1984 के दंगों पर फिल्म
१३ फ़रवरी २०१५पिछले साल पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 30वीं पुण्यतिथि के मौके पर देश में काफी राजनीतिक उथल पुथल देखी गयी. कुछ ही महीने पहले प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी ने 31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि की जगह वल्लभभाई पटेल की जयंती के रूप में मनाने का फैसला किया. ऐसा पहली बार हुआ कि शक्ति स्थल पर सरकार की ओर से कोई भी नहीं गया. प्रधानमंत्री ने पटेल की याद में राष्ट्रीय एकता दिवस का एलान किया और इंदिरा गांधी को ट्विटर पर ही श्रद्धांजलि दे दी.
जहां एक तरफ यह सब हो रहा था वहीं सेंसर बोर्ड इंदिरा गांधी के हत्यारों पर बनी एक फिल्म के साथ जूझ रहा था. "कौम दे हीरे" नाम की पंजाबी फिल्म को 31 अक्टूबर को ही रिलीज करने का इरादा था. लेकिन क्योंकि फिल्म में पूर्व प्रधानमंत्री के हत्यारों को नायक के रूप में दिखाया गया है, इसलिए इसे रिलीज करने की अनुमति नहीं दी गई. सेंसर बोर्ड ने बयान दिया कि फिल्म नफरत और हिंसा फैलाती है.
फिल्म फेस्टिवल की तलाश
भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में अक्सर कई लोग एक ही समय पर एक ही विषय पर काम में लग जाते हैं. भगत सिंह पर एक ही साल में तीन तीन फिल्में बन गयीं थी. इंदिरा गांधी की हत्या के मामले पर भी कुछ ऐसा ही हो रहा है. लेकिन फिल्म बनाने वाले दूसरों की गलतियों से सीख लेते दिख रहे हैं. "31 अक्टूबर" नाम की इस फिल्म के निर्माता और स्क्रिप्ट राइटर हैरी सचदेव का कहना है कि उनकी फिल्म किसी का पक्ष नहीं लेती और ना ही किसी की भी हत्या को सही ठहराती है, भले ही वह इंदिरा गांधी की हो या फिर सिखों की. हालांकि सचदेव को भी इस बात की चिंता है कि उन्हें सेंसर बोर्ड का सामना करना होगा. वह कहते हैं, "जरूरत पड़ने पर हम कुछ सीन हटा लेने के लिए तैयार हैं."
हैरी सचदेव अपनी फिल्म को किसी अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में रिलीज करना चाहते हैं. इसी सिलसिले में वे बर्लिन फिल्म समारोह (बर्लिनाले) में शिरकत कर रहे हैं. फिल्म में सोहा अली खान और वीर दास मुख्य भूमिका में हैं. स्टैंड अप कॉमेडी से इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने वाले वीर दास को इस बार एक बेहद संजीदा किरदार में देखा जाएगा. वीर दास एक ऐसे सिख का किरदार निभा रहे हैं जिनका परिवार 1984 के दंगों से प्रभावित हुआ. सोहा अली खान उनकी पत्नी की भूमिका में हैं.
फिल्म का संदेश
हैरी सचदेव का कहना है कि फिल्म वास्तविक घटनाओं पर आधारित है. वे बताते हैं कि जब 1984 के दंगे हुए उनकी उम्र महज सात साल थी और उनके परिवार को भी इससे जूझना पड़ा था, "हम लोग बहुत खौफनाक दौर से गुजरे थे. वह एक ऐसा हादसा था जो मेरे दिल में बैठ चुका था. मेरे जानने वाले कई लोगों की भी जान गयी. मेरे पिता ने उस वक्त अपने अनुभवों पर कुछ लिखा और मैंने उसी को इस्तेमाल करते हुए अपनी स्क्रिप्ट तैयार की."
सचदेव बताते हैं कि फिल्म की शूटिंग के दौरान दो बार उनके सेट पर तोड़फोड़ की गयी. उनका कहना है कि हमला करने वाले लोगों ने उनकी फिल्म के संदेश को गलत आंका, "हम हिन्दुओं और सिखों के बीच में नफरत नहीं फैला रहे हैं. हम यही दिखा रहे हैं कि राजनीतिक कारणों से जो भी हुआ उसके बावजूद हिन्दुओं ने ही सिखों की मदद की थी. राजनीति इंसानियत पर हावी नहीं हो सकी, यही हमारी फिल्म का संदेश है."
फिल्म का निर्देशन नेशनल अवॉर्ड जीत चुके शिवाजी लोटन पाटिल ने किया है. सचदेव इसी साल फिल्म को रिलीज करने की तैयारी में हैं.
रिपोर्ट: ईशा भाटिया, बर्लिनाले