स्लम में नई पहचान की कोशिश
११ फ़रवरी २०१३अक्कू नाम से मशहूर 20 साल के आकाश ढांगर ने अपने साथी हीरा के साथ मिलकर ब्रेक डांस, डीजे और रैप करने वाले युवाओं का एक समूह तैयार किया है. वह कहते हैं, "जब हमने 'स्लमडॉग' नाम सुना तो हमें सुनकर अच्छा नहीं लगा. स्लमडॉग क्यों? झुग्गियों में और भी बहुत कुछ है." उन्होंने बताया कि मशहूर फिसल्म निर्माता डैनी बॉयल की ऑस्कर जीतने वाली फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर देखने के बाद लोगों की मुम्बई के धारावी इलाके के पास वाली इन झुग्गियों को लेकर यही सोच बन गई थी कि यह सिर्फ एक गंदगी से भरा इलाका है. वह इस सोच से खुश नहीं थे.
साल 2009 में जब यह फिल्म भारत में रिलीज हुई तब अक्कू ने ब्रेक डांस सीखना शुरू ही किया था. अक्कू के गुरू हीरा आजकल दिल्ली में रहते हैं. भारत से पहले वह न्यूयॉर्क में अपने परिवार के साथ रहते थे, जहां उन्होंने यह नृत्य कला सीखी. इसी बीच वह अपने एक दोस्त के साथ मुम्बई की झुग्गियों में गए और यहां के बच्चों से मिलने पर उन्होंने उनमें हिप हॉप सीखने की इच्छा देखी.
हीरा ने बताया कि यह एक ऐसा डांस है जिसे लोग एक दूसरे के साथ बांटना पसंद करते हैं. इसे एक साथ करने का अलग ही मजा है. इसी बीच वह अक्कू से मिले और दोनों ने मिलकर इस योजना को आगे बढ़ाने का फैसला किया. आज उनके डांस ग्रुप में मुंबई के अलावा दिल्ली और बंगलोर में 40 से 50 सदस्य हैं. यहां झुग्गियों में रहने वाले बच्चे हिप हॉप डांस के विविध आयाम सीखते हैं. हीरा ने कहा, "नृत्य तो हमारी संस्कृति में है. भारतीय मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चों का वजन आमतौर पर ज्यादा होता है. ये बच्चे उनसे कहीं बेहतर हैं, तरह तरह के स्टेप्स करने में इन्हें वजन की वजह से कोई हिचकिचाहट नहीं होती."
कहां करें अभ्यास
झुग्गी में रहने वाले 18 साल के पंकज शिवपुर के अपने घर में कई परिजनों के साथ रहते हैं और अक्सर उन्हीं के बीच अभ्यास करने की कोशिश करते हैं, लेकिन यह आसान नहीं होता. घर के बाहर संकरा सा रास्ता है जहां बकरियां, बिल्लियां और बच्चे एक साथ भाग दौड़ कर रहे होते हैं. सर के ऊपर तैरते हुए तारों के गुच्छे और उनपर झूलते कपड़े बाकी की जगह घेर लेते हैं. जब कभी भी घर पर अकेले होने का मौका हाथ लगता है वह अभ्यास करते हैं. लेकिन वह कहते हैं, "ज्यादातर मैं किले पर ही चला जाता हूं. वहां इस काम के लिए ज्यादा खुली जगह है."
ब्रिटिश काल में बने मुंबई के 'सिऑन किले' में इनकी क्लास होती है. झुग्गी की संकरी गलियों से दूर इस किले में इनके पास अभ्यास करने की खूब जगह है. किले के खंडहरों में इनके डांस के कई कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं. और तैयारी के लिए संगीत बजाने के लिए किसी इंस्ट्रूमेंट की जरूरत नहीं, मोबाइल फोन है ही.
हीरा कहते हैं, "यह जगह अच्छी है, लेकिन यहां हमारा अभ्यास करना अनौपचारिक है. हम चाहते हैं कि हम मुंबई शहर के अधिकारियों से इन बच्चों के लिए इस जगह को आधिकारिक रूप से मांग लें." इसके अलावा फिलहाल उनके पास कोई और जगह नहीं है.
बॉलीवुड में भी शामिल
हीरा कहते हैं कि इस काम को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें और लोगों के साथ की जरूरत है. अक्कू ने बताया कि एक कार्यक्रम के अंतर्गत उन्हें हिंदी सिनेमा की कुछ फिल्मों में काम करने का अवसर मिला है. इससे उन्हें एक दिन के करीब 2000 रुपये मिल जाते हैं. अक्कू कहते हैं, "कई बार माता पिता शिकायत करते हैं कि उनके बच्चे इसकी वजह से पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. लेकिन मैं इसके सकारात्मक परिणामों की ओर देखता हूं. कुछ बच्चे जो इससे पहले चोरी और शराब पीने जैसी लतों में उलझ गए थे अब उन्होंने वे काम छोड़ दिए हैं. उन्हें मजा आ रहा है."
एसएफ/एमजे (एएफपी)