ट्रांसजेंडर भारोत्तोलक पर ओलंपिक में छिड़ी बहस
२ अगस्त २०२१न्यूजीलैंड की रहने वाली लॉरेल हब्बर्ड का जन्म एक पुरुष के रूप में हुआ था. 30 साल की उम्र के बाद उन्होंने अपना लिंग परिवर्तन कराया और महिला बन गईं. उसके बाद उन्होंने ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों के लिए अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) के मानकों को पूरा करने के बाद भारोत्तोलन में फिर से भाग लेना शुरू किया. आईओसी का कहना है कि वो खेलों में भाग लेने वाली खुले तौर पर ट्रांसजेंडर महिला के रूप में जानी जाने वाली पहली खिलाड़ी हैं.
समिति ने इसे ओलंपिक आंदोलन के लिए एक ऐतिहासिक घटना बताया. समिति के मेडिकल प्रमुख रिचर्ड बजट ने टोक्यो में पत्रकारों को बताया, "लॉरेल हब्बर्ड एक महिला हैं, वो अपने देश के भारोत्तोलन संघ के नियमों के तहत हिस्सा ले रही हैं और हम खेलों के लिए चुने जाने और उनमें हिस्सा लेने के लिए उनके हौसले और संकल्प को सलाम करते हैं."
एक तीखी बहस
हालांकि, खेलों में 87 किलो से ऊपर वजन वाली महिलाओं की श्रेणी में उनके भाग लेने की वजह से खेलों में बायोएथिक्स, मानवाधिकार, विज्ञान, निष्पक्षता और पहचान जैसे पेचीदा मुद्दों पर बहस शुरू हो गई है. उनके समर्थक कह रहे हैं कि उनका भाग लेना समावेश और ट्रांस अधिकारों के लिए एक जीत है.
आलोचकों का कहना है कि दशकों तक एक पुरुष के तौर पर रहने की वजह से उनके शरीर में जो विशेषताएं समाई हुई हैं उनकी वजह से दूसरी महिला खिलाड़ियों पर उन्हें एक अनुचित बढ़त है. इस मामले पर बहस काफी तीव्र हो चुकी है और यह कभी कभी सख्त भी हो जाती है.
इंटरनेट पर दोनों पक्ष एक दूसरे पर तंज कसने लगते हैं. इस वजह से न्यूजीलैंड की ओलंपिक समिति को हब्बर्ड को सोशल मीडिया ट्रोलों से बचाने के लिए कई कदम उठाने पड़े हैं. लेकिन आईओसी ने यह माना है कि हब्बर्ड के पास एक "असंगत प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त" है या नहीं इसे लेकर उठने वाले सवाल जायज हैं.
विरोध के स्वर
महिलाओं के खेलों में भाग लेने के कई समर्थकों ने चिंता जताई है कि ट्रांसजेंडर प्रतियोगियों को खेलों में शामिल करना अनुचित है और इससे महिलाओं के खेलों के दर्जे को ऊंचा उठाने में काफी संघर्ष के बाद को सफलता हासिल हुई है उसे नुकसान पहुंच सकता है.
इनमें पथप्रदर्शक समलैंगिक टेनिस स्टार मार्टिना नवरातिलोवा भी शामिल हैं. उनका कहना है, "एक ट्रांसजेंडर महिला जिस तरह से चाहें मैं उन्हें उस तरह से संबोधित कर सकती हूं, लेकिन उनके खिलाफ प्रतिस्पर्धा करने में मुझे खुशी नहीं होगी. यह न्यायपूर्ण नहीं होगा."
कैटलीन जेनर ने 1976 के ओलंपिक खेलों में पुरुषों के डिकैथलन में स्वर्ण पदक जीता था, लेकिन 2015 में उन्होंने खुद के महिला होने की घोषणा की. उन्होंने भी इस साल की शुरुआत में कहा था, "यह बिलकुल न्यायपूर्ण नहीं है." इस बात का भी डर है कि हाई-इम्पैक्ट खेलों में ट्रांस महिलाओं को शामिल करने से दूसरे प्रतियोगियों की सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है. इसी वजह से वर्ल्ड रग्बी ने पिछले साल ही उन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं से बैन कर दिया था.
पुरुषों को शारीरिक फायदे
अपने फैसले के पीछे वर्ल्ड रग्बी ने वैज्ञानिक अध्ययनों का हवाला दिया था जिनमें यह दिखाया गया था कि पुरुष महिलाओं से 30 प्रतिशत ज्यादा मजबूत होते हैं. ओटागो विश्वविद्यालय के फिजियोलॉजिस्ट एलिसन हीथर ने बताया कि पुरुषों को और भी शारीरिक फायदे होते हैं, जैसे लंबे अंग, ज्यादा बड़ी मांसपेशियां, ज्यादा बड़ा दिल और फेंफड़ों में अधिक क्षमता.
हालांकि आईओसी के बजट ने कहा कि यह पुरुषों और महिलाओं की तुलना करने जितना सरल नहीं है. उनका कहना है कि संभव है कि महिलाएं जब लिंग बदलने की प्रक्रिया के बीच हों तब उनके प्रदर्शन का स्तर गिर जाए. उन्होंने यह भी कहा कि और ज्यादा शोध की जरूरत है.
उन्होंने कहा, "इस तथ्य के बारे में भी सोचना चाहिए कि अभी तक चोटी पर कोई ऐसा खिलाड़ी नहीं हुआ है जो खुले तौर पर एक ट्रांसजेंडर महिला हो और मुझे लगता है कि महिलाओं के खेलों को खतरे के बारे में मुमकिन है कि बढ़ा चढ़ा कर बताया गया है."
आईओसी ने माना कि नया तंत्र इस मुद्दे पर आखिरी मत नहीं होगा. यह अंतरराष्ट्रीय खेल संघों के लिए कड़े नियमों की जगह सिर्फ दिशा निर्देश देगा. समिति के प्रवक्ता क्रिस्चियन क्लोए ने कहा, "हमें जिस की जरूरत है उसे हासिल करने के लिए एक अनुकूल स्तर पर पहुंचना होगा और वो स्तर जहां भी हो, संभव है कुछ लोग उसकी आलोचन करेंगे ही. यह अंतिम समाधान नहीं होगा."
सीके/एए (एएफपी)