158 चुनाव हारने वाला उम्मीदवार
३० अप्रैल २०१४टायर की दुकान चलाने वाले पद्मराजन ने 1988 में हारना शुरू किया, जो अब भी जारी है. उनका कहना है कि वह तो अपने नागरिक अधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं, "उस वक्त मैं साइकिल में पंचर लगाने की दुकान चलाता था. तब मैंने सोचा कि आम आदमी और सामान्य आमदनी के साथ समाज में मेरा कोई रुतबा नहीं था लेकिन मैं चुनाव तो लड़ ही सकता था."
उस चुनाव में वह हार गए. फिर हारे, उसके बाद फिर लड़े, फिर हारे. सिलसिला 26 साल से चल रहा है. उन्होंने विधानसभा से लेकर लोकसभा तक का चुनाव लड़ा है. उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के खिलाफ भी लड़ा है. उनका कहना है कि बार बार उनकी जमानत जब्त हो जाती है और इस तरह वह 12 लाख रुपये गंवा चुके हैं. लेकिन उनका नाम लिम्का रिकॉर्ड बुक में आ चुका है.
बार बार हार
टायर दुकान के साथ अब वे होम्योपैथी की प्रैक्टिस भी करने लगे हैं. वह कहते हैं कि नतीजों की परवाह उन्हें नहीं होती, "मैंने कभी कोई चुनाव जीत और नतीजों के लिए नहीं लड़ा. नतीजे तो मेरे लिए कोई मतलब ही नहीं रखते." उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2011 में रहा, जब उन्होंने तमिलनाडु के गृह नगर मेत्तूर से विधानसभा चुनाव लड़ा. तब उन्हें 6273 वोट मिले. तब उन्हें यह भी उम्मीद जगी कि एक दिन वह जीत हासिल कर सकते हैं, "मैं तो सिर्फ यह चाहता हूं कि लोग ज्यादा से ज्यादा चुनावों में हिस्सा लें. यह तो लोगों में जागरूकता पैदा करने की कोशिश है."
पद्मराजन चुनाव हारने वालों में सबसे बड़ा नाम बनते जा रहे हैं. हालांकि यह रिकॉर्ड काका जोगिंदर सिंह उर्फ धरती पकड़ के नाम है, जो 300 से ज्यादा चुनाव हार चुके हैं. उनकी 1998 में मौत हो गई थी.
बुधवार को वह एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं. वडोदरा से नरेंद्र मोदी के खिलाफ लड़ रहे हैं. 16 मई को जब नतीजे आएंगे, तो शायद पद्मराजन एक बार फिर नाकाम घोषित कर दिए जाएं. पर उन्हें परवाह नहीं, "मैं हमेशा बड़े नेताओं के खिलाफ लड़ना पसंद करता हूं. फिलहाल अगर कोई सबसे बड़ा वीआईपी है, तो वह मोदी ही हैं."
एजेए/एमजे (एएफपी)