यूरो देशों के लिए उम्मीद की किरण
१३ दिसम्बर २०१२कई घंटों की बातचीत के बाद गुरुवार सुबह यूरोपीय नेता आखिरकार एकमत हुए. 2012 में साल भर यूरोपीय संघ नेता ग्रीस, स्पेन और पुर्तगाल में आर्थिक हालत और यूरो की बिगड़ती स्थिति पर बात करते रहे. इस पृष्ठभूमि पर यूरोपीय केंद्रीय बैंक ईसीबी का यूरो क्षेत्र में बैंकों पर निगरानी करने का फैसला काफी अहम है. जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा, "आप इस समझौते की अहमियत के बारे में जितना कहें, उतना कम है. हम जर्मनी की मूल शर्तों को सुरक्षित करने में सफल हुए."
आगे की मुश्किलें
हालांक यूरो क्षेत्र के लिए आराम का वक्त अब भी नहीं आया है. बैंकों को एक करना होगा और कर्ज में डूबे बैंकों को बंद करने या उन्हें राहत दिलाने पर सोचना होगा. उसके बाद बैंकों को कर्ज देने वालों के लिए गारंटी बनानी करनी होगी और फिर इन सब फैसलों पर दोबारा यूरोपीय देश राजनीतिक और वित्तीय स्तर पर बहस करेंगे.
2013 में अभी कुछ ही दिन बाकी हैं और 2012 ईयू के लिए मुश्किल रहा है. 2013 में भी राहत मिलने के आसार कम लग रहे हैं. पहले तो स्पेन के बैंकों को बचाना होगा, जर्मनी में अगले साल आम चुनाव हो रहे हैं और इटली के प्रधानमंत्री मारियो मोंटी ने इस्तीफा दे दिया है. अगले साल इटली में आम चुनावों में पूर्व प्रधानमंत्री सिल्वियो बेर्लुस्कोनी भी खड़े हो रहे हैं और भ्रष्टाचार के उनके इतिहास ने यूरोप में आर्थिक संकट के और उभरने की चिंता बढ़ा दी है.
क्या करना है
2010 में यूरो संकट के बाद इस समझौते को यूरो क्षेत्र की सबसे बड़ी सफलता मानी जा सकती है. इसमें खास बात यह है कि कर्ज में डूबे बैंकों और इन देशों की सरकारों को वित्तीय तौर पर अलग किया जा सकेगा, यानी कि अगर बैंक कर्ज में डूबा है तो उस देश की सरकार को बैंक बचाने के लिए अपनी गारंटी नहीं देनी पड़ेगी.
अगर संसद अनुमति देता है तो सबसे पहले यूरो क्षेत्र में बैंकों के एकीकरण के लिए एक कानूनी ढांचा बनाना होगा और इसके लिए यूरोपीय संसद से अनुमति लेनी होगी. यूरोपीय केंद्रीय बैंक को फिर कुछ लोगों को नियुक्त करने होंगे और इस योजना पर अमल करना होगा. यूरोपीय आयोग के अधिकारियों का कहना है कि ईसीबी 150 से 200 बैंकों पर सीधे निगरानी रखेगी. इन बैंकों में यूरो क्षेत्रों के अलग अलग देशों में उधार देने वाले बैंकों के अलावा सरकारी बैंक भी शामिल हैं. अगर पूरे यूरो क्षेत्र में कुल 6,000 बैंकों में से किसी भी एक को परेशानी होगी तो ईसीबी को इनमें हस्तक्षेप करने का अधिकार होगा. इसके अलावा यूरो देशों को कर्ज में डूबे बैंकों के लिए खास फंड और बैंकों में डिपॉजिट रखने वालों के लिए गारंटी का बंदोबस्त करना होगा.
इस समझौते को पटरी पर लाने में सबसे बड़ी परेशानी ब्रिटेन जैसे देशों में होगी जहां यूरो मुद्रा का इस्तेमाल नहीं होता और जहां जनता यूरोपीय संघ के पक्ष में नहीं है. स्वीडेन के वित्त मंत्री ने पहले से कह दिया है कि बैंकों का एकीकरण यूरोप के लिए एक दुखद दिन होगा. इसकी वजह यह भी है कि देशों को अपनी वित्तीय योजनाएं अब मिलकर बनानी होंगी और एक दूसरे के कर्जों को अदा करने में मदद करनी होगी. इसके लिए यूरोपीय यूनियन की शुरुआती संधियों में भी बदलाव लाने होंगे.
एमजी/एनआर(डीपीए, रॉयटर्स)