1984 के सिख दंगों में 38 साल बाद हुई गिरफ्तारी
१५ जून २०२२1984 के सिख दंगों की जांच के लिए बनी विशेष जांच टीम यानी एसआईटी अभी कुछ और अभियुक्तों की गिरफ्तारी की कोशिश में है. दंगों की जांच के लिए साल 2019 में राज्य सरकार ने एसआईटी का गठन किया था. एसआईटी प्रभारी बालेंदु भूषण ने डीडब्ल्यू को बताया, "एसआईटी ने 11 जघन्य अपराध वाले मामलों की जांच शुरू की थी जिनमें अब तक 67 अभियुक्तों के नाम चिह्नित किए गए हैं. लेकिन इनमें सिर्फ 45 लोग ही गिरफ्तारी के लायक हैं क्योंकि बाकी लोगों की उम्र काफी ज्यादा है."
उन्होंने आगे बताया कि अधिक उम्र और गंभीर बीमारियों के कारण कई अभियुक्तों की गिरफ्तारी मुश्किल है लेकिन जो गिरफ्तार करने लायक हैं उन्हें जल्दी ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा. आज गिरफ्तार किए गए सभी चार लोग साठ साल से ज्यादा की उम्र के हैं.
एसआईटी प्रभारी ने बताया कि सिख दंगे के दौरान भीड़ ने कानपुर की निराला नगर स्थित एक इमारत पर धावा बोल दिया था जहां दस से ज्यादा सिख परिवार रहते थे. इस इमारत में आग लगा दी गई थी और तीन लोगों को जिंदा जला दिया गया था. कुछ लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. बालेंदु भूषण ने बताया कि बुधवार को गिरफ्तार किए गए सफीउल्ला खां, योगेंद्र सिंह बब्बन, विजय नारायण सिंह और अब्दुल रहमान इसी मामले में अभियुक्त हैं.
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सामूहिक हत्याएं
1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कानपुर में हुए सिख विरोधी दंगे में 127 लोगों की हत्या हुई थी. हालांकि अनाधिकारिक आंकड़ों की मानें तो इससे कहीं ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. फरवरी 2019 में शासन ने एसआईटी गठित की थी जिसका कार्यकाल चार महीने बढ़ा दिया गया है. एसआईटी को तीस सितंबर तक अपनी जांच पूरी करनी है.
उसी साल कानपुर के अलावा राजधानी में दिल्ली में भी बड़े पैमाने पर सिख विरोधी दंगे हुए थे जहां 2,700 लोग मारे गए थे. दिल्ली में भी एसआईटी का गठन किया गया था और गंभीर धाराओं में 323 मुकदमे दर्ज हुए थे लेकिन सात साल में दिल्ली की एसआईटी सिर्फ आठ मामलों में चार्जशीट दाखिल कर पाई. एसआईटी प्रभारी बालेंदु भूषण ने बताया कि कानपुर में ढाई साल में ही 11 मुकदमों में चार्जशीट तैयार कर ली गई है और चार लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया गया है.
पहले वाली जांच में क्या हुआ
सिख विरोधी दंगों के दौरान कानपुर में हत्या, लूट और डकैती जैसी गंभीर धाराओं में 40 मुकदमे दर्ज हुए थे लेकिन सबूत न मिलने के कारण पुलिस ने इनमें से 29 मामलों में फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी. 27 मई, 2019 को इस मामले में यूपी सरकार ने एसआईटी गठित की. एसआईटी ने विभिन्न राज्यों में रह रहे पीड़ित परिवारों के लोगों से मिलकर बयान दर्ज किए और दस्तावेज जुटाए. बालेंदु भूषण के मुताबिक, जिन मामलों में फाइनल रिपोर्ट लग चुकी थी, उनमें से भी कई मुकदमों को अग्रिम विवेचना के लायक माना गया और जांच शुरू की गई जिनमें 11 मामलों में विवेचना पूरी हो गई है.
उन्होंने बताया कि इन सभी मामलों में 146 लोगों को दंगों में शामिल होने के लिए चिह्नित किया गया जिनमें से 79 लोगों की मौत हो चुकी है. एसआईटी के मुताबिक 67 जीवित अभियुक्तों में सिर्फ 20-22 लोग ही ऐसे हैं जिनकी गिरफ्तारी की कोशिश हो रही है क्योंकि बाकी लोगों की उम्र 75 साल से ज्यादा है और वो लोग गंभीर बीमारियों से जूझ भी रहे हैं. इन लोगों की गिरफ्तारी के लिए शासन को रिपोर्ट भेजी गई थी और शासन से अनुमति मिलने के बाद चार लोगों की गिरफ्तारी की गई है.
कैसे सबूत हाथ लगे
एसआईटी ने पिछले साल अगस्त में एक घर में दंगे के साक्ष्य मिलने का दावा किया था लेकिन वहां रह रहे लोगों का कहना था कि जिस घर में एसआईटी खून के धब्बे और अन्य साक्ष्य मिलने दावा कर रही है, उस घर में पिछले कई साल से पानी साफ करने का प्लांट लगा है.
एसआईटी ने पिछले साल दस अगस्त को दावा किया था कि एक घर के दो बंद पड़े कमरों में उन्हें 36 साल पुरानी घटना के कई साक्ष्य मिले हैं जिनमें मानव रक्त और शरीर के कुछ नमूनों के अलावा शवों को जलाए जाने के साक्ष्य भी शामिल हैं. लेकिन उसी मकान में रह रहे मौजूदा मकान मालिक ने इन सभी दावों को खारिज कर दिया था.
मकान मालिक का कहना है कि उनके पिता ने साल 1990 में यह मकान खरीदा था और तब से उनके घर में न तो कोई कमरा बंद पड़ा है और न ही दस अगस्त को आई एसआईटी टीम ने ऐसे कोई साक्ष्य यहां से जुटाए हैं. एसआईटी ने इससे पहले भी कुछ साक्ष्य मिलने के दावे किए थे लेकिन स्थानीय लोगों ने उस पर भी सवाल उठाए थे.
कानपुर में गुमटी नंबर पांच के पास दर्शनपुरवा में दंगों का सबसे ज्यादा प्रभाव था. वहां के रहने वाले और एक जनरल स्टोर के मालिक विशाखा सिंह 1984 के दंगों के चश्मदीद रहे हैं और अपने कई परिजनों और परिचितों को खो चुके हैं. विशाखा सिंह बताते हैं, "एसआईटी को कहां से और कैसे सबूत मिल रहे हैं, किसी को नहीं मालूम. जिन घरों में लोग तीस-पैंतीस साल से रह रहे हों वहां खून के धब्बे जैसे सबूत कैसे मिल सकते हैं, यह तो एसआईटी ही बता सकती है. दरअसल, इन्हें जांच में कुछ न कुछ तो दिखाना ही है तो कभी बाल, कभी दांत, कभी हड्डी और कभी खून के धब्बे मिलने के दावे करने लगते हैं.”
कानपुर के जिन इलाकों में दंगों का सबसे ज्यादा असर था, वहां रहने वाले तमाम सिख परिवार घरों को छोड़कर चले गए थे जिन्हें बाद में दूसरे लोगों ने खरीद लिया. हालांकि कई परिवार जिन्होंने अपने घरों को नहीं बेचा था, वो दोबारा वहां लौट आए. स्थानीय लोगों के मुताबिक, इतने समय बाद किसी तरह का साक्ष्य मिलना नामुमकिन है क्योंकि ज्यादातर घर इस्तेमाल हो रहे हैं और कुछ घरों को तो तोड़कर वहां नया घर बना दिया गया है.