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पश्चिमी देशों के हाथ नहीं आ रहे हैं मोदी

२८ जून २०२२

प्रधानमंत्री मोदी पहले ब्रिक्स और फिर जी-7 व्यस्त रहे. एक तरफ रूस भारत को पश्चिमी देशों के खिलाफ अपना मजबूत साझीदार बनाना चाहता है, तो दूसरी ओर पश्चिमी देश रूस के खिलाफ भारत का साथ चाहते हैं. लेकिन भारत क्या चाहता है?

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Narendra Modi beim G7 Gipfel in Elmau
तस्वीर: Jonathan Ernst/REUTERS

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी जादू की झप्पी के लिए जाना जाता है. कई बार ये झप्पी उन्हें थोड़ी अटपटी स्थिति में भी पहुंचा चुकी है. जैसे पिछले साल जलवायु सम्मेलन के दौरान जब मोदी संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनियो गुटेरेश के नजदीक गए तो गुटेरेश ने कुछ ऐसा चेहरा बनाया जैसे मोदी गले लग नहीं रहे, गले पड़ रहे हैं.  

लेकिन जर्मनी के श्लॉस एलमाउ में नजारा कुछ अलग ही था. इस बार फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों झप्पी से इतने खुश दिखे कि वह लगातार मोदी को पकड़ कर ही खड़े रहे. पहले एक हाथ पकड़ा, फिर दूसरा, फिर कंधा. ऐसा लग रहा था जैसे माक्रों मोदी को छोड़ना ही नहीं चाहते. देखा जाए तो माक्रों मोदी के साथ वही कर रहे थे जो जी-7 देश भारत के साथ कर रहे हैं. वे सुनिश्चित करना चाहते हैं कि भारत उनके साथ ही खड़ा रहे, कहीं और ना जाए.  

मोदी को पकड़ कर ही खड़े रहे माक्रों
तस्वीर: Ludovic Marin/REUTERS

गुटनिरपेक्षता पर बरकरार

इस साल के जी-7 शिखर सम्मेलन के पांच अहम मुद्दे थे: जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिरता, टिकाऊ निवेश और युद्ध का समाधान. इसमें शक नहीं है कि तीन दिन चले इस सम्मेलन के केंद्र में आखिरी मुद्दा यानी युद्ध का समाधान ही छाया रहा. भारत समेत चार अन्य देशों: इंडोनेशिया, सेनेगल, अर्जेंटीना और दक्षिण अफ्रीका को बतौर अतिथि आमंत्रित किया गया था. इन सभी देशों के साथ मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन, लैंगिक समानता और स्वास्थ्य के इर्दगिर्द बातचीत हुई. लेकिन आधिकारिक बैठकों के इतर रूस का मुद्दा ही हावी रहा. 

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पश्चिमी देशों की हर मुमकिन कोशिश के बावजूद रूस और यूक्रेन युद्ध पर भारत का रुख पिछले चार महीनों से बिलकुल नहीं बदला है. भारत किसी का पक्ष लिए बिना इस रुख पर कायम है कि युद्ध का समाधान केवल कूटनीति और संवाद से ही निकाला जा सकता है. भारत ने अब तक ना ही रूस की आलोचना की है और ना ही उसका पक्ष लिया है. संयुक्त राष्ट्र में भी भारत रूस के खिलाफ प्रस्तावों पर मतदान से गैरहाजिर रहा और गुटनिरपेक्षता की अपनी नीति पर बना रहा. 

सबसे पहले अपना हित

प्रधानमंत्री मोदी का दुनिया को संदेश साफ है - भारत के लिए उसका अपना हित सबसे ज्यादा मायने रखता है, किसी भी वैश्विक संकट से ज्यादा. मोदी की जर्मनी यात्रा से ठीक पहले विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने मीडिया से बात करते हुए कहा, "इस बारे में कोई दुविधा, शंका, संकोच नहीं होना चाहिए कि पक्ष केवल भारत का होगा, सिद्धांत हमारे होंगे, हित अपने होंगे लेकिन समाधान ऐसा हो जिसकी वैश्विक परिपेक्ष्य में स्पष्ट अहमियत और उपयोगिता हो."  

नई विश्व व्यवस्था में भारत का बढ़ता महत्व इस बात से भी जाहिर है कि वह हर तरह के समूहों का हिस्सा है, फिर चाहे ब्रिक्स हो या क्वॉड, जी-4 हो या जी-20, एससीओ हो या सार्क - भारत हर जगह संतुलन बना कर चल रहा है. और हालांकि भारत जी-7 का हिस्सा नहीं है लेकिन पिछले चार साल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगातार वहां आमंत्रित किया जा रहा है. 

जी-7 के एक सत्र में मोदी ने गरीब देशों के लिए ऊर्जा की अहमियत पर जोर देते हुए कहा, "आप सभी इस बात से सहमत होंगे कि ऊर्जा की उपलब्धता केवल अमीरों का विशेषाधिकार नहीं होना चाहिए. एक गरीब परिवार का भी ऊर्जा पर बराबर अधिकार है. और आज जब भू-राजनीतिक तनाव के चलते ऊर्जा के दाम आसमान छू रहे हैं, इस बात को याद रखना और भी अहम हो गया है."

G7 समूह कब, कैसे और क्यों बना?

साथ चाहिए लेकिन अपनी शर्तों पर  

भारत की इस बात पर आलोचना की जा रही है कि उसने रूस से तेल के आयत को पहले के मुकाबले बढ़ा लिया है. रूस सस्ते दाम पर भारत को तेल बेच रहा है और यह बात पश्चिमी देशों को खूब खटक रही है, क्योंकि इससे रूस पर लगाए गए पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का असर कम हो रहा है. लेकिन अब जब जी-7 देशों ने रूस से सोने की खरीद पर भी प्रतिबंध लगा दिए हैं, तो बहुत मुमकिन है कि तेल की तरह रूस भारत को सोना भी कम दाम में बेचने लगे. वैसे भी, चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सोने का खरीदार है. अकेले 2021 में ही भारत ने 55 अरब डॉलर का सोना खरीदा है.  

भारत पूरब और पश्चिम दोनों के साथ अपने व्यापार संबंध मजबूत करना चाहता है. कोविड काल के बाद भारत ग्रीन एनर्जी, सस्टेनेबिलिटी और भविष्य की तकनीक का केंद्र बनना चाहता है. भारत का यह भी दावा है कि वह रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण उत्पन्न हुए संकट का समाधान तलाशने में दुनिया का साथ देना चाहता है. इसमें खाद्य संकट, ऊर्जा संकट, मुद्रास्फीति और सप्लाई-चेन से जुड़ी चुनौतियां शामिल हैं. लेकिन भारत यह सब अपनी शर्तों पर कर रहा है. भारत अपने विकल्प खुद तय करना चाहता है. भारत अपने फैसले खुद लेना चाहता है. भारत यह बिल्कुल नहीं चाहता कि कोई और उसे बताए कि उसे कब, किसके साथ और कितना व्यापार करना है.  

मौजूदा परिस्थति में पश्चिमी देशों के लिए भारत पहले से कहीं अधिक अहम बन चुका है और ऐसे में वे भारत से अपने तार काटने का जोखिम नहीं उठा सकते. खास तौर से अमेरिका और चीन के बीच चल रहे तनाव से भविष्य में पश्चिम की भारत पर निर्भरता बढ़ेगी. भारत यह बात अच्छी तरह समझता है. इसीलिए बिना किसी दबाव में आए अपने रुख पर बना हुआ है. इस साल नवंबर में ब्रिक्स और जी-7 के देश इंडोनेशिया के बाली में जी-20 सम्मलेन के लिए मिलेंगे. तब तक पश्चिमी देशों को भारत को मनाने का कोई और तरीका सोचना होगा क्योंकि फिलहाल तो मोदी उनके हाथ आते नहीं दिख रहे.  

ईशा भाटिया सानन (एलमाउ, जर्मनी) 

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