सवालों के घेरे में सीबीआई
२४ अक्टूबर २०१८पहला मौका ये भी होगा सीबीआई ने अपने ही स्पेशल डायरेक्टर के खिलाफ साजिश रचने और भ्रष्टाचार की धाराओं में एफआईआर दर्ज की. फिलहाल सरकार ने सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना दोनों को छुट्टी पर भेज दिया है और उनकी जगह एम नागेश्वर राव को तत्काल प्रभाव से सीबीआई का अंतरिम प्रमुख नियुक्त कर दिया है.
केंद्र सरकार का यह फैसला दिल्ली हाई कोर्ट में चले हाई वोल्टेज ड्रामे के बाद आया जहां राकेश अस्थाना की गिरफ्तारी पर तो रोक लगा दी गई लेकिन एफआईआर रद्द करने की मांग खारिज कर दी गई.
सीबीआई में शीर्ष पदों पर बैठे इन दो अधिकारियों के बीच की लड़ाई सार्वजनिक होने के बाद 22 अक्टूबर को राकेश अस्थाना के खिलाफ रिश्वतखोरी का मामला दर्ज किया गया था. उनके खिलाफ हैदराबाद के एक व्यवसायी सतीश बाबू की इस शिकायत पर एफआईआर दर्ज कराई गई कि अस्थाना ने सतीश बाबू के खिलाफ जांच रोकने के एवज में तीन करोड़ रुपये की रिश्वत ली.
दूसरी तरफ स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना ने सतीश बाबू से रिश्वत लेने का आरोप डायरेक्टर आलोक वर्मा पर मढ़ दिया और खबरों के मुताबिक इस बारे में एक पत्र कैबिनेट सेक्रेटरी को लिखा. यही नहीं, वर्मा के खिलाफ कोयला और टूजी घोटाले में शामिल कुछ लोगों को भी बचाने और भ्रष्टाचार के कुछ दूसरे आरोप लगाए गए हैं.
उधर, राकेश अस्थाना के खिलाफ दर्ज कराई गई एफआईआर के मुताबिक हैदराबाद के व्यवसायी सतीश बाबू ने दुबई में रहने वाले एक व्यक्ति मनोज प्रसाद की मदद से रिश्वत देने की बात कही है. सतीश बाबू और मोइन कुरैशी कारोबारी पार्टनर हैं. सतीश बाबू के खिलाफ मांस व्यवसायी मोइन कुरैशी मामले में राकेश अस्थाना के ही नेतृत्व में जांच चल रही थी और आरोप हैं कि मोइन कुरैशी को क्लीन चिट देने के लिए दो करोड़ रुपये की रिश्वत का लेन-देन हुआ है.
सीबीआई ने राकेश अस्थाना के अलावा मांस व्यवसायी मोइन कुरैशी मामले में जांच अधिकारी देवेंद्र कुमार को भी सोमवार को गिरफ्तार किया था. सीबीआई का कहना है कि डीएसपी देवेंद्र कुमार ने मोइन कुरैशी मामले में भ्रष्टाचार में राकेश अस्थाना का साथ दिया. सतीश बाबू ने इसी मामले में अपना नाम हटवाने के लिए कथित तौर पर सीबीआई अधिकारियों को रिश्वत दी थी.
दरअसल, सीबीआई में इन दो अधिकारियों के बीच आपसी खींचतान काफी लंबे समय से चली आ रही है लेकिन पानी सिर के ऊपर से अब निकला है. जानकारों के मुताबिक आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के बीच खींचतान पिछले साल अक्टूबर में शुरू हुई जब सीबीआई डायरेक्टर ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त यानी सीवीसी के नेतृत्व वाले पांच सदस्यीय पैनल की बैठक में अस्थाना को स्पेशल डायरेक्टर के तौर पर प्रमोट किए जाने पर आपत्ति जताई.
हालांकि पैनल ने आपत्ति को खारिज करते हुए अस्थाना को प्रमोट कर दिया और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी राकेश अस्थाना को क्लीन चिट दे दी. कुछ ऐसे मामले भी सामने आए जब सीवीसी ने अस्थाना को सीबीआई के नंबर दो की हैसियत से बैठक में बुलाया लेकिन आलोक वर्मा ने लिखित तौर पर सीवीसी को बताया कि उन्होंने अस्थाना को बैठक में शामिल होने के लिए अधिकृत नहीं किया है.
इसके अलावा इसी साल अगस्त महीने में जब राकेश अस्थाना ने सीवीसी और कैबिनेट सचिव को पत्र लिखकर आलोक वर्मा, उनके करीबी और सीबीआई में ही अतिरिक्त निदेशक एके शर्मा के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार का विवरण दिया तो मामला और गर्मा गया. उन्होंने ये भी लिखा कि अभियुक्तों को किस तरह से पद का दुरुपयोग करके बचाने की कोशिश की गई है.
पिछले हफ्ते अस्थाना ने सीवीसी और कैबिनेट सचिव को लिखे पत्र में कहा कि वो सतीश बाबू को गिरफ्तार करना चाहते थे लेकिन आलोक वर्मा ने उस प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया. यही नहीं, आलोक वर्मा ने ऐसे कई मामले भी वापस ले लिए जिनकी जांच राकेश अस्थाना कर रहे थे. इनमें दिल्ली सरकार के मामले और कांग्रेस नेत पी चिदंबरम के खिलाफ जांच संबंधी जैसे राजनीतिक मामले भी शामिल थे.
जानकारों का कहना है कि दरअसल, सरकार सीबीआई का स्थायी निदेशक राकेश अस्थाना को ही बनाना चाहती थी लेकिन वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने उनकी नियुक्ति को चुनौती दे दी जिससे यह पद आलोक वर्मा को देना पड़ा.
हालांकि अब सरकार को पूरे मामले में सफ़ाई देनी पड़ रही है कि वो सीबीआई के निदेशक को कैसे छुट्टी पर भेज सकती है? निदेशक आलोक वर्मा भी इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट चले गए हैं. दरअसल, सीबीआई के निदेशक को नियुक्त करने और उसे हटाने का फैसला प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता की एक कमेटी मिलकर करती है.
सीबीआई में चल रही इस नूराकुश्ती के लिए जिम्मेदार लोगों में एक नाम प्रमुखता से आ रहा है और वो है मांस व्यवसायी और हवाला कारोबारी मोइन कुरैशी. मोइन कुरैशी मामले की ही जांच राकेश अस्थाना कर रहे थे और वहीं से ये पूरा विवाद शुरू हुआ है.
उत्तर प्रदेश के रामपुर में जन्मे मोइन कुरैशी दून स्कूल और दिल्ली के मशहूर सेंट स्टीफेंस कॉलेज से पढ़े हैं. नब्बे के दशक में रामपुर में ही एक कसाईखाने से व्यवसाय की शुरुआत करने वाले कुरैशी ने जल्द ही कई नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों से संबंध बना लिए और कथित तौर पर उसी का फायदा उठाते हुए उन्होंने तमाम और कारोबार में हाथ आजमाया और तरक्की की. उनको जानने वाले बताते हैं कि मोइन ने मांस व्यवसाय को एक नया आयाम दिया और प्रसंस्करण के जरिए मांस उत्पादों के निर्यात को एक नई दिशा दी.
2014 के लोकसभा चुनाव में मोइन कुरैशी का नाम कई जनसभाओं में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी ने लिया और उन्हें कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं का करीबी बताया. फिलहाल मोइन कुरैशी के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय में हवाला कारोबार मामले में जांच चल रही है और उन्हें गिरफ्तार भी किया गया है.