रह कर हिंसक झड़प होती रही है. इन दोनों राज्यों का सीमा विवाद लंबे अरसे से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. लेकिन अब नागालैंड और असम ने अदालत से बाहर आपसी सहमति के जरिए इस विवाद को खत्म करने की पहल की है. नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने इसकी जानकारी देते हुए बताया है कि दोनों राज्यों का प्रतिनिधिमंडल अगले महीने इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलेगा.
समाधान की पहल
नागालैंड के मुख्यमंत्री रियो, उप मुख्यमंत्री वाई पैटन और नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) विधायक दल के नेता टीआर जेलियांग ने रविवार को गुवाहाटी में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा से मुलाकात की थी. रियो ने कोहिमा में पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा, ‘‘सरमा के साथ सीमा मुद्दे पर सकारात्मक बातचीत हुई है. दोनों राज्यों की सरकार अदालत के बाहर विवाद के समाधान के पक्ष में हैं.
इससे पहले सीमा विवाद सुलझाने की दिशा में पहल करते हुए नागालैंड विधानसभा ने बीते साल अगस्त में मुख्यमंत्री की ओर से पेश एक तीन सूत्री प्रस्ताव को आम राय से पारित किया था. उसके तहत विवाद के तमाम पहलुओं की जांच कर अपनी सिफारिशें सौंपने के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक दस-सदस्यीय समिति का गठन किया गया था. प्रस्ताव में कहा गया था कि सीमा मुद्दे का निपटारा दोनों राज्य सरकारों की तरफ से अदालत के बाहर ही किया जाना चाहिए.
विवाद
वर्ष 1963 में असम के कुछ हिस्सों को लेकर अलग काटकर नागालैंड राज्य बनाया गया था और उस समय से ही दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद है. नागालैंड सरकार हमेशा कहती रही है कि वर्ष 1960 के 16-सूत्री समझौते, जिसके तहत नागालैंड का गठन हुआ, में उन सभी नागा क्षेत्रों की बहाली भी शामिल थी, जिनको वर्ष 1826 में अंग्रेजों द्वारा असम पर कब्जा करने के बाद नागा पहाड़ियों से बाहर स्थानांतरित कर दिया गया था. लेकिन असम सरकार 1 दिसंबर, 1963 को तय संवैधानिक सीमा को बहाल रखने के पक्ष में है.
असम का दावा है कि शिवसागर, जोरहाट, गोलाघाट और कार्बी आंगलांग जिलों में नागालैंड ने 66 हजार हेक्टेयर से अधिक जमीन पर अतिक्रमण कर रखा है. दूसरी ओर, नागालैंड का कहना है कि असम ने उसके कई इलाकों पर कब्जा कर रखा है. दोनों राज्यों के बीच 434 किलोमीटर लंबी सीमा है. असम सरकार ने सीमा विवाद के हल के लिए 1988 में उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की थी जो अब भी लंबित है.
असम के मुख्यमंत्री हिमंत ने बीते साल कहा था, "नागालैंड का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में है और हम शायद दो-तीन साल में फैसला आने की उम्मीद कर सकते हैं.” सीमा विवाद को सुलझाने के लिए दोनों राज्यों की सरकारों की तरफ से अतीत में किए गए तमाम प्रयास नाकाम रहे हैं. बाद में असम इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले गया. सुप्रीम कोर्ट ने भी वर्ष 2010 में मध्यस्थता के जरिए विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने का प्रयास किया था. लेकिन मध्यस्थों की तरफ से पेश की गई रिपोर्ट को दोनों राज्यों ने खारिज कर दिया था.
हिंसा
सीमा विवाद के मुद्दे पर असम और नागालैंड में अक्सर हिंसा होती रही है. वर्ष 1979, 1985, 2007 और 2014 में विभिन्न घटनाओं में नागालैंड से सशस्त्र बलों के हमलों में कई लोग मारे जा चुके हैं. इनमें से ज्यादातर असम के थे. पांच जनवरी, 1979 को असम के जोरहाट जिले के नागालैंड सीमा से लगे गांवों पर हथियारबंद लोगों के हमले में 54 लोग मारे गए थे और करीब 24 हजार लोगों ने भाग कर राहत शिविरों में शरण ली थी. वर्ष 1985 में मेरापानी में असम और नागालैंड के बीच भी ऐसी ही हिंसा हुई थी, जिसमें 28 पुलिसकर्मी समेत 41 लोग मारे गए थे.
ताजा घटना में मई 2021 में असम-नागालैंड सीमा से लगे दिसाई घाटी वन क्षेत्र कांग्रेस के विधायक रूपज्योति कुर्मी पर गोलीबारी कर दी गई. केंद्र ने मामला सुलझाने के लिए अगस्त 1971 में असम-नागालैंड के मामलों के लिए विधि आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष के वी के सुंदरम को नियुक्त किया. सुंदरम ने सीमा का संयुक्त सर्वेक्षण करने का सुझाव दिया था. लेकिन नागालैंड इस पर सहमत नहीं हुआ. असम सरकार ने वर्ष 1988 में सुप्रीम कोर्ट में सीमा विवाद पर मामला दायर किया था. असम ने अपनी सीमा के भीतर के क्षेत्रों का अतिक्रमण रोकने के लिए नागालैंड के खिलाफ स्थायी निषेधाज्ञा देने की मांग की थी. उसकी मांग ती कि सुप्रीम कोर्ट उसे सभी अतिक्रमित क्षेत्रों का असली मालिक घोषित करे और नागालैंड को उन क्षेत्रों का शांतिपूर्ण नियंत्रण सौंपने का निर्देश दे. यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.
सीमा विवाद की वजह
प्रशासनिक सहूलियत के लिए असम से काट कर नए राज्यों के गठन का सिलसिला वर्ष 1962 के बाद शुरू हुआ था. लेकिन तब सीमाओं का सही तरीके से निर्धारण नहीं किया गया था. दरअसल, जब असम से काट कर मिजोरम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर जैसे राज्यों का गठन किया गया था तब इलाके में आबादी बहुत कम थी और सीमावर्ती इलाका घने जंगल से घिरा था. लेकिन आबादी के बढ़ते दबाव की वजह से अब लोगों की जरूरतों के हिसाब से जब जगह कम पड़ने लगी तो जमीन का मुद्दा उठने लगा. लेकिन शुरुआती दौर में ही इसे सुलझाने की बजाय राज्य सरकार और केंद्र सरकार इस ओर से आंखें मूंदे रही.
राजनीतिक पर्यवेक्षक धीरेन कलिता कहते हैं, "सीमा विवाद की जड़ें असम के बंटवारे में ही छिपी हैं. बीते पांच-छह दशकों के दौरान इस मुद्दे को सुलझाने की कोई ठोस पहल नहीं हुई. लेकिन अब पहले मेघालय और फिर नागालैंड के साथ होने वाली पहल से पूर्वोत्तर में इस विवाद के सुलझने की उम्मीद बढ़ गई है.”