यूपी के दफ्तरों में जींस टीशर्ट पर रोक
२८ सितम्बर २०१२ऐसा नहीं करने पर उनके खिलाफ सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली के तहत कारवाई करने के निर्देश जारी कर दिए गए हैं. सरकारी अफसरों-कर्मचारियों को बाकायदा एक शासनादेश जारी कर औपचारिक रूप से निर्देश दिए गए हैं कि अपनी ड्यूटी के दौरान महिला या पुरुष सरकारी कर्मचारी आधी बांह की शर्ट, टी-शर्ट, सफारी सूट, जींस अथवा अन्य तड़क-भड़क, रंगीन-डिजाइन के परिधानों को कटाई धारण न करें. शासनादेश में कहा गया है कि न्यायालयों में पेशी के दौरान भी वे ऐसा ही करें. ध्यान रखें कि न्यायालयों में ऐसे ही कपड़े पहन कर उपस्थित हों जो अदालत की गरिमा के अनुरूप हों. इन निर्देशों का उल्लंघन करने पर उनके खिलाफ उत्तर प्रदेश कर्मचारी आचरण नियमावली 1956 के प्रावधानों के तहत कार्रवाई की जाएगी. सरकार ने ये भी स्पष्ट किया है है कि ऐसा पहली बार नहीं किया जा रहा है इससे पहले 19 अप्रैल 1954 तथा 30 जून 1956 को ड्रेस कोड लागू करने के लिए इसी तरह के शासनादेश जारी किये जा चुके हैं. जाहिर है कि उन पर अमल नहीं हो रहा था इसीलिए सरकार को फिर एक आदेश जारी करना पड़ा.
अदालत की फटकार
सरकार दरअसल इलाहबाद हाईकोर्ट की फटकार के बाद हरकत में आई. एक मामले में हाईकोर्ट में पेशी के दौरान एक वरिष्ठ अफसर जींस-टी शर्ट में अदालत पहुंच गए. जज उनकी वेशभूषा देख भड़क गए. उनकी कार्यप्रणाली से अदालत नाराज ही थी, इसलिए उन्हें व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने को कहा गया था. वे अदालत पहुंचे तो टी शर्ट में. बाद में प्रदेश के अपर महाधिवक्ता जफर याब जीलानी ने सरकार को जजों के इस गुस्से से अवगत कराया तो सरकार ने अपने सभी कर्मचारियों से ठीक ठाक कपड़े पहनने के निर्देश जारी कर दिए.
क्या है ड्रेस कोड
सरकारी कार्यक्रमों मसलन स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर बंद काले रंग का कोट और इसी रंग की पैंट या काले रंग की पैंट पर क्रीम कलर का कोट. या फिर क्रीम कलर का बंद गले का कोट और पैंट या काली शेरवानी के साथ सफेद चूड़ीदार पायजामा वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों को पहनना होता है. लेकिन बाकी कर्मचारी आम तौर पर हलके रंग के कपड़ों में शर्ट पैंट पहनते हैं. राष्ट्रपति, राज्यपाल, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या इसी स्तर के मेहमानों के स्वागत या उनके कार्यक्रम में भी वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी काली पैंट और बंद गले का काला कोट पहने नजर आ जाते हैं. बाकी कार्यक्रमों में बड़े अफसर भी अपनी सुविधा के हिसाब से कपडे पहनते हैं. जिलों में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट भी सिर्फ 15 अगस्त और 26 जनवरी को ही इस सरकारी ड्रेस में नजर आते हैं. राजभवन के कार्यक्रमों और आईएएस वीक में भी यही ड्रेस दिखती है. लेकिन बाकी मौकों पर सब अपनी मर्ज़ी के कपडे पहनते हैं. इस मामले में महिला कर्मचारियों के लिए कोई ड्रेस कोड निर्धारित नहीं है. पारंपरिक रूप से उनके साड़ी पहनने को ही मान्यता है पर अगर कोई सलवार कुरते में आता है तो उसे भी मना नहीं किया जाता है. राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद् के अध्यक्ष शैलेन्द्र दुबे को इस पर कोई ऐतराज़ नहीं है. बल्कि वह हंसते हुए कहते हैं के इस तरह के नियमों का पालन करना ही चाहिए.
सरकार के इस आदेश का लोग अपने अपने ढंग से मतलब निकाल रहे हैं. सूचना अधिकारी अवधेश कुमार का कहना है कि ये बड़े अफसरों के लिए है. पर वो इस बात से इनकार नहीं करते कि सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए नियम कानून एक जैसे ही होते हैं. कृषि विभाग के मुकुल कुमार कहते हैं कि कपड़े तो जैसे अफसर पहनेगा वैसे ही अधीनस्थ कर्मचारी पहनने लगते हैं. समीक्षा अधिकारी अहसन रिजवी को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता. वो कहते हैं, "मैं तो कपड़ो के मामले में पहले से ही बहुत सतर्क रहता हूं." बैंक अधिकारी ए.सुदर्शन सरकार के इस आदेश से बहुत खुश है. कहते हैं, "यूपी सरकार के कर्मचारियों जितने अराजक कोई कर्मचारी नहीं होते इन्हें जरूर सीधा किया जाना चाहिए. इन पर और सख्ती जरूरी है." एक आइएएस अफसर नाम न छपने की शर्त पर कहते हैं, "हम लोग तो पहले से ही हर मामले में बहुत संयमित रहते हैं. सचिवालय के गेट पर टी स्टाल पर दिन भर यही चुहल बाज़ी होती रही कि कल कौन से कपडे पहन कर आना है." लेकिन ज्यादातर का कहना है कि अब तो सर्दी आ रही है अपने आप ही लोग ज्यादा कपडे पहन कर आएंगे. अब न खुली बांह होगी न सरकार मरोड़ेगी.
रिपोर्ट : एस. वहीद, लखनऊ
संपादनः आभा मोंढे