90 साल के हुए जर्मनी के पूर्व चांसलर श्मिट
२३ दिसम्बर २००८हेल्मूट श्मिट के शासनकाल के दौरान दुनिया भर में आर्थिक मंदी और तेल संकट की वजह से जर्मनी में बेरोज़गारी बढ़ रही थी और साथ ही चरमपंथी संगठन आरएएफ ने जर्मनी को आतंक की चपेट में ले लिया था.
1962 में जब हैमबर्ग शहर भीषण तूफ़ान का शिकार बना तब संकट में ठंडे दिमाग़ से काम लेने और बड़े फै़सलों से न हिचकिचाने की हेल्मुट श्मिट की क्षमता सामने आई. उस वक्त वे आंतरिक मामलों के सीनेटर का पद संभाल रहे थें. जब पूरा शहर हताशा में डूब रहा था तब हैमबर्ग के श्मिट ने लोगों को बचाने की मुहिम चलाई.
इसके बाद से ही श्मिट की छवि अदभुत संकट मोचक की बन गई. 1918 में जन्मे और अर्थशास्त्र की पढाई करने वाले श्मिट को दूसरे विश्व युद्ध में भाग लेना पड़ा और ब्रिटिश सेना ने उन्हे बंधक बना लिया था. श्मिट शुरू से बहुत अच्छे वक्ता थे और वह अपनी बात बड़ी साफ़गोई से जनता के सामने रखते थे. उन्होंने 1945 में राजनीति में आने का फै़सला किया और एसपीडी पार्टी यानी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य बन गए.
जर्मनी के पांचवे चांसलर
1953 में जर्मन संसद के सदस्य बनने के बाद वह 1969 में रक्षा मंत्री और 1972 में वित्त मंत्री बने. महत्वपूर्ण मंत्रालयों की ज़िम्मेदारी निभाने के बाद 1974 में श्मिट का जर्मनी का पांचवा चांसलर बनना तय था. लेकिन चांसलर पद संभालना श्मिट के लिए बड़ी चुनौती साबित हुई. उस वक़्त चरमपंथी आरएएफ संगठन ने जर्मनी को अपने चपेट में ले रखा था और उसके हमलों में काफ़ी लोगों की मौत हो चुकी थी.
जब 1977 में आरएएफ़ ने न्योक्ता संघ के अध्याक्ष हान्स मार्टिन श्लायेर का अपहरण किया तब विपक्षी सीडीयू पार्टी ने कहा कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए लोकतंत्र में कुछ समझौते करने पड़ेंगे. लेकिन सीडीयू पार्टी के इस बयान पर श्मिट ने कड़ी प्रतिक्रिया दी जिससे लोगों को पता चला कि श्मिट की लोकतंत्र में गहरी आस्था है-"चुनौती यह है कि हम सुरक्षा को आज़ादी से ऊपर नही रख सकते है. कुछ लोग इस देश में असहिष्णुता की लहर फैलाना चाहते हैं."
लेकिन उनके बयान की बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी और चरमपंथी संगठन ने हान्स मार्टिन श्लायेर की हत्या कर दी. 1980 के दशक की शुरूआत में श्मिट राजनीति में अलग-थलग पड़ गए और विश्वास मत के दौरान उनकी हार हुई- "लोकतंत्र की विश्वसनीयता में सरकारों का बदलना ज़रूरी है इसलिए इस हार से मुझे कोई शिक़ायत नहीं है. लेकिन शिक़ायत मुझे इससे है कि इस बदलाव में विश्वसनीयता कमी है और बदलाव की प्रक्रिया ग़लत थी. "
निजी जीवन
श्मिट ने 1942 में लोकी से शादी की. दोनों की एक बेटी है. श्मिट जर्मनी के प्रतिष्ठित साप्ताहिक टीज़ायट अख़बार के प्रकाशक हैं और महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाओं पर एक विश्लेषक और टिप्पणीकार की भूमिका निभाते हैं. अपने राजनीतिक सफ़र का सबसे अहम दोस्त वह मिस्त्र के पूर्व राष्ट्रपति अनवर सादात को मानते हैं जिनकी हत्या कर दी गई थी.