यात्रियों की बढ़ती संख्या को कैसे मिले ग्रीन ट्रांसपोर्ट
२६ मई २०२३ट्रेन यात्रा को और अधिक आकर्षक बनाने, हवाई जहाजों का विद्युतीकरण करने और जीवाश्म ईंधन से चलने वाली कारों और ट्रकों के इस्तेमाल रोकने के प्रयासों के बावजूद, वैश्विक परिवहन क्षेत्र से होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन तेजी से कम नहीं हो रहा है.
अंतर्राष्ट्रीय परिवहन फोरम (आईटीएफ) ने बीते बुधवार को एक नई रिपोर्ट जारी की है. इसमें कहा गया है कि परिवहन से होने वाले उत्सर्जन को कम करने के मौजूदा उपायों और प्रयासों के बावजूद, इस क्षेत्र से होने वाले सीओ2 के उत्सर्जन के स्तर में अगले दशक तक वृद्धि जारी रहने की उम्मीद है.
अगर यही स्थिति बनी रही और ज्यादा महत्वाकांक्षी लक्ष्य स्थापित करने के साथ-साथ नई तकनीकों के इस्तेमाल को तेजी से बढ़ावा नहीं दिया जाता है, तो 2050 तक कार्बन उत्सर्जन 2019 के स्तर से केवल 3 फीसदी कम होने का अनुमान है.
भारत में 2027 तक डीजल गाड़ियों पर रोक की सिफारिश
आईटीएफ के एक परिवहन विश्लेषक मातेयो क्रैगलिया ने कहा, "सबसे बड़ी चुनौती है नई तकनीकों और नीतियों को लागू करना, ताकि जल्द से जल्द पर्यावरण के अनुकूल साधनों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा सके. ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि यात्रियों की संख्या भी लगातार तेजी से बढ़ रही है, खासकर उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं वाले देश में. वहां यात्रा की मांग में काफी वृद्धि होने की उम्मीद है.”
आईटीएफ, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन का एक वैश्विक परिवहन थिंक टैंक है. इसने अनुमान लगाया है कि जिस तरह से दुनिया की आबादी बढ़ रही है और समाज तेजी से वैश्वीकरण की ओर बढ़ रहा है वैसी स्थिति में वैश्विक स्तर पर यात्री मांग 2050 तक 79 फीसदी बढ़ जाएगी. वहीं, सामानों की ढुलाई भी दोगुनी होने की उम्मीद है.
यात्री मांग को मापने का तरीका यह है कि एक व्यक्ति एक साल में परिवहन के साधनों की मदद से कितने किलोमीटर की यात्रा करता है. अनुमान के मुताबिक, उप-सहारा अफ्रीका में यात्री मांग तिगुनी से अधिक और दक्षिण पूर्व एशिया में दोगुने से अधिक हो जाएगी.
कोरोना महामारी के बाद जीवनशैली में हुए बदलाव को ध्यान में रखते हुए ये अनुमान लगाए गए हैं, क्योंकि महामारी के बाद समाज के कुछ हिस्सों में टेलीवर्किंग और ऑनलाइन खरीदारी बढ़ी है. हालांकि, आईटीएफ की रिपोर्ट में जोर देकर कहा गया है कि ये बदलाव, नीति निर्माताओं के लिए एक अवसर है कि वे ‘ग्रीन ट्रांजिशन' यानी पर्यावरण के अनुकूल साधनों को आगे बढ़ाने पर काम कर सकें. उन्हें इस अवसर की अनदेखी नहीं करनी चाहिए.
सीओ2 के 20 फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है परिवहन क्षेत्र
क्रैगलिया ने डीडब्ल्यू को बताया कि बिजली उत्पादन से लेकर परिवहन और विनिर्माण तक, सभी क्षेत्रों में ‘संरचनात्मक बदलाव' वैश्विक अर्थव्यवस्था में अब तक सामने आई किसी भी अन्य समस्या की तुलना में ज्यादा चुनौतीपूर्ण हैं, खासकर तब जब अलग-अलग इलाके की मौजूदा परिस्थितियों के हिसाब से विचार किया जाता है.
उच्च और निम्न आय वर्ग वाले देशों के बीच की खाई को उजागर करते हुए उन्होंने कहा, "सभी देश कार्बन उत्सर्जन को कम करने या सभी सरकार आवश्यक सुधारों और नीतियों को लागू करने के लिए, एक जैसी स्थिति में नहीं हैं. उनकी परिस्थितियां और हालात अलग-अलग हैं.”
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने कहा है कि 2050 तक परिवहन से होने वाले कुल उत्सर्जन को 2015 की तुलना में 80 फीसदी कम करना होगा. ऐसा करने पर ही वैश्विक स्तर पर तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के पेरिस जलवायु लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है. परिवहन क्षेत्र, जिसमें सड़क, रेल, शिपिंग और विमानन शामिल हैं, वार्षिक सीओ2 उत्सर्जन के 20 फीसदी से अधिक हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं. परिवहन क्षेत्र में 40 फीसदी कार्बन उत्सर्जन यात्री कारों से होता है.
उपभोग की अति जर्मनी को चाहिए तीन ग्रह
हालांकि, परिवहन के साधनों में बड़े स्तर पर बदलाव करना मुश्किल प्रतीत होता है, लेकिन क्रैगलिया ने चीन के साथ-साथ अन्य विकसित देशों में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री का हवाला देते हुए विश्वास जताया कि निजी वाहन पर्यावरण के अनुकूल बनने के रास्ते पर हैं.
आईटीएफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा नीति योजनाओं के आधार पर, 2035 तक पूरी दुनिया में इस्तेमाल होने वाली यात्री कारों में एक चौथाई हिस्सा शून्य उत्सर्जन वाले वाहनों का होना चाहिए.
क्रैगलिया ने आगे कहा, "कारोबार से जुड़ी समस्याएं समझ में आ रही हैं और अब यह सिर्फ बुनियादी ढांचे तैयार करने का मामला है.” इसमें ग्रीन एनर्जी वाले बिजली ग्रिड और चार्जिंग स्टेशन स्थापित करना शामिल है, खासकर ट्रकों जैसे भारी वाहनों के लिए ज्यादा पावर वाले चार्जर. ये ट्रक दुनिया भर में माल ढुलाई में अहम भूमिका निभाते हैं और बड़े स्तर पर कार्बन उत्सर्जन भी करते हैं.
विमानन और शिपिंग क्षेत्र, परिवहन क्षेत्र में होने वाले कार्बन उत्सर्जन के 20 फीसदी हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं. ये क्षेत्र अभी बड़ी चुनौती बने हुए हैं. क्रैगलिया ने कहा, "उन्हें डिकार्बोनाइज करने की तकनीकें अभी शुरुआती चरण में हैं. उनके लिए अभी भी अनुसंधान जारी है.”
उन्होंने कहा कि शिपिंग के लिए कम कार्बन वाले ईंधन और विमानन के लिए कम कार्बन और ज्यादा ऊर्जा घनत्व वाले ईंधन के इस्तेमाल पर शोध जारी है. जैसे, खेती से निकलने वाले अपशिष्ट, शैवाल और खाना पकाने के तेल से बने जैव ईंधन. यहां उन्होंने इन क्षेत्रों में शोध को बढ़ावा देने के लिए बाजार आधारित अन्य उपायों के महत्व पर बल दिया, जैसे कि कार्बन मूल्य निर्धारण.
पर्यावरण के अनुकूल साधनों के इस्तेमाल पर जोर
क्रैगलिया ने कहा कि सिर्फ तकनीक की मदद से परिवहन क्षेत्र से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम नहीं किया जा सकता. लोगों को अपनी आदतों में बदलाव करना होगा. साथ ही, अधिक टिकाऊ विकल्पों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना होगा. यह उन जगहों के लिए जरूरी है जहां पहले से ही परिवहन नेटवर्क मौजूद है. साथ ही, एशिया और अफ्रीका के उन क्षेत्रों में भी जहां तेजी से शहरीकरण हो रहा है और परिवहन के बुनियादी ढांचे की कमी है. इन विकल्पों में सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करना, पैदल चलना, कार साझा करना, साइकिल चलाना और स्कूटर का इस्तेमाल करना शामिल है.
उन्होंने कहा, "उभरती अर्थव्यवस्थाओं में परिवहन के टिकाऊ साधनों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए मदद करना जरूरी है, ताकि वहां सार्वजनिक साधनों को बढ़ावा दिया जा सके. ये कुछ ऐसे उपाय हैं जिन पर नीति निर्माताओं को ध्यान देने की जरूरत है.”
इस साल 24 मई से 26 मई तक जर्मनी के लाइपजिष शहर में आयोजित आईटीएफ शिखर सम्मेलन में नीति निर्माताओं को अपने विचारों का आदान-प्रदान करने का मौका मिला. यह सम्मेलन हर साल आयोजित किया जाता है जिसमें वैश्विक स्तर पर परिवहन और जलवायु नीति पर चर्चा करने के लिए नीति निर्माता और विशेषज्ञ शामिल होते हैं.
इस साल दुनिया भर के करीब 50 परिवहन मंत्री और अन्य अधिकारी सम्मेलन में शामिल हुए. आयोजकों का लक्ष्य 2023 के अंत में दुबई में होने वाले कॉप28 जलवायु शिखर सम्मेलन में परिवहन को प्रमुख मुद्दों में से एक बनाना है, क्योंकि इस सम्मेलन में अलग-अलग देश जलवायु को लेकर किए गए अपने वादों की समीक्षा करते हैं और जरूरत के मुताबिक उनमें बदलाव करते हैं.
क्रैगलिया ने पिछले साल के मुद्रास्फीति में कमी अधिनियम की मदद से शून्य उत्सर्जन परिवहन को बढ़ावा देने के अमेरिकी प्रयासों और यूरोपीय संघ में जीवाश्म ईंधन वाले वाहनों को 2035 तक चरणबद्ध तरीके से हटाने के यूरोपीय संघ की योजना की ओर इशारा किया. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में ‘नीतिगत महत्वाकांक्षा में वृद्धि' देखी गई है. उन्होंने उम्मीद जताई कि यात्री वाहनों के साथ-साथ माल ढुलाई करने वाले वाहनों, दोनों क्षेत्रों में बदलाव होने की संभावना है.
उन्होंने कहा, "सबसे बड़ी चुनौती यह है कि दुनिया भर के सभी देशों को और ज्यादा महत्वाकांक्षी होना पड़ेगा. अगर हमें पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्यों को हासिल करना है, तो इसे ज्यादा प्रतिबद्ध होकर तेजी से आगे बढ़ना होगा.”