हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन की सिफारिश वापस ले सकती है सरकार
२० मई २०२०कोरोना के इलाज के लिए अब तक वैकल्पिक बचाव मानी जा रही हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन (एचसीक्यू) का प्रयोग भारत सरकार जल्द ही रोक सकती है. कुछ देशों में किए गए निर्णायक टेस्ट में फेल हो जाने के बाद इस दवा की उपयोगिता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं और देश के मेडिकल एक्सपर्ट और हेल्थ एक्टिविस्ट इसे इस्तेमाल किए जाने को लेकर वैज्ञानिक और नैतिक सवाल उठा रहे हैं. भारत की सबसे बड़ी मेडिकल रिसर्च बॉडी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) इस दवा का इस्तेमाल रोक सकती है और अपनी तय गाइडलाइंस में बदलाव कर दवाओं का नया मिश्रण सुझा सकती है. स्वास्थ्य मंत्रालय और आईसीएमआर के भीतर इस मुद्दे पर चल रहे बहस की पुष्टि करते हुए एक अधिकारी ने डीडब्ल्यू से कहा कि इस बारे में फैसला एजेंसी की नेशनल साइंटिफिक टास्क फोर्स को ही करना है.
महत्वपूर्ण है कि अप्रैल में जब अमेरिका ने भारत से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन की मांग की तो बड़ा हड़कम्प मचा. तब मांग उठी थी कि मलेरिया के इलाज में दी जाने वाली इस दवा को भारत पहले अपनी जनता के लिए पर्याप्त मात्रा में सुरक्षित रखे और उसके बाद ही किसी अन्य देश को सप्लाई करे. लेकिन तकरीबन डेढ़ महीने बाद ये साफ हो गया है कि हाइड्रोक्लोरोक्विन न केवल कोरोना से लड़ने में बेअसर है बल्कि टेस्ट के दौरान इंसान पर इसके प्रतिकूल असर (साइड इफेक्ट) भी दिखे हैं.
एहतियातन इस्तेमाल की दवा
भारत में अब तक कोरोना के एक लाख से अधिक मरीजों की पहचान हो चुकी है और 3 हजार से अधिक लोगों की जान जा चुकी है. इस बीमारी की कोई दवा न होने के कारण हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन को इसका इलाज सुझाया गया था. आईसीएमआर और स्वास्थ्य मंत्रालय ने बचाव के तौर पर इसके इस्तेमाल की अनुमति दी है ताकि कोरोना पॉजिटिव मरीजों के इस्तेमाल में लगे हेल्थ वर्कर और गंभीर रूप से बीमार मरीज इसे ले सकें और अपना बचाव कर सकें. इसके अलावा निजी अस्पतालों में गंभीर रूप से बीमार कोरोना मरीजों पर इसका दवा का इस्तेमाल किया जा रहा है.
हालांकि पहले मेडिकल पत्रिका न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के बेअसर होने की खबर छपी और उसके बाद चीन और फ्रांस में मरीजों पर किए गए रेंडमाइज्डकंट्रोल ट्रायल (आरसीटी) में भी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन फेल हो गई. आरसीटी किसी दवा के प्रभाव को जानने का सबसे प्रभावकारी और विश्वसनीय तरीका है. दोनों ही देशों में किए गए ट्रायल में पाया गया कि दवा न केवल अप्रभावकारी है बल्कि मरीज पर इसका बुरा असर भी हो रहा है. डीडब्ल्यू ने इस बारे में आईसीएमआर के निदेशक बलराम भार्गव से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी. लेकिन आईसीएमआर में वैज्ञानिक और मीडिया कॉर्डिनेटर डॉ लोकेश शर्मा ने हमें बताया, "इस बारे में पहले से तय गाइडलाइंस पब्लिक डोमेन में हैं. कमेटी ( साइंटिफिक टास्क फोर्स) में जो भी फैसला लिया जाएगा उसकी सूचना मीडिया को दी जाएगी.”
इससे पहले आईसीएमआर के विशेषज्ञ अप्रैल में ही कह चुके हैं कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के असर को लेकर इतने कम प्रमाण हैं कि उसके बहुत सीमित इस्तेमाल की सलाह दी जा रही है. आईसीएमआर के मुख्य महामारी विशेषज्ञ डॉ. रमन गंगाखेड़कर ने कोरोना बीमारी के विकराल रूप को देखते हुए चेतावनी दी थी, "यह पैनिक जो फैल चुका है उसमें अक्सर यह दिखाई देता है कि हमारी सोच इमोशनल हो जाती है. हम सोचते हैं कि मैं भी खा लूं तो अच्छा होगा. इससे बचना हमारे लिए बहुत जरूरी है क्योंकि जब तक हमारे पास उतना एविडेंस नहीं आएगा तो न तो हम मरीजों को यह दवा लेने को बोलेंगे और न उनकी सेहत के लिए यह अच्छा होगा. तो हम इसकी सलाह नहीं देंगे क्योंकि कोई भी दवा जो होती है उसके साइड इफेक्ट होते हैं, वो डॉक्टर को मालूम होते हैं. किसको देना चाहिए और कैसे देना चाहिए इसका हमने कभी पता नहीं किया.”
सबूत नहीं, पर दवा का धड़ल्ले से इस्तेमाल
हैरानी की बात है कि इसके बावजूद भारत में यह दवा मरीजों को बेरोकटोक दी जा रही है. जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहे संगठनों का कहना है कि भारत में कोरोना बीमारी से लड़ने में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन की उपयोगिता को लेकर कभी कोई स्टडी या ट्रायल नहीं हुआ इसलिए आईसीएमआर और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा इस दवा का इस्तेमाल जिस तरह से किया जा रहा उसे लेकर कई सवाल हैं.
पब्लिक हेल्थ के लिए काम कर रहे संगठन ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क की को-कन्वीनर मालिनी आइसोला कहती है, "हमें इस बात की जानकारी है कि राज्यों का आईसीएमआर और स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ कोई तालमेल नहीं है. मिसाल के तौर पर एचसीक्यू के इस्तेमाल के लिए महाराष्ट्र के मुंबई प्रशासन ने अपना अलग ही प्रोटोकॉल बनाया है. वहां वह न केवल गंभीर रूप से बीमार मरीजों बल्कि ऐसे मरीजों में भी इस दवा (एचसीक्यू) का इस्तेमाल कर रहे हैं जो कोरोना के एसिम्पटोमैटिक (बिना लक्षण वाले) मरीज हैं. इन लोगों को यह दवा देना केंद्र सरकार की गाइडलाइंस का सीधा-सीधा उल्लंघन है. हमने देखा है कि निजी अस्पताल भी धड़ल्ले से मरीजों पर इस दवा को इस्तेमाल कर रहे हैं और कई बार तो मरीजों को इस बारे में बताया भी नहीं जा रहा कि उन्हें ये दवा दी जा रही है. ऐसा करना बिल्कुल अनैतिक है.”
जाहिर तौर पर जब यह दवा सामान्य से लेकर गंभीर रूप से बीमार मरीजों पर बेअसर हो गई हो और इसके साइड इफेक्ट साबित हुए हों तो उसके इस्तेमाल की नैतिकता को लेकर भी आईसीएमआर पर दबाव है और इसे वापस लिए जाने की पूरी संभावना बताई जा रही है. इस बीच भारत के पड़ोसी बांग्लादेश ने कोरोना के खिलाफ दवा ढूंढने में कामयाबी का दावा किया है तो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और जापान के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने भी संयुक्त शोध में कहा है कि आयुर्वेदिक जड़ी अश्वगंधा में एक कुदरती तत्व हो सकता है जो कोरोना की दवा बनाने में मददगार हो. शोधकर्ताओं ने पाया है कि अश्वगंधा से मिलने वाला विथानिया सोमनिफेरा और कैफिक एसिड फिनिथाइल इस्टर में कोरोना से लड़ने की दवा बनाने की क्षमता है.
__________________________
हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore