42 साल बाद सामने आया सत्यजीत रे का 'सिक्किम'
२८ जनवरी २०१२सिक्किम की संप्रभुता पर बनी इस फिल्म से भारत-चीन संबंधों के बिगड़ने का खतरा होने की वजह से 1975 में सिक्किम के भारत में औपचारिक विलय के बाद भी केंद्र सरकार ने यह पाबंदी जारी रखी. 2010 में केंद्र ने इस पर लगी पाबंदी हटाई थी. उसके बाद से इसका प्रदर्शन चुनिंदा फिल्मोत्सवों में ही होता रहा है. कोलकाता की एक कंपनी एंजेल वीडियो ने इस फिल्म के अधिकार खरीद कर यहां इसकी वीसीडी और डीवीडी जारी कर दिए हैं.
विवाद की वजह
सिक्किम के आखिरी चोग्याल (राजा) पालदेन थोंडुप नामग्याल ने सत्यजीत रे से 1971 में यह डाक्यूमेंट्री बनवाई थी. चोग्याल की पत्नी होप कूक अमेरिकी थी. लेकिन बनने के बाद जब राजा ने यह फिल्म देखी तो उनको लगा कि इससे भारत और चीन के साथ सिक्किम के संबंध बिगड़ सकते हैं. सिकिक्म उस समय एक संप्रभु राज्य था और भारत में उसके विलय की चर्चा चल रही थी. दूसरी ओर, चीन भी उस पर अपना हक जता रहा था. फिल्म में सिक्किम के विलय पर कुछ आपत्तिजनक सवाल थे. इसलिए पहली बार राजा और उनकी पत्नी को दिखाने के बाद फिल्म पर पाबंदी लगा दी गई. विलय के बाद भारत सरकार ने भी उस पर पाबंदी जारी रखी. आखिरकार, 2010 में कोलकाता फिल्मोत्सव के दौरान पाबंदी हटने के बाद पहली बार यहां इसका प्रदर्शन किया गया. लेकिन पहले शो के बाद ही दायर की गई एक याचिका पर अदालत ने इसके प्रदर्शन पर रोक लगा दी थी. उसके बाद कई साल तक यही धारणा बनी रही कि फिल्म के तमाम प्रिंट खो गए हैं. पहले पता चला था कि सिक्किम की रानी होप कूक, जो अमेरिका में रहती हैं, के पास फिल्म का एक प्रिंट है. लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला. 2003 में लंदन में ब्रिटिश फिल्म इंस्टीट्यूट के पास इसका एक प्रिंट मिल गया. उसके बाद इसे डिजिटल तरीके से सुधार कर प्रदर्शन लायक बनाया गया.
मुश्किल से मिले प्रिंट
इस फिल्म के अधिकार खऱीदने वाली एंजेल वीडियो के निदेशक आकाश टांटिया बताते हैं, ‘डेढ़ साल महीने पहले हमने इस फिल्म के अधिकार खरीदने के लिए सिक्किम के कला व संस्कृति ट्रस्ट से संपर्क किया था. उसने पहले तो कोई तवज्जो नहीं दी. लेकिन काफी प्रयास के बाद वह राजी हो गया. ट्रस्ट ने एक ब्रिटिश कंपनी से इस फिल्म का इकलौता प्रिंट लेकर हमें सौंप दिया. इसके लिए एक मोटी रकम खर्च करनी पड़ी.' इस कंपनी के पास सत्यिजत रे की दूसरी 11 फिल्मों के भी अधिकार हैं.
खुश हैं संदीप
इस डाक्यूमेंट्री के सीडी फार्मेट में रिलीज होने पर सत्यजित रे के पुत्र संदीप रे ने खुशी जताई है. संदीप कहते हैं, ‘इस फिल्म की मूल प्रति का पता ही नहीं लग रहा था. इसका एक प्रिंट सिक्किम की रानी के पास था, जो अमेरिका में एकाकी जीवन बिता रही हैं. हमने उनको कई पत्र लिखे. लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. 2003 में कैलिफोर्निया स्थित एकेडमी आफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंज साइंसेज ने इसे संरक्षित किया. अब यह फिल्म मूल प्रति की तरह तो नहीं है. लेकिन देखने लायक है.' संदीप कहते हैं कि मूल फिल्म में रंगों का चयन और फिल्मांकन शानदार था. रे ने सिक्किम के खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों को उतनी ही खूबसूरती से फिल्माया था. लेकिन दुर्भाग्य से वह सब नष्ट हो चुका है. आखिर इस फिल्म पर पाबंदी क्यों लगाई गई थी? संदीप इस सवाल पर कहते हैं, ‘फिल्म में एक स्वाधीन राज्य के तौर पर सिक्किम का चित्रण है जो अब इतिहास का हिस्सा बन चुका है. लेकिन चोग्याल ने राजनीतिक उथल-पुथल के अंदेशे से इस पर पाबंदी लगा दी थी.'
अनुचित पाबंदी
जाने-माने फिल्मकार गौतम घोष कहते हैं कि सिक्किम पर पाबंदी लगाने की कोई ठोस वजह नहीं थी. वह कहते हैं, ‘यह डाक्यूमेंट्री स्वाधीन राज्य सिक्किम के भारत में विलय से कुछ साल पहले बनी थी. मुझे लगता है कि राजनीतिक वजहों से इस पर पाबंदी लगाई गई. लेकिन इसका कोई औचित्य नहीं नजर आता. फिल्म में कहीं कोई विवादास्पद या भड़काऊ दृश्य या टिप्पणियां नहीं हैं.' संदीप ने निर्माताओं से अपने पिता की दूसरी लघु फिल्मों को एक साथ जुटाने और उनके सिलसिलेवार प्रदर्शन की व्यवस्था करने का अनुरोध किया है.
सिनेमाप्रेमियों में उत्साह
सत्यिजित रे की फिल्में बंगाल ही नहीं, बल्कि पूरे देश के अलावा विदेशी दर्शकों पर भी गहरी छाप छोड़ती हैं. उनकी फिल्मों के एक जासूसी चरित्र फेलूदा को तो लोग आज तक नहीं भूल सके हैं. अब सीडी फार्मेट में रिलीज होने के बाद सिक्किम की मांग बढ़ रही है. एक वीडियो पार्लर में इसे खरीदने आए सुमन बसाक कहते हैं, ‘मैंने इस फिल्म के बारे में काफी सुन रखा है. यह मेरे जन्म के पहले बनी थी. इससे मुझे सिक्किम के अनकहे इतिहास के बारे में जानकारी मिल सकेगी. वह कहते हैं की रे की तमाम फिल्मों को आधुनिक तकनीक से संरक्षित कर एक संग्रहालय में रखा जाना चाहिए ताकि आम लोग और खासकर युवा पीढ़ी उस महान फिल्मकार की कला की बारीकियों से अवगत हो सकें.' सत्यजित के पुत्र संदीप भी इसके पक्षधर हैं. लेकिन इसमें धन की कमी ही सबसे बड़ी बाधा है. पुरानी प्रिंटों के संरक्षण पर मोटी रकम खर्च होती है. रे की कुछ अन्य फिल्मों की मूल प्रति का भी पता नहीं लग सका है.
रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता
संपादनः एन रंजन