तालिबान के डर से ताजिकिस्तान भागी अफगान सेना
६ जुलाई २०२१पूर्वोत्तर अफगानिस्तान में तालिबान और अफगान सेना के बीच छिड़ा संघर्ष तीन जुलाई को निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया. तालिबान के हमले के परेशान अफगान सेना के 1,000 से ज्यादा सैनिक उत्तरी सीमा पार कर ताजिकिस्तान में दाखिल हो गए. तालिबान का दावा है कि उसने फौज को खदेड़कर उत्तरी अफगानिस्तान का बड़ा हिस्सा फिर से अपने नियंत्रण में ले लिया है.
एक सैनिक अब्दुल बशीर ने कहा, "अफगान सैनिक आत्मसर्मपण नहीं करना चाहते हैं. उन्होंने अतिरिक्त सैनिकों की मांग की थी, जिसे नजरअंदाज कर दिया गया." बशीर की बटालियन बादकशान प्रांत में तैनात थी. इसी बटालियन के सैनिक सीमा पार कर ताजिकिस्तान पहुंचे हैं. यह अफगानिस्तान का वह इलाका है, जो 1990 के दशक में भी तालिबान के खिलाफ सबसे मजबूती से खड़ा रहा. पंजीर का शेर कहे जाने वाले नॉर्दर्न अलायंस के कमांडर अहमद शाह मसूद इस इलाके की पहचान हैं. लेकिन अब तालिबान के हमलों से यह किला भी उखड़ रहा है.
सीमा पर ताजिकिस्तान की मुस्तैदी
ताजिकिस्तान की नेशनल सिक्योरिटी कमेटी के मुताबिक, अफगान सरकार के 1,037 सैनिक जान बचाने के लिए उनके देश में दाखिल हुए हैं. यह रविवार और सोमवार की दरम्यानी रात को हुए संघर्ष का नतीजा है. हालांकि अफगानिस्तान और ताजिकिस्तान का कहना है कि दोनों देशों के बीच अफगान सेना को बॉर्डर पार कराने के लिए बातचीत पहले ही हो चुकी थी.
ताजिकिस्तान की सरकारी सूचना एजेंसी ने एक बयान जारी कर कहा, "एक अच्छा पड़ोसी होने के नाते और अफगानिस्तान के भीतरी मामलों में दखल न देने की नीति पर कायम रहते हुए सेना ने अफगान सरकार की सेना को ताजिक इलाके में दाखिल होने की अनुमति दी." इसके साथ ही ताजिकिस्तान ने भी अपनी सेना अफगान सीमा पर भेज दी है. सोवियत संघ के विघटन से जन्मा ताजिकिस्तान नहीं चाहता कि तालिबान उसकी सीमा पार करे. दोनों देशों की सीमा 900 किलोमीटर लंबी है.
विदेशी दूतावासों और उच्चायोगों पर खतरा
अफगानिस्तान में तेजी से बिगड़ते हालात को देखते हुए रूस ने उत्तरी अफगानिस्तान में अपना कंसुलेट कुछ समय के लिए बंद कर दिया है. अफगानिस्तान में तैनात रूसी राजदूत जामिर काबुलोव ने रूस की सरकारी न्यूज एजेंसी तास से कहा, "हालात बहुत तेजी से बदल रहे हैं. जैसा बताया जा रहा है उसके मुताबिक अफगान सेना ने कई जिले छोड़ दिए हैं. इससे घबराहट होनी लाजिमी है."
अफगानिस्तान के सबसे बड़े शहरों में शामिल मजार ए शरीफ में कई देशों के कंसुलेट हैं. रिपोर्टों के मुताबिक कुछ और देशों ने भी अपने कंसुलेटों को अस्थायी रूप से बंद कर दिया है. अफगानिस्तान में विदेशी दूतावासों और कंसुलेटों पर तालिबान के हमले नए नहीं हैं. मजार ए शरीफ, हेरात, जलालाबाद और काबुल जैसे शहरों में भारत, अमेरिका, जर्मनी और स्पेन के मिशनों को निशाना बनाया जा चुका है.
टूट चुकी है अफगान सेना
काबुल में रहने वाले अफगान एक्सपर्ट अता नूरी के मुताबिक अमेरिकी, नाटो और आइसैफ फौजों की वापसी के बाद तालिबान को रोकना असंभव सा लग रहा है. नूरी कहते हैं, अफगान सेना की सप्लाई चेन नाकाम हो रही है. सैनिक तालिबान के भीषण हमले का सामना कर रहे हैं. हालात ऐसे हैं कि कई चौकियां एक गोली चलाए बिना ही सरेंडर कर दी गई है. नूरी कहते हैं, "अफगान सेना का मनोबल टूट चुका है. वह असमंजस में है. तालिबान जिस जिले को भी कब्जे में लेता है, वहां वे बुजुर्गों की एक टीम भेजता है जो सैनिकों से बात कर आत्मसमर्पण करवाती है."
तालिबान से लड़ने वाले सैनिक, रसद और सैन्य आपूर्ति न मिलने से परेशान हैं. वहीं सेना का बड़ा हिस्सा आत्मसमर्पण कर रहा है. नूरी कहते हैं, "अफगान सरकार के लिए यह एक आपातकालीन स्थिति है. उसे जितना जल्दी हो सके जवाबी कदम उठाने होंगे."
अमेरिका और तालिबान के बीच हुई दोहा संधि को लेकर जो आशंकाएं जताई जा रही थीं, वह अब सच साबित हो रही हैं. तालिबान के बढ़ते प्रभाव के बावजूद दो जुलाई 2021 को अमेरिकी फौज ने अफगानिस्तान के बगराम में बनाया गया अपना सबसे बड़ा सैनिक अड्डा छोड़ दिया. सोवियत संघ के बाद अब अमेरिका जैसी महाशक्ति भी एक छिन्न भिन्न अफगानिस्तान छोड़कर जा रही है.
ओएसजे/एमजे (डीपीए, एपी, एएफपी)