बाइडेन के लिए 2020 जैसा नहीं होगा 2024 का मुकाबला
२६ मई २०२३अमेरिका में 2024 का चुनाव अभियान 2020 के अभियान से अलग होगा. कोरोना की महामारी वाले दौर से बिल्कुल अलग. जिस तरीके से बाइडेन ने पिछला चुनाव जीता था उन तरीकों से वह अपनी कुर्सी बचाये नहीं रख सकेंगे. तब डेलावेयर के घर की बेसमेंट में बने रिकॉर्डिंग रूम को उन्होंने स्टूडियों में बदल दिया था और कई महीनों तक यात्रा से बचते रहे. ठेठ अंदाज में इस बार का चुनाव अभियान बाइडेन के लिए कई मौकों के साथ चुनौतियां भी लाएगा.
कोरोना की वजह से 2020 की तालाबंदी ने चुनाव अभियान को कम थकाऊ बना दिया था, इतना कम कि डॉनल्ड ट्रंप लगातार बाइडेन पर वोटरों की अनदेखी करने का आरोप लगाते रहे. भीड़ से बचने के कारण बाइडेन के लिए समर्थकों में जोश भरना मुश्किल हो गया था. वह लोगों और प्रेस से वैसे तात्कालिक संपर्कों से बचते रहे जिन्होंने अतीत में कई भूलों को भी जन्म दिया था. हालांकि इन्हीं में से कई यादगार भी बने.
बाइडेन के सलाहकारों का कहना है कि जिस तरह से महामारी ने समाज को बदला है उसी तरह से प्रचार भी बदलेगा. लोग राजनीति और उम्मीदवारों से संपर्क के लिए कई प्लेटफार्मों का उपयोग कर रहे हैं. बाइडेन की टीम मानती है कि वो नए माहौल में राष्ट्रीय स्तर पर जीतने वाले अकेले उम्मीदवार हैं. उनके सलाहकार 2020 में मिले अनुभवों का इस्तेमाल वोटरों तक असरदार संदेश पहुंचाने के लिए नये तरीके ढूंढने में कर रहे हैं. बाइडेन खुद भी ऑनलाइन कैंपेन को नहीं छोड़ना चाहेंगे.
यहां तक कि जब सामाजिक दूरी के घेरों और ड्राइव इन रैलियों के साथ ऑफलाइन प्रचार शुरू हुआ तब भी बाइडेन हमेशा रात को सोने डेलावेयर के अपने घर पहुंच जाते थे. इस बार इस काम के लिए एयरफोर्स वन मौजूद रहेगा जो उन्हें डेलावेयर या फिर व्हाइट हाउस लेकर आएगा. 2020 में एक दिक्कत यह थी कि बाइडेन चुनाव प्रचार के दौरान लोगों से अकेले में नहीं मिल पाए थे. सीक्रेट सर्विस की सुरक्षा के बावजूद अकेले में छोटी छोटी मुलाकातें इस बार संभव होंगी. हालांकि शायद इनमें से कुछ के लिए उन्हें अफसोस भी हो.
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बाइडेन की उम्र का मसला
जो बाइडेन 80 साल के हैं और उनकी उम्र को लेकर सवाल पहले भी उठता रहा है. डेमोक्रैटिक पार्टी की रणनीतिकार निकोल ब्रेनर श्मिट का कहना है, "2020 में अगर राष्ट्रपति पद के किसी उम्मीदवार को वर्चुअल मोल्ड से फायदा हुआ तो वह जो बाइडेन थे. हालांकि उन्होंने अपनी प्रेसिडेंसी के दौरान यह दिखाया है कि वह यात्रा, रैलियां और टाउनहॉल जैसे कार्यक्रम के लिए बिल्कुल सक्षम हैं." 2019 में न्यू हैम्पशर के एक शख्स ने कहा था कि राष्ट्रपति बनने के लिए बाइडेन जरूरत से ज्यादा उम्रदराज हैं.
2020 में ऑफलाइन चुनाव प्रचार के दौरान भी बाइडेन कई बार बहुत कमजोर दिखे. उम्मीदवारी की दौड़ में आगे होने के बावजूद पहले तीन प्राइमरी में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा और अमेरिका पर महामारी की गिरफ्त कसने के बाद ही उनकी उम्मीदवारी पर अंतिम समय में मुहर लगी. अब अगर वो दूसरी बार राष्ट्रपति बनते हैं तो कार्यकाल खत्म होते होते वे 86 साल के हो जाएंगे. व्हाइट हाउस के सामने कई बार ऐसे मौके आ चुके हैं जब उन्हें बाइडेन का बयान वापस लेना पड़ा.
जानकारों का कहना है कि मौजूदा राष्ट्रपति के पास हमेशा स्थिति सामने वाले से थोड़ी बेहतर होती है. बाइडेन के पास भी बढ़ी उम्र के बावजूद देश भर में फैले डेमोक्रैटिक पार्टी के समर्थकों का आधार और ढांचा होगा. राष्ट्रपति के पास लोगों से निजी तौर पर जुड़ने पर ध्यान देने के लिए समय होगा और यही वो चीज है जो बाइडेन के हक में जाती है.
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बाइडेन का एजेंडा और मतदाताओं का रुख
बाइडेन ने शुरू में मुख्यधारा का एजेंडा पेश किया जो उदार डेमोक्रैटिक पार्टी को पसंद आया हालांकि आम चुनाव आते आते वह वामपंथी एजेंडे की ओर मुड़ गये. स्वास्थ्य सेवा पर खर्च बढ़ाने, सामाजिक कार्यक्रमों और पर्यावरण के साथ ही घरेलू उत्पादन बढ़ाने और देश के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने की बात करने लगे.
डेमोक्रैटिक पार्टी के नियंत्रण वाली कांग्रेस की मदद से बाइडेन ने बहुत से वादे पूरे कर दिए. अब वे मध्यमार्गी हो गये हैं और कुछ प्रगतिशील लोगों का कहना है कि यह रुख डेमोक्रैटिक पार्टी के आधार को अलग थलग कर देगा. प्रगतिशील समूह रूट्सएक्शन डॉट ओआरजी "डॉन्ट रन जो" अभियान चला रहा है. संगठन के राष्ट्रीय निदेशक नॉर्मन सोलोमन का कहना है, "जब तक कि उन्हें सील नहीं कर दिया जाता और वह 30 साल की उम्र से नीचे के लोगों से बात करने को तैयार नहीं होते उनसे पूछा जाता रहेगा, "आपने कहा था कि आखिरी बार राष्ट्रपति चुनाव लड़ रहे हैं ... अब क्या हुआ?" कुछ लोग चाहते हैं कि बाइडेन चुनाव ना लड़ें नहीं तो डेमोक्रैट पार्टी की हार होगी.
दूसरी तरफ अभी रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से उनके सामने कौन होगा यह तय नहीं है और पार्टी बहुत हद तक विभाजित भी दिख रही है. महामारी के अलावा भी 2020 का चुनाव प्रचार कई मामलों में अलग था. जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद पुलिस की क्रूरता और नस्ली अन्याय को लेकर बड़े प्रदर्शन हुए. इस मामले में या वोटिंग के अधिकार की रक्षा के लिए बहुत कुछ नहीं होने से कई काले कार्यकर्ताओं का मोहभंग हुआ है.
एसोसिएटेड प्रेस-एनओआरसी सेंटर फॉर पब्लिक अफेयर्स के पिछले हफ्ते हुए पोल में राष्ट्रपति को काले वयस्कों के बीच 58 फीसदी की रेटिंग मिली है. उनके राष्ट्रपति बनने के पहले महीने के बाद 10 में से 9 लोगों ने उन्हें पसंद किया था. पोल में शामिल डेमोक्रैट पार्टी के सिर्फ आधे लोगों ने कहा है कि वह बाइडेन को फिर से उम्मीदवार के रूप में देखना चाहते हैं. हालांकि 81 फीसदी लोगों ने यह कहा कि वह कम से कम अगले चुनाव में उनका समर्थन करेंगे. एफ्रो-अमेरिकी लोगों ने पिछली बार बाइडेन का भरपूर समर्थन किया था लेकिन अब सिर्फ 41 फीसदी लोगों ने कहा है कि वो उन्हें चुनाव लड़ते देखना चाहते हैं जबकि 55 फीसदी लोग कह रहे हैं कि वो उन्हें आम चुनाव में समर्थन दे सकते हैं.
चुनाव में भारतीय मतदाताओं की भूमिका
जो बाइडेन को पिछले चुनाव में भारतीय समुदाय का अच्छा साथ मिला था. पारंपरिक रूप से अमेरिका में रहने वाले भारतीय डेमोक्रैटिक पार्टी के साथ ही ज्यादा जुड़ाव दिखाते रहे हैं. केंद्रीय तथा प्रांतीय संसदों में भारतीय मूल के अधिकतर प्रतिनिधि डेमोक्रैटिक पार्टी के हैं. वैसे डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रिश्तों की नई परिभाषा गढ़ी. यहां तक कि ट्रंप के समर्थन में गुजरात में रैली भी कराई गई और चुनाव के दौरान भारत से ट्रंप के समर्थन में हवा बनाने की भी कोशिश हुई. लेकिन कमला हैरिस को अपना रनिंग मेट बना कर बाइडेन ने पारंपरिक डेमोक्रैट समर्थकों के साथ ही नये समर्थकों की एक बड़ी संख्या अपने साथ कर ली. एक सर्वे के मुताबिक करीब 74 फीसदी अमेरिकी भारतीयों ने बाइडेन के पक्ष में वोट दिया था.
ट्रंप के साथ गहरे रिश्तों के बावजूद जो बाइडेन के साथ मोदी और भारत का रिश्ता अच्छा ही रहा है. खासकर यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद बाइडेन ने प्रधानमंत्री मोदी का समर्थन पाने के गंभीर प्रयास किए हैं और उन्हें पूरी तरह पुतिन कैंप में जाने से रोका है. साथ ही भारत को बहुत सारी छूटें भी दी गई है. पहली बार अमेरिका के रक्षा बजट में भारत को कुछ तकनीक देने के लिए अलग से प्रावधान किया गया है. हाल में जापान में हुई जी-7 और क्वाड की बैठकों में भी ये निकटता सामने आई है. इस साल जुलाई में प्रधानमंत्री मोदी को राजकीय यात्रा के लिए आमंत्रित कर बाइडेन ने मोदी समर्थक अमेरिकी भारतीयों को लुभाने की कोशिशें तेज कर दी हैं.
अमेरिका में भारतीय लोगों की आबादी एक फीसदी और वोटरों की संख्या एक फीसदी से भी कम है. बीते सालों में कम संख्या होने के बावजूद भारतीय अमेरिकी समाज चुनाव में ज्यादा नजर आने लगा है और उसकी पूछ परख भी बढ़ रही है. इस समय प्रतिनिधि सभा में 5 भारतीय सांसद हैं जबकि राज्यों में उनकी संख्या 50 से ज्यादा है. बाइडेन प्रशासन में भारतीय मूल के अधिकारियों की संख्या नई ऊंचाइयों को छू रही है. बाइडेन ने अपने कैबिनेट और प्रशासन में 100 से ज्यादा भारतीयों को नियुक्त किया है. भारतीय मतदाताओं का रवैया बाइडेन और हैरिस की जोड़ी के लिए जीत में अहम भूमिका निभा सकता है.
रिपोर्टः निखिल रंजन(एपी)