सिंधिया बीजेपी में, कांग्रेस सरकार खतरे में
११ मार्च २०२०पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस पार्टी छोड़ने से कांग्रेस को दोहरा नुकसान हुआ है. एक वरिष्ठ नेता के पार्टी छोड़ देने से पार्टी के अंदर संगठन का संकट तो गहराया ही है, उनके खेमे के 21 कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे से मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार पर भी खतरा बन आया है. मध्य प्रदेश विधान सभा में 230 सीटें हैं और राज्य में सरकार बनाने के लिए 116 सीटें चाहिए होती हैं. 2018 में हुए विधान सभा चुनावों में कांग्रेस ने 114 सीटें जीती थीं और बीजेपी ने 109. दोनों में से किसी के पास अकेले बहुमत नहीं है. सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को समाजवादी पार्टी के एक विधायक, बसपा के दो और चार निर्दलीय विधायकों का समर्थन मिला था और इनके समर्थन से वरिष्ठ नेता कमल नाथ के नेतृत्व में कांग्रेस ने सरकार बना ली.
चुनाव में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन के पीछे सिंधिया का भी हाथ माना जा रहा था, लिहाजा उन्हें मुख्यमंत्री पद या कम से कम उप-मुख्यमंत्री पद मिलने की उम्मीद थी. लेकिन उन्हें दोनों में से कुछ नहीं मिला. उन्हें पार्टी संगठन में महासचिव का पद दे दिया गया और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में संगठन का प्रभारी बना दिया गया. सिंधिया इस पद से संतुष्ट नहीं थे और वे मध्य प्रदेश में ही कोई दबदबे वाला पद चाह रहे थे, लेकिन कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने उनका मन नहीं रखा. ये भी बताया जा रहा है कि अप्रैल में राज्य सभा में खाली होने वाली मध्य प्रदेश की सीटों में से भी किसी भी सीट पर कांग्रेस उन्हें मनोनीत नहीं कर रही थी और इन्हीं सब कारणों से नाराज हो कर सिंधिया ने पार्टी छोड़ने का फैसला किया.
सिंधिया का महत्व
ग्वालियर के भूतपूर्व राजघराने के वारिस ज्योतिरादित्य सिंधिया का जाना कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है. वे अपने 19 साल लम्बे राजनैतिक करियर की शुरुआत से ही कांग्रेस के साथ रहे और इस दौरान वे सांसद, केंद्रीय मंत्री और पार्टी महासचिव रहे. उनके पिता माधवराव सिंधिया नौ बार सांसद रहे थे और वे भी कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता थे. ग्वालियर का राजघराना होने के नाते सिंधिया परिवार की इलाके में बहुत प्रतिष्ठा है. वहां मतदाताओं के बीच भी उनकी बात सुनी जाती है और कई नेता उनके प्रति वफादार हैं. उनके जाने से कांग्रेस के सामने मौजूदा संकट के अलावा दीर्घकालिक सवाल भी खड़ा हो गया है कि इस इलाके में कांग्रेस का दबदबा अब कौन वापस लाएगा.
संकट में कमल नाथ सरकार
मध्य प्रदेश में कमल नाथ सरकार खतरे से दूर नहीं है. बागी विधायकों ने अपना इस्तीफा विधान सभा के स्पीकर को भेज दिया है और अगर इस्तीफा दे चुके विधायकों का त्यागपत्र स्पीकर स्वीकार कर लेते हैं तो निश्चित ही कांग्रेस के पास विधान सभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए संख्या बल नहीं रह जाएगा. इसी की तैयारी में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही अपने अपने विधायकों को सुरक्षित करना शुरू कर दिया है. इससे पहले कर्नाटक में आजमाए गए 'रिसोर्ट पॉलिटिक्स' की शुरुआत हो गई है. कांग्रेस को उम्मीद है कि पुराने खिलाड़ी कमल नाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह मिल कर कुछ विधायकों को अपनी तरफ ले आएंगे और संख्या जुटा लेंगे.
कांग्रेस में संगठन का संकट
सिंधिया हाल में कांग्रेस छोड़ने वाले पहले वरिष्ठ नेता नहीं हैं. उनसे पहले छह से भी ज्यादा पूर्व केंद्रीय मंत्री, कम से कम तीन पूर्व मुख्यमंत्री और चार पूर्व प्रदेश अध्यक्ष पार्टी छोड़ कर जा चुके हैं. विजय बहुगुणा, अजीत जोगी, गिरिधर गमांग, जी के वासन, किशोर चंद्र देव, जयंती नटराजन, एस एम कृष्णा, श्रीकांत जेना, शंकरसिंह वाघेला, अशोक तंवर, रीता बहुगुणा जोशी, अशोक चौधरी, हेमंता बिस्वा सर्मा, पेमा खांडू, सुदीप रॉय बर्मन, एन बिरेन सिंह इत्यादि इनमें शामिल हैं.
लेकिन इसके बावजूद पार्टी को मजबूत करने की कोई रणनीति सामने नहीं आ रही है. राहुल गांधी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के इस्तीफे के बाद पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व पर भी सवाल बना हुआ. उनकी मां सोनिया गांधी बतौर कार्यकारी अध्यक्ष पार्टी संभाल तो रही हैं लेकिन उनकी देख रेख के बावजूद पार्टी की समस्याओं पर कोई लगाम नहीं लग रही है. देखना होगा कि मध्य प्रदेश में जन्मे नए संकट की वजह से पार्टी कोई नया कदम उठाती है या नहीं.
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