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सत्ता के जहर की लालसा

५ अप्रैल २०१४

राहुल गांधी कभी किसी सरकारी पद पर नहीं रहे हैं, सत्ता की तुलना उन्होंने जहर से की है और अपने पिता तथा दादी को उग्रवादियों के हाथों जान गंवाते देखा है. अब वे भारत के प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं.

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Indien Politik Rahul Gandhi
तस्वीर: picture-alliance/dpa

भारत में आम चुनावों से पहले आ रहे जनमत सर्वेक्षणों की मानें तो 7 अप्रैल से होने वाले चुनावों में 43 वर्षीय राहुल गांधी के नेतृत्व में दस साल से सत्तारूढ़ कांग्रेस की करारी हार होने जा रही है. सार्वजनिक रूप से भारत के सबसे प्रसिद्ध परिवार के उत्तराधिकारी भारतीय जनता पार्टी और उसके दक्षिणपंथी नेता नरेंद्र मोदी के हाथों हार की संभावना से इंकार कर रहे हैं, लेकिन ज्यादातर विश्लेषकों का मानना है कि उन्हें पता है कि जीत की कोई उम्मीद नहीं है. कुछ को तो इस बात पर भी संदेह है कि क्या शासक परिवार में पैदा हुए राहुल यह काम चाहते भी हैं.

कांग्रेस और गांधी परिवार के बारे में कई किताबें लिखने वाले रशीद किदवई कहते हैं, "उन्हें जल्दबाजी नहीं है, क्योंकि उन्हें पता है कि उनके पिता बहुत जल्दी प्रधानमंत्री बन गए थे. लेकिन मैं समझता हूं कि राजनीति में आसान विकल्प नहीं होते." चाय बेचने वाले के परिवार में पैदा हुए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र की कहानी रंक से राजा बनने की कहानी है. उनके विपरीत राहुल गांधी समृद्धि में पैदा हुए हैं, लेकिन उनका बचपन त्रासदियों में बीता है.

त्रासद बचपन

राहुल गांधी सिर्फ 14 साल के थे जब उनकी दादी और भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके सिख अंगरक्षकों ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई का बदला लेने के लिए गोलियों से भून डाला. उनके पिता राजीव गांधी को देश का प्रधानमंत्री बना दिया गया. सात साल बाद एक तमिल आत्मघाती हमलावर ने चुनाव प्रचार के दौरान उनकी जान ले ली. राहुल गांधी ने हाल में एक टीवी इंटरव्यू में कहा, "मेरी जिंदगी में मैंने अपनी दादी को मरते देखा है, अपने पिता को मरते देखा है, मैंने दरअसल बचपन में बहुत दर्द झेला है."

जिस समय राहुल गांधी हार्वर्ड में पढ़ रहे थे, उनकी मां सोनिया गांधी के कंधे पर कांग्रेस को 2004 में फिर से सत्ता में लाने और प्रधानमंत्री बनने की जिम्मेदारी आई, हालांकि उन्होंने इससे इंकार कर दिया.

लंदन और मुंबई में कुछ दफ्तरों में काम करने के बाद राहुल खुद भी राजनीति में कूद पड़े और 2004 में पारिवारिक सीट अमेठी से सांसद बने. कुछ समय तक पार्टी की युवा इकाई का नेतृत्व करने के बाद जनवरी 2013 में उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया. लेकिन एक कुशल राजनीतिज्ञ की छवि बनाने में वे अभी तक कामयाब नहीं हुए हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/united archives

जहर है सत्ता

कांग्रेस का नंबर टू बनने के बाद राहुल गांधी के इस बयान पर बहुत बवाल मचा कि "सत्ता, जिसे इतने सारे लोग चाहते हैं, जहर है." उन्होंने मनमोहन सिंह की सरकार में शामिल होने से बार बार इंकार कर दिया. इसके बदले वे खाद्य सुरक्षा कानून या सूचना के अधिकार जैसे कानूनों का समर्थन करते रहे, जिन्हें वे समाज में फैले भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए जरूरी मानते हैं. सबसे ज्यादा जोश उन्होंने दिखाया है, अपनी दादी के पिता जवाहरलाल नेहरू के धर्मनिरपेक्षता की परंपरा का बचाव करने में.

जवाहरलाल नेहरू को आधुनिक भारत का निर्माता माना जाता है, जिन्होंने आजादी के बाद समाजवादी मॉडल पर भारत की अर्थव्यवस्था का विकास किया. बड़े कारोबारियों का समर्थक होने की छवि वाले नरेंद्र मोदी की नीतियां नेहरू की नीतियों के ठीक उलटी हैं. राहुल गांधी ने चुनावों को भारत के दो विचारों के बीच संघर्ष की संज्ञा दी है. उन्होंने मोदी की 2002 में गुजरात के सांप्रादायिक दंगों के लिए कड़ी आलोचना की है, जिसमें 1000 से ज्यादा लोग मारे गए थे. उनमें ज्यादातर मुसलमान थे.

रशीद किदवई का कहना है कि राहुल गांधी नरेंद्र मोदी के इस संदेश पर आपत्ति करते हैं कि भारत को एक ताकतवर नेता की जरूरत है. उनका कहना है कि यह मानना बहुत बड़ी भूल होगी कि एक व्यक्ति देश की समस्याओं का हल कर सकता है. हाल के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि 78 फीसदी लोग मोदी को सकारात्मक रूप से देखते हैं, जबकि राहुल गांधी को सिर्फ 50 फीसदी लोग सकारात्मक रूप से देखते हैं.

इन चुनावों में फिलहाल कांग्रेस की हार तय लगती है, लेकिन इससे राहुल गांधी के राजनीतिक करियर पर कोई आंच नहीं आएगी. उनके पक्ष में उनकी उम्र है. उनके पास विपक्ष के बियाबान से अपने परिवार के राजनीतिक भविष्य को संवारने का समय है.

एमजे/आईबी (एएफपी)