1977 की जीत 1980 में चकनाचूर हो गई
१ मई २०१९राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक नागरिक स्वतंत्रताओं को समाप्त कर दिया गया था और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने व्यापक शक्तियां अपने हाथ में ले ली थीं.
आपातकाल की वजह से इंदिरा गांधी की लोकप्रियता कम हुईं और चुनावों में उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ी. 23 जनवरी को गांधी ने मार्च में चुनाव कराने की घोषणा की और सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा कर दिया. चार विपक्षी दलों- कांग्रेस (ओ), जनसंघ, भारतीय लोकदल और समाजवादी पार्टी ने जनता पार्टी के रूप में मिल कर चुनाव लड़ने का फैसला किया.
आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों और मानव अधिकारों के उल्लंघन की जनता पार्टी ने मतदाताओं को याद दिलाई और कहा कि इस दौरान अनिवार्य बंध्याकरण और राजनेताओं को जेल में डालने जैसा काम भी किया गया था. इस चुनाव पूर्व अभियान में कहा गया कि चुनाव तय करेगा कि भारत में "लोकतंत्र होगा या तानाशाही." इससे कांग्रेस आशंकित दिख रही थी. कृषि और सिंचाई मंत्री बाबू जगजीवनराम ने पार्टी छोड़ दी और ऐसा करने वाले कई लोगों में से वे एक थे.
कांग्रेस ने एक मजबूत सरकार की जरूरत होने की बात कहकर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की लेकिन लहर इसके खिलाफ चल रही थी. कांग्रेस को स्वतंत्र भारत में पहली बार चुनावों में हार का सामना करना पड़ा और जनता पार्टी के नेता मोरारजी देसाई ने 298 सीटें जीतीं. उन्हें चुनावों से 2 महीने पहले ही जेल से रिहा किया गया था। देसाई 24 मार्च को भारत के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने.
कांग्रेस की लगभग 200 सीटों पर हार हुई. इंदिरा गांधी, जो 1966 से सरकार में थीं और उनके बेटे संजय गांधी चुनाव हार गए.
7वीं लोकसभा 1980 : जनता ने फिर इंदिरा को सौंपी सत्ता की चाबी
सातवीं लोकसभा के लिए 1980 में हुए चुनाव में एक बार फिर इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हुई. जनता पार्टी के नेताओं के बीच की लड़ाई और देश में फैली राजनीतिक अस्थिरता ने कांग्रेस (आई) के पक्ष में काम किया, जिसने मतदाताओं को इंदिरा गांधी की मजबूत सरकार की याद दिला दी.
कांग्रेस ने लोकसभा में 353 सीटें जीतीं और जनता पार्टी या बचे हुए गठबंधन को मात्र 31 सीटें मिलीं, जबकि जनता पार्टी सेक्युलर को 41 सीटें मिली थीं. माकपा 37 सीटें जीतने में सफल रही.
इसी दौर में इंदिरा गांधी की पार्टी का नाम बदलकर कांग्रेस (आई) रखा गया. उस वक्त कांग्रेस का चुनावी नारा था 'काम करने वाली सरकार को चुनिए' ये नारा इसलिए दिया गया क्योंकि जनता पार्टी की सरकार काम में कम और सत्ता संघर्ष में ज्यादा लिप्त थी.
सिर्फ तीन साल के अंदर इमरजेंसी से खफा जनता ने कांग्रेस को दोबारा सत्ता की चाभी थमा दी। इंदिरा गांधी की जीत ने कांग्रेस की दो मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टियों का सूपड़ा साफ कर दिया. राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता के लिए 54 सीटें भी जनता दल और लोक दल को नसीब नहीं हुईं। इसी दौरान आठवीं लोकसभा से पहले भाजपा का गठन हुआ और इसके पहले अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी बने.
(भारत के प्रधानमंत्री)