रियो गर्लः कुलिस सुजुकी का 20 साल का सफर
१९ जून २०१२कुलिस सुजुकी पर्यावरण गुरु माने जाने वाले डेविड सुजुकी की बेटी हैं. लेकिन पर्यावरण को बचाने के लिए लड़ाई उन्होंने खुद शुरू की है. अगले महीने से रियो में शिखरवार्ता शुरू होने वाली है. वह याद करती हैं उस पल को जिसने उनकी जिंदगी बदल दी. टिकाऊ विकास और भविष्य पर बहस करने के लिए दुनिया भर से मंत्री, सरकारी अधिकारी और पर्यावरण के लिए काम करने वाले लोग इकट्ठा होंगे. कुलिस सुजुकी और उनके तीन दोस्तों ने इको नाम का एक ग्रुप बनाया जिसका पूरा नाम है, एनवायर्नमेंट चिल्ड्रन्स ऑर्गेनाइजेशन.
खड़े हो कर सम्मान
अर्थ समिट में उन्होंने प्रतिनिधियों के सामने भाषण दिया और सबको निस्तब्ध कर दिया. कुलिस सुजुकी कहती हैं, "हमें लगा कि जरूरी था कि हम आगे बढ़ें. हमने देखा कि वहां अधिकतर लोग बूढ़े होंगे जो हमारे भविष्य और आने वाली पीढ़ियों के लिए फैसला ले रहे होंगे. इसलिए हम फैसले लेने वाले इन लोगों को याद दिलाना चाहते थे कि उनके निर्णय का असर असल में किस पर पड़ने वाला है."
उन्होंने छह मिनट के संबोधन में देश के पर्यावरण के लिहाज से आने वाली पीढ़ियों के लिए चिंता को शामिल किया, "आप नहीं जानते कि हमारी ओजोन की परत का छेद कैसे बंद किया जाए. आप नहीं जानते कि लुप्त हो चुके जानवरों को आप फिर से कैसे लाएंगे. आप वह भी फिर से नहीं उगा सकते जो अब रेगिस्तान हो चुके इलाकों में उगता था. अगर आप नहीं जानते कि इसे कैसे ठीक किया जाए तो इसे तोड़ना बंद कीजिए." एक 12 साल की लड़की का यह प्रतिनिधियों के सामने बहुत ही तीव्र, सटीक और उकसाने वाला भाषण था. दुनिया भर से आए नीति बनाने वाले प्रतिनिधियों ने उनका खड़े हो कर तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत किया था. अल गोर के मुताबिक शिखर वार्ता में उन्होंने सबसे अच्छा भाषण दिया.
कुलिस सुजुकी कहती हैं, "मैं दो जीवन जीने लगी. एक बच्चे का और एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण के बारे में सोचने वाली लड़की का. साथ ही समाजिक विकास और पर्यावरण के लिए न्याय की पैरवी करने वाली भी. उस भाषण ने मेरे जीवन पर बहुत गहरा असर डाला."
कुलिस सुजुकी के भाषण ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा. उनके संबोधन का विडियो तब एक करोड़ अस्सी लाख लोगों ने देखा था. लेकिन अब जब वह 32 साल की हैं. तो क्या वह सफल हुई हैं, इस बारे में जवाब आसान नहीं. "यह पता करना बहुत मुश्किल है कि आप लोगों को जागरुक कर सके हैं या नहीं. मुझे लगता है कि 20 साल बाद यह पूछने का सही समय है कि क्या 20 साल में हम दुनिया को इतना बदल पाए हैं कि दुनिया टिकाऊ तौर से विकसित हो. मैं कहूंगी कि हम ऐसा नहीं कर पाए हैं."
कुलिस सुजुकी मानती हैं कि बीस साल में दुनिया का पर्यावरण और खराब हो गया है. इसलिए वह रियो+20 में जा रही हैं, "कांफ्रेस में गरीबी घटाने, समानता बढ़ाने और पर्यावरण की सुरक्षा पर बातचीत की जाएगी. रियो 2012 को देखने से लगता है कि हम हल ढूंढ रहे हैं, आमूलचूल परिवर्तन की तलाश में हैं. यही मैं चाहती हूं. तब ऐसा नहीं हो सका था. हमें अब इसकी जरूरत है. "
1992 में कुलिस सुजुकी ने 12 और 13 साल के किशोरों के साथ अर्थ समिट में हिस्सा लिया था. अब वह कुछ और वी कनाडा के युवा कार्यकर्ताओं के साथ शिखर वार्ता में जा रही हैं, "हम युवाओं को सुनना चाहते हैं. और इसलिए तब लोगों ने मुझे सुना था. मैं युवा थी और मैंने लोगों को याद दिलाया कि कौन दांव पर है. जो दांव पर है वे इस दुनिया के सबसे सामान्य लोगों की पसंदीदा चीज है और वह है उनके बच्चे."
बदलाव की मांग
जलवायु परिवर्तन की समस्या फिलहाल उन्हें परेशान कर रही है. कुलिस सुजुकी को उम्मीद है कि लोग जागरूक होंगे और दुनिया टिकाऊ विकास के लिए प्रतिबद्ध होगी. सच्चाई यह है कि 20 साल पहले जब कुलिस सुजुकी ने भाषण दिया था तब से अभी तक ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है, "इस समय कनाडा की सरकार पर्यावरण के लिए कोई काम नहीं कर रही है. हम पीछे जा रहे हैं. 20 साल पहले कनाडा पर्यावरण के मामले में नेतृत्व कर रहा था लेकिन अब हालात बिलकुल उल्टे हैं, हम पर्यावरण का काम रोकने वाले बन गए हैं."
कुलिस सुजुकी कहती हैं कि उन्हें कनाडा का नागरिक होने पर शर्म आती है. वह दुनिया से बदलाव की अपील करती हैं, "बहुत जरूरी है कि दुनिया के नेता साथ आएं और इन मुद्दों पर मिलकर काम करें. एक ऐसा मुद्दा जो सीमाओं से परे है, जिसके लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है."
वी कनाडा संस्था के अलावा कुलिस सुजुकी डोव कंपनी के युवा महिलाओं वाले अभियान से जुड़ी हुई हैं. जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण पर जागरूकता पैदा करने के लिए उन्होंने पूरे कनाडा में साइकल यात्रा की. साथ ही संयुक्त राष्ट्र के अर्थ चार्टर आयोग के लिए काम किया और 2002 में टिकाऊ विकास के लिए योहानसबर्ग में हुई वार्ता में कोफी अन्नान की सलाहकार पैनल में भी वह रही.
आज वह दो बच्चों की मां हैं. वह कहती हैं कि इन 20 साल में भले ही सोचने का तरीका बदल गया हो लेकिन उनका संदेश वही है. "मैं 20 साल पहले रियो में थी. तब मैं 12 साल की थी और तब में भाषण के जरिए अपने भविष्य के लिए लड़ रही थी. अब मैं अपने बच्चों के भविष्य के लिए लड़ रही हूं."
रिपोर्टः सेसिल फर्नांडेस / एएम
संपादनः ईशा भाटिया