विवादित अमित शाह बने बीजेपी प्रमुख
१० जुलाई २०१४इस तरह 50 साल के शाह बीजेपी के सबसे युवा अध्यक्ष भी बन गए हैं. उन्हें किसी भी नेता के बेहतरीन सहायक के रूप में देखा जाता है. सिर्फ एक साल में उन्होंने भारत के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में बीजेपी का झंडा गाड़ दिया और वहां की 80 सीटों में से 71 पर कामयाबी हासिल की. दो सीटें सहयोगी पार्टी अपना दल को मिली हैं.
बीजेपी के ज्यादातर नेता मानते हैं कि शाह को उनकी मेहनत का फल दिया गया है. वह लंबे वक्त से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से भी जुड़े रहे हैं. शाह ने उत्तर प्रदेश से सटे बिहार में भी अपनी रणनैतिक कला दिखाई, जहां बीजेपी को बहुत कामयाबी मिली. उसे अपने दम पर 40 में 22 और सहयोगियों के साथ 31 सीटें मिलीं. इस दौरान वे दलबदल के प्रणेता रामविलास पासवान को भी बीजेपी के करीब लाए. पासवान लगभग एक दशक तक कांग्रेस और सोनिया गांधी के करीब थे.
शाह के बल पर जीत
अगर यूपी, बिहार और गुजरात को मिला दिया जाए, तो इस चुनाव में बीजेपी की लगभग आधी सीटें इन्हीं जगहों से आई हैं और तीनों ही राज्यों में शाह का बड़ा योगदान रहा है. हालांकि राजनीतिक कामयाबी के साथ उनका विवादित इतिहास भी साथ चलता है. सोहराबुद्दीन शेख, तुलसी प्रजापति और कुछ और लोगों के फर्जी मुठभेड़ मामले में उन्हें तीन महीने तक साबरमती जेल में रहना पड़ा है. हालांकि इसके बाद 2010 में वह निकल आए थे. जेल से बाहर आते ही बीजेपी में उनका कद तेजी से बढ़ा और नरेंद्र मोदी से नजदीकी ने उनके लिए और रास्ते खोल दिए.
पिछले साल उन्हें उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव बनाया गया और उनके पास चुनाव से पहले मुश्किल से एक साल का वक्त था. लेकिन इस समय का उन्होंने इस्तेमाल किया और बीजेपी के अंदर के मतभेद भी खत्म कराने में मदद की. शाह को बीजेपी प्रमुख बना कर पार्टी संदेश देना चाहती है कि वह भारत के अंदर अपनी मौजूदगी और बढ़ाना चाहती है.
तेज सीढ़ियां चढ़ीं
मुंबई में 1964 में पैदा हुए शाह 1997, 1998, 2002 और 2007 में गुजरात के सरखेज से विधायक चुने गए. बाद में उन्होंने अपनी सीट बदल कर नारणपुरा कर ली. मोदी की नजदीकी की वजह से उन्हें गुजरात में भी गृह मंत्रालय समेत कई महत्वपूर्ण पद दिए गए. इसी दौरान उन पर फर्जी मुठभेड़ का मामला चला. इसके बाद उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा और जेल जाना पड़ा.
उन्हें इस शर्त पर जमानत मिली की वह गुजरात में नहीं रहेंगे. बाद में 2012 में चुनाव जीतने पर ही उन्हें राज्य में प्रवेश मिल पाया. वह छात्र जीवन के दौरान ही आरएसएस से जुड़ गए और नरेंद्र मोदी से उनकी पहली मुलाकात 1982 में हुई. अगले साल वह बीजेपी के छात्र संघ एबीवीपी से जुड़ गए और तीन साल बाद बीजेपी में आ गए. उस वक्त तक मोदी बीजेपी में नहीं आए थे.
बाद में 1995 में बीजेपी ने पहली बार गुजरात में सरकार बनाई और मोदी तथा शाह ने मिल कर काम करना शुरू किया. जल्दी ही केशुभाई पटेल की जगह मोदी मुख्यमंत्री बने और फिर सारी राजनीति सत्ता के केंद्र तक पहुंचती है. शाह प्रधानमंत्री मोदी को "साहेब" कह कर पुकारते हैं.
एजेए/एमजे (पीटीआई)