योगा के ट्रेंड में खो गया असली योग
१ फ़रवरी २०१९योग की शुरुआत कैसे हुई, यह बहुत साफ नहीं है. लेकिन भारत में कई लोगों को लगता है कि योग की शुरुआत हजारों साल पहले ऋषि पतजंलि ने की. भारत के मशहूर योग गुरुओं में से एक बीकेएस अय्यंगर अपनी किताब "लाइट ऑन लाइफ" में कहते हैं, "पतजंलि को योग का पिता कहा जाता है. हकीकत, जहां तक हम जानते हैं, उसके मुताबिक वह एक योगी और एक ज्ञानी थे, जो ईसा पूर्व से पांच शताब्दी पहले भारत में रहते थे. उन्होंने योगियों के जीवन और अभ्यासों की जानकारी जमा की और उसे विस्तार दिया. उन्होंने योग सूत्र लिखे, असल में यह योग के प्रमाण, चेतना और मानवीय परिस्थितियों के सूत्र हैं."
हरिद्वार में पतंजलि यूनिवर्सिटी के योग प्रोफेसर संजय सिंह कहते हैं, "योग ब्रह्मांड के जितना ही पुराना है. योग स्वयं ईश्वर द्वारा सिखाया गया अभ्यास है. इसे इंसानों ने नहीं बनाया और योग का मकसद जीवन के सच को जानना है, खुद को जीवन और मृत्यु के चक्र से अलग करना है."
संस्कृत में योग शब्द का अर्थ है जुड़ाव या मिलन. सिंह कहते हैं, योग "अपने असली स्वरूप को ईश्वर में एकीकार करना है, खुद को जानना है, जीवन के उद्देश्य और उसे जीने के सर्वोत्तम तरीके को समझना है."
आज का योग कैसा है?
आज, योग सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है. वह अंतरराष्ट्रीय हो चुका है. अब योग, शारीरिक रूप से फिट रहने और मानसिक रूप से शांत रहने के लिए किया जाता है. भारत और पश्चिमी देशों के योग स्कूल कई तरह के योग सिखाते हैं. हथ योग, अय्यंगर योग, अष्टांग योग, विन्यास योग, बिक्रम योग और हॉट योगा जैसे ऑफर सामने होते हैं. सबका मकसद एक ही है, शारीरिक फिटनेस और शांति.
बढ़ती मांग के बीच योग के कई नए तरीके इजाद किए जा चुके हैं. कुत्तों से प्यार करने वाले लोग अपने कुत्ते के साथ योग करने जाते हैं. इसे डॉग योगा नाम दिया गया है. न्यूड योगा में बिल्कुल निर्वस्त्र होकर आसन किए जाते हैं. दावा किया जाता है कि यह अपने शरीर को कमियों के साथ स्वीकारने और आत्ममुग्धता को कम करने में मदद करता है. जर्मनी की राजधानी बर्लिन में बीयर योगा का ट्रेंड निकल पड़ा. इसे करने वाले योगाभ्यास के साथ बीच बीच में बीयर सुड़कते रहते हैं.
हालांकि ऐसे प्रयोगों ने योग के प्रसार में मदद की है, लेकिन कई योग गुरु इन बदलावों से आहत महसूस करते हैं. उन्हें लगता है कि ये बदलाव पौराणिक आध्यात्मिक साधना के महत्व को नकारने जैसे हैं. योग और माइंडफुलनेस रिसर्चर रीना देशपांडे कहती हैं, "इतिहास की किताबों में यह दर्ज नहीं है, उपनिवेशिक शासन के दौरान अपने ही देश के लोगों से योग और संस्कृत को छीना गया. योग भारत और भारत के लोगों का जीवन जीने का आध्यात्मिक तरीका था- यह योगा स्टूडियो की तरह अलग अलग नहीं था."
लेखिका और टीचर देशपांडे हाल के माहौल को "सांस्कृतिक विनियोग" मानती हैं. वह कहती हैं कि सांस्कृतिक विनियोग ऐतिहासिक रूप से नकारी गई जनसंख्या के "लोगों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों और इतिहास को याद करने व उसे स्वीकार करने" का अवसर देता है.
रीना देशपांडे के मुताबिक, "लोगों को यह नहीं बताना है कि वे कुछ गलत कर रहे हैं, बल्कि इस चेतना को फैलाना है कि भारत में योग की नींव एक ऐसे अभ्यास के रूप में पड़ी जो अच्छी जिंदगी और आध्यात्मिकता का संगम है. शारीरिक मुद्राएं (योगासन) तो इसके कई आयामों में से एक है, वैसे ही जैसे प्राणायाम, दर्शन और ध्यान."
देशपांडे को लगता है कि योग को काफी हद तक सिर्फ फिटनेस और तनावमुक्त कसरत के रूप में ही बाजार में पेश किया गया. पश्चिम में तो योग के साथ साथ उससे जुड़ी चीजों का भी बाजार खड़ा हो गया. योगा मैट, योगा पैंट, घंटियां, और द्वीपों में महंगे योग शिविर, इसका उदाहरण हैं.
ऐसे ही असंमजस का सामना अमेरिकी राज्य लुजियाना की योग गुरु बीयर हेरबेर्ट भी कर रही हैं. एक ब्लॉग पोस्ट "मेरे साथी योग गुरुओं के लिए एक खत" में उन्होंने लिखा, "मुझे इस बात का गहरा अफसोस है कि व्हाइट योगा कल्चर में मेरी भागीदारी ने देसी लोगों (भारतीय मूल के लोगों) को नुकसान पहुंचाया है."
कहां फंस गया योग?
पतंजलि विश्वविद्यालय में योग के प्रोफेसर संजय सिंह कहते हैं कि योग को सिर्फ हिंदुत्व या भारतीय आध्यात्म से जोड़ना ठीक नहीं है. वह कहते हैं, "आइनस्टाइन एक यहूदी थे, इसका मतलब यह नहीं है कि सापेक्षता का सिद्धांत सिर्फ एक यहूदी सिद्धांत हैं. आइजैक न्यूटन एक ईसाई थे, इसलिए गुरुत्व बल ईसाई नहीं है. इस तरह, योग सच की खोज के बारे में हैं."
भारत में भी योग कई बदलावों से गुजरा है. सिंह के मुताबिक 300 साल तक यूरोपीय उपनिवेशों का गुलाम रहने वाला देश आज भी कई बार यह सोचता है कि पश्चिम का चलन भारत की परंपराओं से बेहतर है. इसीलिए योग भी कई भारतीयों के बीच में ट्रेंड बन गया. उन्होंने पश्चिम के योगा फैशन को देखा और भारत में उसे ओढ़ लिया.
परफेक्ट फिगर, दमकता चेहरा, अच्छी सेहत और शांत दिमाग, योग का प्रचार इसी तरह के विज्ञापनों के जरिए किया गया. ज्यादातर लोगों ने इसे इसी रूप में स्वीकार भी किया. सिंह कहते हैं कि योग करने वाले को खुद से यह जरूर पूछना चाहिए कि वह यह क्यों कर रहा है. सिंह कहते हैं, "अगर आप कोई आसन कर रहे हैं और उसके प्रति पूरी तरह समर्पित हैं, उस वक्त एकाग्र हैं, पूरी तरह उस पल में जी रहे हैं तब जाकर वह योग है. वरना तो, वह भी तैराकी, दौड़ने या दूसरे खेलों की तरह एक स्पोर्ट्स एक्टिविटी ही है."
(प्राचीन भारतीय योग के ग्लोबल स्वरूप)
रिपोर्ट: मानसी गोपालकृष्णन