25 साल नौकर रहने के बाद बने मालिक
३१ मई २०१९पच्चीस साल तक बंधुआ मजदूर की तरह काम करने वाले चिन्नागुरुवइया दासारी को साल 2015 में जब पांच एकड़ जमीन का मालिकाना हक मिला तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ. समझ ही नहीं आ रहा था कि अपनी खुशी का इजहार कैसे करें. जमीन का यह टुकड़ा उन्हें दक्षिण भारत के घने नल्लामाला जंगल के एक छोर पर मिला. चिन्नागुरुवइया आंध्र प्रदेश में रहने वाले चेंचू आदिवासी समुदाय से आते हैं. उस वक्त उनके गांव में 20 अन्य लोगों को भी सरकार ने जमीन आवंटित की थी.
आंध्र प्रदेश के प्रकासम जिले के एक गांव में रहने वाले चिन्नागुरुवइया बताते हैं कि वे लोग पिछले 15 सालों से जमीन के लिए लड़ रहे थे. ना जाने कितनी याचिकाएं दी, कितने विरोध किए लेकिन फैसला होते-होते लंबा वक्त लग गया. चेंचू लोग भारत के उन 10 करोड़ आदिवासियों में से एक हैं जो पिछले लंबे समय से जमीन के मालिकाना हक के लिए लड़ रहे थे. वो हक जो उन्हें बंधुआ मजदूरी के दलदल से निकाल सकता था. मानवाधिकार कार्यकर्ता बताते हैं कि भारत में गुलामी का सबसे आम रूप है बंधुआ मजदूरी. ऐसे मजदूर जो कर्ज में फंसकर गुलामी की जंजीरों से जकड़े रहते हैं.
साल 1976 से प्रतिबंधित बंधुआ मजदूरी से आज भी भारत के कई परिवार जूझ रहे हैं. जानकार मानते हैं कि आदिवासी समुदाय पढ़ने लिखने में सक्षम नहीं है और ना ही कानूनी प्रक्रियाओं को समझता है जिसके चलते उनका शोषण होता रहा है. गैर लाभकारी संस्था चैरिटी रुरल डेवलपमेंट ट्रस्ट से जुड़े राम प्रताप रेड्डी कहते हैं, "ठेकेदार गांवों में जाते, वहां रहने वाले कुछ लोगों को पैसा देते और फिर उन्हें सस्ती मजदूरी के लिए ले आते."
चेंचू आदिवासियों की मदद करने में जुटे स्कूल टीचर भूमानी मंथाना भी इसी समुदाय से आते हैं. वह तेलंगाना के नगरकुरनूल जिले में लोगों को बंधुआ और सस्ते श्रमिक बनने से बचाने का काम करते हैं.
वन अधिकार कानून आदिवासियों को उन जंगलों में रहने का अधिकार देता है जहां उनके पूर्वज रहते थे. लेकिन मंथाना बताते हैं कि इस अधिकार को आदिवासियों के लिए पाना बेहद ही मुश्किल है. उन्होंने बताया, "जमीन से जुड़ा हर आवेदन कम से कम छह कमेटियों के पास जाता है उसके बाद कहीं जाकर सरकार जमीन का फैसला लेती है." हालांकि सभी चिन्नागुरुवइया की तरह किस्मत वाले नहीं है.
चिन्नागुरुवइया बताते हैं कि जमीन का टुकड़ा उनके लिए बदलाव लेकर आया है. साल 2015 में जमीन मिलने के बाद उन्होंने उस पर बाजरा बोया. अब वह हर सीजन में करीब 20 और लोगों को काम दे रहे हैं. चिन्नागुरुवइया बताते हैं, "मैं बहुत ही ईमानदारी और मेहनत से काम करता था लेकिन मेरा मालिक मेरे साथ खराब सलूक करता था." हालांकि उन्हें इस बात का सुकून भी है कि अब वह अपने खेत पर काम करने वालों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं. साथ ही भविष्य में जमीन बच्चों के भी काम आएगी.
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