कंबोडिया में नौकरी के नाम पर ठगे जा रहे भारतीय
१७ मई २०२४भूखे और चौबीसों घंटे वीडियो सर्विलांस में एक कमरे में बंद दीनबंधु साहू की रातों की नींद यह सोचकर उड़ जाती थी कि क्या वह कभी भारत में अपने परिवार को देख पाएंगे. साहू कंबोडियो में एक जॉब स्कैम में फंस गए थे.
दरअसल साहू को जून, 2023 में वियतनाम में डाटा एंट्री ऑपरेटर की नौकरी का ऑफर मिला था, जिसके लिए 900 डॉलर (करीब 75 हजार रुपये) वेतन के साथ मुफ्त भोजन और आवास देने का वादा था.
अच्छे जीवन का सपना टूटा
साहू कहते हैं, "मेरे परिवार के सदस्यों ने दबाव बनाया कि मुझे नहीं जाना चाहिए, लेकिन जब मुझे यह ऑफर मिला तो मुझे राहत महसूस हुई." साहू को उम्मीद थी कि नई नौकरी से उन्हें साढ़े तीन लाख रुपये का कर्ज चुकाने में मदद मिलेगी.
ओडिशा के गोलंथ्रा के रहने वाले 41 साल के साहू कहते हैं, "मैं एक बेहतर भविष्य का सपना देखने लगा."
लेकिन वियतनाम पहुंचने के बाद उन्हें और चार अन्य भारतीयों को पड़ोसी देश कंबोडिया में तस्करी कर ले जाया गया. कंबोडिया पहुंचने के बाद उनके पासपोर्ट ले लिए गए और उन्हें ऑनलाइन क्रिप्टोकरेंसी स्कैम के काम पर लगा दिया गया.
साहू उन 250 भारतीयों में से हैं जिन्हें हाल ही में भारत सरकार की कोशिश के बाद देश वापस लाया गया है. ये लोग कंबोडिया में फर्जी नौकरी के लालच में जा फंसे थे.
नौकरी के लालच में फंसते भारतीय
श्रम और साइबर सेफ्टी विशेषज्ञों का कहना है कि नौकरी चाहने वाले हताश लोगों को निशाना बनाने के लिए देश में ऑनलाइन जॉब स्कैम जारी हैं और इसमें बढ़ोतरी हुई है.
यह रुझान देश में एक कठिन श्रम बाजार को उजागर करता है. जहां बेरोजगारी और कुशल स्थायी नौकरियों की कमी चरम पर है, खासकर ग्रामीण इलाकों में. लोकसभा चुनाव के बीच बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है.
साहू लोगों से आग्रह करते हैं कि वो अधिकारियों और नेताओं को जवाबदेह ठहराएं और नौकरी घोटालों के पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की मांग करें. साथ ही उनकी मांग है कि घरेलू स्तर पर बेहतर रोजगार के मौके भी मिलने चाहिए.
साहू ने कहा, "जो भी सत्ता में आता है उसे इस मुद्दे का समाधान करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी त्रासदी दूसरों के साथ न हो. सरकार को उन भर्ती एजेंटों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए जो नौकरी चाहने वालों को धोखा दे रहे हैं."
जल्दी पैसे कमाने का सपना
भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है. साल 2023 की चौथी तिमाही के दौरान इसमें 8.4 फीसदी वृद्धि हुई. लेकिन अर्थव्यवस्था में होने वाली यह वृद्धि उन लाखों युवाओं के लिए पर्याप्त नौकरियां पैदा करने में संघर्ष कर रही है, जो हर साल श्रम बाजार में प्रवेश कर रहे हैं.
साइबर सेफ्टी और भर्ती एक्सपर्टों का कहना है कि यह तस्करी रैकेटों के लिए उपजाऊ जमीन तैयार करता है जो अक्सर भर्ती करने और नौकरी चाहने वालों की निराशा का फायदा उठाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं.
एवांजो साइबर सिक्योरिटी सॉल्यूशंस इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर धन्या मेनन कहते हैं, "युवाओं को लगता है कि विदेशों में बेहतर ऑफर हैं. उन्हें जो ऑफर मिलता है उससे वो इतना ललचा जाते हैं कि वे किसी भी तरह की क्रॉस-चेकिंग नहीं करते हैं."
मुंबई स्थित रिक्रूमेंट कंपनी प्लेसमेंट एक्सपर्ट के सह-संस्थापक जैस्मीन चंदे नौकरी चाहने वालों को सलाह देते हैं कि वह कंपनी के बारे में रिसर्च करें और यह भी पता करें कि भर्ती करने वाले वैध हैं या नहीं. साथ ही उन्होंने कहा कि नौकरी चाहने वालों को उन ऑफर्स के बारे में सावधान रहना चाहिए जो बहुत अच्छे लगते हैं.
रोजाना टॉर्चर
सोशल मीडिया पर विज्ञापनों के जरिए अच्छी नौकरियों का ऑफर देख हजारों लोग कंबोडिया, लाओस और म्यांमार में जा फंसे और इंटरनेट की दुनिया के जरिए अनजाने लोगों के साथ धोखाधड़ी करने को मजबूर हुए. साहू विदेश में नौकरी की तलाश कर रहे थे जब उन्हें एक व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ा गया, जिसमें एक एजेंट ने उन्हें वियतनाम में एक आईटी कंपनी में खाली पद के बारे में बताया.
साहू ने तुरंत उस एजेंट को अपने सभी दस्तावेज भेजे और नौकरी की व्यवस्था करने के लिए डेढ़ लाख रुपये का पेमेंट कर दिया. उसके बाद वह अपनी पत्नी और बेटी को छोड़कर चले गए.
कुछ दिनों बाद उन्हें पश्चिमी कंबोडिया के एक शहर पोइपेट ले जाया गया, जहां उन्हें सोशल मीडिया के जरिए फिलीपींस में हजारों लोगों से संपर्क करने के लिए एक नकली पहचान धारण करने को मजबूर किया गया ताकि उनका विश्वास हासिल किया जा सके और उन्हें क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.
साहू को हर दिन एक लाख रुपये का निवेश लाने का टार्गेट दिया गया. वो कहते हैं, "यह रोज का टॉर्चर था. उन्होंने मुझसे बिजनेस लाने की मांग की और जब मैं नहीं ला सका तो वे गुस्सा हो गए."
उन दिनों को याद करते हुए साहू की आंखों से आंसू निकल जाते हैं, जब उन्हें दिन में एक बार खाना दिया जाता था और एक कमरे में बंद कर दिया गया था. साहू को पिछले सितंबर में रेस्क्यू किया गया जब उनके परिवार ने एक स्थानीय नेता को उनकी स्थिति के बारे में बताया.
विदेश मंत्रालय जारी कर चुका है एडवाइजरी
रॉयटर्स ने कंबोडिया के मामले पर भारतीय विदेश मंत्रालय से टिप्पणी मांगी थी. जिसपर विदेश मंत्रालय ने उसे पहले के दिए बयान के बारे में बताया. 4 अप्रैल को विदेश मंत्रालय ने रोजगार के मकसद से कंबोडिया जाने को लेकर एक एडवाइजरी जारी की थी.
विदेश मंत्रालय की इस एडवाइजरी में ये कहा गया कि बीते दिनों ये ध्यान में आया है कि आकर्षक जॉब के अवसरों के लालच में आकर भारतीय मानव तस्करों के जाल में फंस रहे हैं. इसके बाद इन भारतीय नागरिकों को आर्थिक स्कैम और दूसरी अवैध गतिविधियों में शामिल होने के लिए मजबूर किया जा रहा है.
दिल्ली में कंबोडियाई दूतावास ने टिप्पणी के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया और उसने सार्वजनिक रूप से यह नहीं कहा कि भारतीय प्रवासियों के रेस्क्यू के बाद गिरफ्तारियां की गई थीं या नहीं.
साहू पेट्रोल पंप पर एक स्टोर में बतौर सुपरवाइजर का काम करते हैं और महीने में 13 हजार रुपये कमाते हैं. साहू कहते हैं कि वे अपने दोस्तों को इस तरह के संभावित स्कैम से बचने के लिए अलर्ट करते हैं. साथ ही वह राज्य की साइबर पुलिस की मदद कर रहे हैं कि फर्जी भर्ती करने वाले कैसे काम करते हैं.
साहू कहते हैं, "किसी को भी उस कठिन परीक्षा से नहीं गुजरना चाहिए जो मैंने झेली है."
एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)