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सट्टेबाजी के लिए तैयार नहीं भारत

२८ जून २०१३

भारत में मैच फिक्सिंग के बाद सट्टेबाजी को कानूनी दर्जा दिए जाने पर बहस तेज होती जा रही है. जहां कुछ अधिकारी इसे ठीक मान रहे हैं, वहीं पुलिस अधिकारियों का कहना है कि भारत फिलहाल इसके लिए तैयार नहीं है.

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तस्वीर: STR/AFP/Getty Images

क्रिकेट के आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग का मामला भले ही धीरे धीरे ठंडा हो रहा हो लेकिन मैच फिक्सिंग को रोकने के लिए सट्टेबाजी पर फैसला नहीं हो पा रहा है. दिल्ली में फिक्की ने सट्टेबाजी को कानूनी दर्जा देने पर सेमीनार करा डाला, जिसमें दिल्ली पुलिस के विशेष कमिश्नर एसएन श्रीवास्तव ने इसके खिलाफ दलील दी. श्रीवास्तव का कहना है कि "15 या 20 साल बाद भले ही भारत में यह करना आसान होगा लेकिन फिलहाल हालात इसके लिए ठीक नहीं" हैं. उनका इशारा भारत के सामाजिक स्थिति को लेकर था. कम पढ़े लिखे और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को ध्यान में रख कर उन्होंने कहा कि इससे "घर बर्बाद" हो सकते हैं.

फिक्की के अनुसार भारत में सट्टेबाजी पर 3,00,000 करोड़ रुपये की रकम लगी है और इसके एक सर्वे में लगभग 74 फीसदी लोगों ने माना है कि मान्यता प्राप्त सट्टेबाजी से क्रिकेट में मैच फिक्सिंग रोकने में मदद मिलेगी. सर्वे में चौंकाने वाली बात यह है कि देश के 83 फीसदी लोग मानते हैं कि सट्टेबाजी पर पूरी तरह रोक लगाने से बेहतर है कि उसे कानून के दायरे में लाकर उसकी इजाजत दे दी जाए. लोगों का मानना है कि सट्टेबाजी के बहाने लोगों का काला धन भी बाहर आ सकता है.

इससे पहले हरियाणा और पंजाब के पूर्व चीफ जस्टिस मुकुल मुद्गल ने सट्टेबाजी को कानूनी बना देने की राय दी थी. जस्टिस मुद्गल का मानना है कि "जायज सट्टेबाजी से मैच फिक्सिंग तो कम होगा ही, सरकार का पैसा भी बनेगा". फिक्की भी मानता है कि सट्टेबाजी से सरकार को हर साल 12,000 से 19,000 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल हो सकता है.

सट्टेबाजी को लेकर अलग अलग देशों में अलग अलग कानून है. भारत में जहां यह गैरकानूनी है, वहीं ब्रिटेन जैसे देशों में क्रिकेट, फुटबॉल और घुड़दौड़ पर धड़ल्ले से सट्टा लगता है. अमेरिका में भी बेसबॉल के सुपरबोल के वक्त पूरा देश इसमें जुटा होता है और इंटरनेट के अलावा छोटी बड़ी कंपनियों में लोग अपनी अपनी टीम पर पैसा लगाते हैं. जर्मनी के सभी 16 राज्यों में सट्टेबाजी की इजाजत है, जिससे सरकार को भारी पैसा राजस्व के तौर पर मिलता है. समझा जाता है कि दुनिया का पहला कसीनो (जुआघर) भी जर्मनी में 1764 में खुला था.(सट्टेबाजों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय सहयोग)

दिल्ली पुलिस के श्रीवास्तव उस टीम का हिस्सा हैं, जो आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग के मामलों की जांच कर रही है. उनका कहना है कि भले ही सरकार को सट्टेबाजी से कुछ पैसा मिल जाए, लेकिन भारतीय समाज में इसे "जुआ" समझा जाता है और जुआ खेलने वालों को बुरी नजर से देखा जाता है, "क्या सिर्फ इसलिए सट्टेबाजी को मान्यता दे देनी चाहिए कि हम मौजूदा कानून को सही ढंग से लागू नहीं कर पा रहे हैं. अगर सट्टेबाजी को कानूनी शरण मिल भी जाए, तो भी मैच फिक्सिंग नहीं रुकने वाली है."

रिपोर्टः नॉरिस प्रीतम, दिल्ली

संपादनः अनवर जे अशरफ

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