स्विस बैंकों पर अमेरिका और जर्मनी का दबाव
१२ अगस्त २०१२स्विट्जरलैंड लंबे समय से धनी अमेरिकियों का पैसा छिपाने के आरोपों को झुठलाता रहा है. लेकिन अब अमेरिकी अधिकारी 11 स्विस बैंकों की जांच कर रहे हैं और यूरोपीय देशों में भी दबाव बढ़ रहा है. यूरोपीय देशों में टैक्स का बढ़ता बोझ झेल रहे करदाता कई बैंकिंग धांधलियों के बाद अब बैंकों के खिलाफ कार्रवाई चाहते हैं. स्विट्जरलैंड को अपने वित्तीय उद्योग के माथे से धब्बा मिटाना है. अमेरिकी अधिकारी वहां हो रहे चुनावों को ध्यान में रख रहे हैं तो जर्मनी में स्विटजरलैंड के साथ हुए टैक्स समझौते का अनुमोदन रुका पड़ा है. विपक्षी एसपीडी इसमें बाधा तो डाल ही रही है, वह स्विस बैंकों में जर्मन खाताधारियों के बारे में सूचनाएं खरीद कर स्विस अधिकारियों पर शिकंजा कस रही हैं.
जर्मनी के साथ हुआ समझौता स्विटजरलैंड के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि इस समझौते के बाद वह दूसरे यूरोपीय देशों के साथ भी ऐसे समझौतों की उम्मीद कर सकता है. लेकिन फिलहाल उसे इंतजार करना होगा. यह आसान नहीं क्योंकि उसकी जीडीपी का 7 फीसदी हिस्सा बैंकिंग क्षेत्र से आता है. जब तक बैंकों को यह पता नहीं चल जाता कि उन्हें विदेशी टैक्स अधिकारियों को कितनी सूचना देनी है, वे नए ग्राहक को आकर्षित करने में कामयाब नहीं होंगे.
नतीजा यह हुआ है कि देश के प्रमुख बैंकों के शेयरभाव गिर रहे हैं. क्रेडिट सुइस और यूलियस बेयर उन प्रमुख बैंकों में शामिल हैं जिनकी जांच चल रही है. स्विटजरलैंड की वित्त मंत्री एवेलीन विडमर-श्लुम्प्फ की परेशानी समझी जा सकती है, "हम अमेरिका के साथ आज ही समझौते पर दस्तखत करने के लिए तैयार हैं. हम समझते हैं कि हमने अच्छा प्रस्ताव दिया है, लेकिन यह अमेरिका पर है कि इसे स्वीकार करता है या नहीं." वित्त मंत्री स्वीकार करती हैं कि यह इस पर निर्भर करेगा कि अमेरिका चुनाव से पहले या उसके बाद समझौता चाहता है. जानकार अगले साल समझौता होने की उम्मीद कर रहे हैं.
अमेरिका के साथ समझौता करने के प्रयासों के तहत स्विटजरलैंड अमेरिका का करचोरी रोकने वाला कानून फटका (एफएटीसीए) से सहमत हो गया है. हालांकि इस कानून को लागू करने के नियम नहीं बने हैं लेकिन बहुत से स्विस बैंकर इसे बड़ी बाधा मान रहे हैं जो उनके ग्राहकों को अमेरिकी प्रतिभूतियों में निवेश करने से रोकता है. स्विटजरलैंड इस कानून को मानकर अमेरिका में समझौते के लिए माहौल बनाना चाहता था, लेकिन यह रणनीति कामयाब नहीं हुई है. अमेरिकी सरकार अब स्विस बैंकों पर धनी अमेरिकियों का नाम और उनके बारे में खातों की जानकारी मांग रही है जिन्होंने अपना पैसा स्विटजरलैंड में छुपा रखा है. 2009 में यूबीएस ने आपराधिक मुकदमे से बचने के लिए ये जानकारियां अमेरिका को दे दी थीं.
क्रेडिट सुइस और यूलियस बेयर के अमेरिकी अधिकारियों को कर्मचारियों के नाम सौंपे जाने के बाद तनाव इतना बढ़ गया है कि बहुत से स्विस बैंकरों को यह डर सताने लगा है कि अमेरिकी अधिकारी उन्हें भी निशाना बना सकते हैं. शुरू में सहयोग दिखाने का एक कदम इस बीच डर में बदल गया है. विदेशों में गिरफ्तारी और अमेरिका प्रत्यर्पित किए जाने के डर से स्विस बैंकर देश से बाहर नहीं निकल रहे हैं.
यूरोप में भी हालात बेहतर नहीं हैं. वित्तीय संकट का सामना कर रहे यूरोपीय देशों को अतिरिक्त राजस्व की जरूरत है और खाताधारियों के बारे में चुराई गई जानकारियों का बढ़ता कारोबार उनके लिए फायदेमंद माहौल बना रहा है. इस तरह की जानकारियां जर्मनी के साथ तय लेकिन संसद से मंजूर नहीं हुए समझौते को मुश्किल में डाल रही है. एक अनुमान के मुताबिक जर्मनी के नागरिकों ने स्विस बैंकों में 150 अरब यूरो यानी 10 हजार अरब रुपया जमा कर रखा है.
जर्मन प्रांत नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के टैक्स अधिकारियों ने कहा है कि उन्हें जर्मन खाताधारियों के कुछ नए सीडी मिले हैं और वे उनकी मदद से करचोरों की जांच कर रहे हैं. इन सूचनाओं के सामने आने के बाद विपक्षी राजनीतिज्ञ चांसलर अंगेला मैर्केल पर करचोरों के खिलाफ नर्मी दिखाने का आरोप लगा रहे हैं और स्विटजरलैंड के साथ टैक्स समझौते में संशोधन की मांग कर रहे हैं. जर्मनी ने टैक्स समझौते के लागू होने के बाद खाताधारियों की जानकारी खरीदने से मना किया है, लेकिन ताजा मामले से लगता है कि इसकी वजह से अधिकारी समझौते के अनुमोदन में देर लगा रहे हैं.
एमजे/एनआर (रॉयटर्स)