70 साल का हुआ इस्राएल
१८ अप्रैल २०१८होलोकास्ट की भवायह यादों के बाद यहूदियों के लिए अपने होमलैंड का सपना 1948 में पूरा हुआ. उस लम्हे का जश्न मनाने के लिए हजारों लोग खुशी से मदमस्त हो कर नाचने लगे. यहूदी नरसंहार का दंश झेल चुके चाइम कोत्सिनिकी उस लम्हे को याद कर कहते हैं, "हम खुशी के मारे चांद पर चले गए थे." 14 मई को तेल अवीव में इस्राएल के संस्थापक और पहले प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियोन ने आजादी का एलान किया था. पांच अरब देशों ने इसके तुरंत बाद हमला कर दिया. 90 साल के होने जा रहे कोत्सिनिकी पोलैंड में लॉज की बदनाम बस्ती और फिर ग्दांस्क के निकट स्टुहॉफ कंसेंट्रेंशन कैम्प में यातना झेल कर खुद तो बच गए लेकिन अपने परिवार को खो दिया. पेट की बीमारी के बावजूद वे नए इस्राएल के लिए लड़ने जा पहुंचे. नर्म आवाज में लेकिन दृढ़ता के साथ कोत्सिनिकी कहते हैं, "युद्ध में जब पहली बार मुझे गोली लगी तो शायद वह मेरी जिंदगी का सबसे हसीन पल था. मैंने पोलैंड में बचपन से ही अपने वतन के लिए लड़ने का सपना देखा था."
इस्राएल की यह खुशी फलस्तीन के लिए आपदा लेकर आई थी. 7 लाख से ज्यादा लोग इस्राएल से या तो भाग गए या भगा दिए गए. यह संख्या अब 50 लाख शरणार्थियों और उनके वंशजों में तब्दील हो चुकी है. फलस्तीनी इलाकों और आसपास के अरब देशों में शरणार्थी शिविरों में रह रहे वंशज इस्राएली इलाके में अपनी "वापसी के अधिकार" के लिए आज भी संघर्षरत हैं. इस्राएल इसे खारिज करता है, उसका मानना है कि इससे यहूदी राष्ट्र खंडित हो जाएगा.
भूमध्य सागर और जॉर्डन नदी के बीच में रह रहे यहूदियों और फलस्तीनियों की आबादी आज लगभग बराबर है करीब 65 लाख. इस्राएल ने जॉर्डन नदी के पश्चिमी तट पर करीब 50 साल से कब्जा कर रखा है. यहां आकर बसे यहूदी निवासियों की तादाद करीब 6 लाख है.
इस्राएल की रुढ़िवादी सरकार के पैरोकार वेस्ट बैंक को अलग करने की बात कहते हैं लेकिन इसका नतीजा होगा स्वतंत्र फलस्तीन राष्ट्र की उम्मीद का मिटना. फलस्तीन को लेकर इस्राएल की नीतियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दुर्भावना बढ़ाई है और इसका बहिष्कार करने की मांग उठती रहती है. विवादों को सुलझाने की बार बार कोशिश हुई लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला. बीते दशकों में इस्राएल ने कट्टरपंथी इस्लामी हमास के खिलाफ तीन बार जंग छेड़ी है. हमास का गजा पट्टी पर नियंत्रण है.
1960 से लेकर अब तक 23,500 इस्राएली सैनिकों और आम नागरिकों की मौत हुई है. 1948 से लेकर अब तक मध्यपूर्व में छह जंग हो चुके हैं इसके अलावा दो बार फलस्तीन में इंतिफदा विद्रोह हुआ है जिनमें हजारों लोगों की मौत हुई है. लगातार संघर्ष जारी रहने के बावजूद बीते 70 सालो में इस्राएल खेतीबाड़ी से शुरू कर एक आधुनिक देश के रूप में उभरा है. इसकी आबादी करीब 10 गुणा बढ़ चुकी है और इसमें तीन चौथाई यहूदी और करीब 20 फीसदी लोग अरब मूल के हैं. इस्राएली अधिकारियों को उम्मीद है कि 100 साल के होते होते उनकी आबादी डेढ़ करोड़ के पार होगी.
इस्राएल में रहने खाने का खर्च ज्यादा है और अमीर व गरीब लोगों की बीच खाई बढ़ी है. हालांकि हाल ही में ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कॉपरेशन एंड डेवलपमेंट, ओईसीडी ने कहा, "उच्च विकास, कम और घटती बेरोजगारी और बेहतर सार्वजनिक पूंजी के साथ इस्राएली अर्थव्यवस्था लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही है."
तेल अवीव स्टार्ट अप कंपनियों के लिए एक हब बन गया है. दुनिया भर से सैलानियों का जत्था यहां आकर इस्राएली उद्यमियों की योजनाओं से प्रेरणा लेता है. इस्राएल के पूर्व प्रधानमंत्री एहुद बराक ने एक बार इस्राएल को "जंगल में विला" कहा था जो शत्रु देशों और अनिश्चित पड़ोसियों से घिरा है. साथ ही, "अलग कानूनों का मतलब है कि जो खुद की रक्षा नहीं कर पाएंगे उनके लिए कोई उम्मीद नहीं ना ही कमजोरों के लिए कोई दया है."
इलाके में शांति तभी आएगी जब फलस्तीन के साथ स्थायी समझौता होगा और अरब देश इस्राएल को मान्यता देंगे. सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने हाल ही में माना कि इस्राएलियों को उनकी "अपनी जमीन का हक है." साझा शत्रु इन दोनों पक्षों को साथ ला सकता है और शिया बहुल ईरान की वजह से यह स्थिति बनती दिख रही है.
एनआर/एमजे (डीपीए)