सही साबित होते आइंस्टीन के अनुमान
१४ मई २०११अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के इस परीक्षण ग्रैविटी प्रोब बी ने आइंस्टीन के गुरुत्वाकर्षण के सामान्य सिद्धांत के दो प्रमुख पूर्वानुमानों की पुष्टि कर दी है. पहला यह कि किसी पिंड का गुरुत्वाकर्षण उसके इर्द गिर्द के अंतरिक्ष और समय के रूप आकार को विकृत कर देता है. और दूसरा कि अपनी धुरी पर घूमता हुआ यह पिंड अपने आस पास के अंतरिक्ष और समय को अपने साथ साथ खींचता चलता है.
आइंस्टीन के इन दो पूर्वानुमानों की पड़ताल करने के उद्देश्य से 2004 में अंतरिक्ष में भेजे गए ग्रैविटी प्रोब बी यानी जीपीबी परीक्षण के तहत बहुत ही अधिक सूक्ष्मता वाले चार जायरोस्कोप इस्तेमाल किए गए. पृथ्वी के गिर्द परिक्रमा करने वाले इन जायरोस्कोपों का काम यह पता लगाना था कि क्या पृथ्वी और अन्य विशाल पिंड अपने गिर्द अंतरिक्ष और समय को उस रूप में प्रभावित करते हैं, जैसा आइंस्टीन का कहना था. और अगर हां, तो किस हद तक. परीक्षण के प्रमुख जांचकर्ता फ्रांसिस ऐवरिट पैलो ऐल्टो कैलिफ़ोर्निया के स्टैनफ़र्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर हैं. उन्होंने परीक्षण की चर्चा करते हुए बताया, "हमारे परीक्षण में जायरोस्कोप पृथ्वी की कक्षा में स्थित किए गए. इस सवाल का जवाब हासिल करने के लिए कि क्या होता है. हमारा जाइयरोस्कोप पिंगपांग की गेंद के नाप और आकार का है और चक्कर काटती हुई इस गेंद को एक सितारे की दिशा में लक्षित किया जाता है. यह देखने के लिए कि परिणाम क्या होता है."
अगर गुरुत्वाकर्षण का अंतरिक्ष और समय पर असर न पड़ता, तो पृथ्वी की ध्रुवीय कक्षा में स्थित किए गए ये जायरोस्कोप हमेशा एक ही दिशा में लक्षित रहते. लेकिन पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के असर से जायरोस्कोपों के चक्कर की दिशा में थोड़ा लेकिन मापा जा सकने वाला परिवर्तन हुआ. और इस तरह आइंस्टीन की धारणा को पुष्टि हासिल हो गई.
न्यूटन और आइंस्टीन के ब्रह्मांड
आइंस्टीन से पहले तक अंतरिक्ष और समय को किसी भी असर से मुक्त माना जाता था. इस संबंध में बात करते हुए फ्रांसिस ऐवरिट कहते हैं, "अगर हम वैज्ञानिक आइजक न्यूटन की परिकल्पना के ब्रह्मांड में रह रहे होते, जहां अंतरिक्ष और समय अबाधित हैं, तो घूमते हुए किसी अदोष गोले की दिशा ज्यों की त्यों रहती. लेकिन आइंस्टीन का ब्रह्मांड इससे अलग है, और उसमें दो अलग अलग तरह के असर होते हैं. पृथ्वी के द्रव्यमान के प्रभाव से अंतरिक्ष में आने वाली विकृति और पृथ्वी के घूमने के परिणाम में अंतरिक्ष में आने वाला खिंचाव."
शहद में डूबी पृथ्वी?
यह खिंचाव किस रूप में पैदा होता है, इसका स्पष्टीकरण ऐवरिट एक बहुत ही दिलचस्प तुलना के साथ करते हैं, "कल्पना करें कि पृथ्वी शहद में डूबी हुई है. तो जब पृथ्वी घूमेगी, तो वह अपने साथ अपने आसपास के उस शहद को भी अपने साथ खींचती चलेगी. इसी तरह वह जायरोस्कोप को भी साथ खींचती चलेगी."
जीपीबी परीक्षण के बारे में ऐवरिट का कहना है कि आइंस्टीन की दो धारणाओं के प्रमाणित होने का पूरी अंतरिक्ष भौतिकी में हो रही खोजों पर असर पड़ेगा.
जीपीबी अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के इतिहास की सबसे अधिक देर तक चली परियोजनाओं में से है, जिसकी शुरुआत 1963 में हुई. उसने ब्योरा जुटाने का अपना काम दिसंबर 2010 में समाप्त किया.
जीपीबी की व्यापक पहुंच
जीपीबी के परिणाम में हुए आविष्कारों का इस्तेमाल जीपीएस तकनीक में किया गया है, जिनके नतीजे में विमान बिना सहायता के उतर पाते हैं. जीपीबी की अतिरिक्त तकनीक नासा के कोबी मिशन में भी इस्तेमाल की गईं, जिस मिशन ने ब्रह्मांड के पृष्ठभूमि प्रकाश का सुस्पष्ट रूप से सही निर्धारण किया. जीपीबी टेक्नोलॉजी की ही सहायता से नासा का गुरुत्वाकर्षण बहाली और जलवायु परीक्षण संभव हो पाया और साथ ही यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का ओशन सर्कुलेशन ऐक्सप्लोर भी.
जीपीबी मिशन की पूरे अमेरिका में एक प्रशिक्षण केंद्र के रूप में भी भूमिका रही है. डॉक्टरेट और मास्टर डिग्रियों से लेकर अंडरग्रैजुएट और हाई स्कूल तक के छात्रों के लिए. वास्तव में जीपीबी पर काम करने वाले ग्रैजुएट छात्रों में से एक ने बिल्कुल पहली महिला अंतरिक्षयात्री होने के इतिहास की रचना की. यह महिला अंतरिक्षयात्री थीं, सैली राइड.
रिपोर्टः गुलशन मधुर, वॉशिंगटन
संपादनः ए जमाल