17वीं शताब्दी में यूरोप में था प्लेग
२९ जनवरी २०१६प्लेग ने बीते सालों में कई चरणों में यूरोप समेत कई देशों में लाखों की जान ली है. वैज्ञानिकों का दावा है कि प्लेग का परजीवी यूरोप में पहले से मौजूद हो सकता है. साइंस की प्लोस वन पत्रिका में छपी रिपोर्ट के मुताबिक वैज्ञानिकों को हाल में मिले कंकालों में बैक्टीरियल जींस मिले हैं जो सैकड़ों साल पहले इस परजीवी के यूरोप में होने के संकेत देते हैं.
यह दर्शाता है कि प्लेग का दूसरे महाद्वीपों से आना जरूरी नहीं है, जैसा माना जाता रहा है. इसका मतलब है कि बैक्टीरियम येरसीनिया पेस्टीस यूरोप में पहले ही मौजूद था. शायद खून चूसने वाले जूं जैसे जीवों में. प्लेग के कारण मुख्य रूप से अफ्रीका में बड़ी संख्या में लोग जान गंवाते रहे हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक 2013 में प्लेग के 800 मामले सामने आए जिनमें 126 की मौत हो गई. जर्मन शहर म्यूनिख में सेना के माइक्योबायोलॉजी इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक होल्गर शोल्स के मुताबिक, "कंकालों के दांतों की मज्जा में हमें ऐसे परजीवी के डीएनए के लक्षण मिले हैं जिससे प्लेग हो सकता था और उसकी मॉलीक्यूलर फिंगरप्रिंटिंग हुई." वैज्ञानिकों को ये कंकाल म्यूनिख और ब्रांडेनबुर्ग में मिले. उनका कहना है कि दोनों ही जगह से मिले कंकालों में यह पाया गया.
शोल्स ने म्यूनिख की लुडविष मैक्सीमिलियन यूनिवर्सिटी और स्टेट कलेक्शन फॉर एंथ्रोपोलॉजी एंड पेलिओएनैटोमी के रिसर्चरों की टीम के साथ मिलकर 30 कंकालों की जांच की. उनमें से 6 के जेनेटिक मैटीरियल को विश्लेषण के लिए इस्तेमाल किया गया. टीम ने इनसे पता लगाया कि ये 14वीं शताब्दी के मध्य से 17वीं शताब्दी के बीच के समय के कंकाल हैं. अन्य यूरोपीय कंकालों के डाटा से भी उनकी तुलना की गई.
अब तक माना जाता रहा है कि व्यापारियों, नाविकों और एशिया, अफ्रीका और मध्यपूर्व से आने वाले अन्य लोगों के साथ यह परजीवी यूरोप आया. यह परजीवी किस जीव के भीतर रहता था यह ज्ञात नहीं है. शुल्स का अनुमान है कि यह जीव जूं हो सकती है, लेकिन फिलहाल इसे स्पष्ट नहीं किया जा सकता.
एसएफ/ओएसजे (डीपीए)