वो दिन जब वियतनाम में हुआ जनसंहार
१५ मार्च २०२१दक्षिणी वियतनाम के तट के करीब 16 मार्च 1968 की सुबह अमेरिकी सेना के हेलिकॉप्टर मंडराने लगे. हेलिकॉप्टरों के जरिए सेना की एक कंपनी उतारी गई. सेना को वियत कॉन्ग विद्रोहियों का सफाया करने का आदेश मिला था. कंपनी माई लाय गांव पहुंची. गांव वाले रोजमर्रा के काम में व्यस्त थे. इसके बाद बिना किसी चेतावनी के अमेरिकी सेना ने कार्रवाई शुरू की. महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों को बेहद बर्बर तरीके से निशाना बनाया गया. कइयों के हाथ काटे गए तो कइयों का गला. ज्यादातर गांव वाले फायरिंग और ग्रेनेड बमबारी में मारे गए.
अमेरिकी सेना ने आम नागरिकों की बर्बर हत्याओं की खबर छुपाई और खुद को विजेता की तरह पेश किया. सच्चाई का पता साल भर बाद चला. अमेरिका के फ्रीलांस रिपोर्टर सेमूर हर्श ने माई लाय में अमेरिकी सेना के जनसंहार की खबर छापी. पहली बार अमेरिकी जनता को पता चला कि उनकी सेना ने वियतनाम में आम लोगों के साथ क्या किया है.
शुरुआती रिपोर्टों के बाद 1972 में हर्श ने द न्यू यॉर्कर मैग्जीन के लिए एक लंबा लेख लिखा. उस रिपोर्ट में हर्श ने लिखा, "कई लोगों को छोटे ग्रुपों में बांटा गया और गोली मारी गई. कइयों को नाले के पास ले जाकर गोली मारी गई. कई लोगों को उनके घर के आसपास मौत के घाट उतारा गया. कुछ युवा महिलाओं से पहले बलात्कार किया गया और फिर उनकी हत्या की गई."
उनकी रिपोर्टिंग के बाद अमेरिकी जनता वियतनाम युद्ध के विरोध में सड़कों पर उतर आई. बड़े प्रदर्शन होने लगे. बढ़ते दबाव के बीच सेना की उस कंपनी के छह जवानों का कोर्ट मार्शल किया गया. लेकिन सजा सिर्फ लेफ्टिनेंट विलियम एल कैली जूनियर को हुई. कैली को 22 लोगों की हत्या का दोषी करार दिया गया.
माई लाय गांव में आज भी एक काली दीवार पर 504 मृतकों के नाम हैं. नामों के साथ उम्र भी दर्ज है. कई नवजात थे तो कई 80 साल के पार. डीडब्ल्यू से बात करते हुए हर्श ने कहा, "यह कोई करीबी लड़ाई नहीं थी, यह सिर्फ गांव में आपे से बाहर जाकर की गई हिंसा थी."
माई लाय के नरसंहार ने विचारधाराओं में टूटे वियतनाम को एक साथ आने का मौका दिया. वियतनाम युद्ध का विरोध करने वाले अमेरिकियों ने कहा कि इस नरसंहार ने दिखा दिया है कि अमेरिकी सेना नैतिक रूप से खुद को ऊंचा नहीं दिखा सकती. युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना की कार्रवाई कैसी होनी चाहिए, इस पर भी खुलकर चर्चा होने लगी.
अमेरिकी सेना की जनरल्स कॉर के रेजिमेंट हिस्टोरियन फ्रेड बॉर्श के मुताबिक, "मुझे लगता है कि 1968 के माई लाय कांड के बाद सेना से अमेरिकी जनता का भरोसा पूरी तरह टूट गया." इसके बाद सेना को आम लोगों का विश्वास जीतने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी. इसका नतीजा यह हुआ कि अमेरिकी सेना के अभियान कानून के दायरे में आ गए. बॉर्श कहते हैं, "पिछले 50 साल में कायापलट यह हुआ कि सैन्य अभियानों के हर स्तर पर अब वकील भी शामिल होते हैं, ताकि तैनाती के वक्त कमांडर उनसे कानूनी सलाह ले सकें."
लेकिन हर्श को नहीं लगता कि अमेरिकी सेना में कोई बड़े सुधार हुए. अफगानिस्तान और इराक की अबू गरेब जेल में जो कुछ हुआ, उससे भी पता चलता है कि बहुत बड़े बदलाव नहीं हुए. हर्श कहते हैं, "माई लाय आपे से बाहर जाकर की गई हिंसा का अपवाद है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि अमेरिका ने अपना नैतिक आधार खोज लिया है. भले ही माई लाय जैसा कुछ हमारे सामने नहीं आया है लेकिन हम निश्चित रूप से हर रोज शहरों में बमबारी कर रहे हैं." सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद, रूस, तुर्की और अमेरिका जिस कदर उलझे हुए हैं, उससे भी पता चलता है माई लाय के सबक धुंधले पड़ चुके हैं.
क्लेयर रिचर्डसन/ओएसजे