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मानवाधिकार !

३० अगस्त २०१३

पिछले सप्ताह प्रश्नोलॉजी में हमने आपसे पूछा था कि मानवाधिकार का मतलब आपके लिए क्या है? इस विषय पर मिले हमें ढेर सारे जवाब, पढिए कुछ दिलचस्प जवाब आप भी यहां...

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Workers from the National Federation of Indian Railwaymen (NFIR) shout slogans during a protest rally in Mumbai February 28, 2012. Millions of workers of all political hues will go on strike across the country on Tuesday to express their anger at soaring prices and to back demands for improved rights for employees, trade unions and political activists said. REUTERS/Danish Siddiqui (INDIA - Tags: BUSINESS POLITICS EMPLOYMENT CIVIL UNREST TPX IMAGES OF THE DAY)
तस्वीर: Reuters

मानवाधिकार का मतलब मेरे लिए यह है कि जितना महत्वपूर्ण इस्राएल, अमेरिका और यूरोपीय संघ सहित विकसित देशों के नागरिकों की जान, माल और इज्जत को समझा जाता है, माना जाता है और दुनिया को दिखाया जाता है, उतना ही महत्वपूर्ण फलिस्तीन, सीरिया और मिस्र समेत विकासशील, गरीब और पिछड़े हुए देशों में मारे जाने वाले बेगुनाह लोगों की जान, माल और इज्जत को भी समझा जाए. वरना तो यही बात सामने आती है कि मानवाधिकार केवल विकसित और ताकतवर देशों और एनजीओ का एक धोखे से भरपूर नारा है, जिसको लगाने वाले अपने दुशमनों, दुनिया के गरीबों और मजलूमों की जान, माल और इज्जत को कुचलते हुए और कुचलता हुआ देखते हुए आगे बढ़ते जा रहे हैं. - आजम अली सूमरो, खैरपुर मीरस सिंध, पाकिस्तान

मैंने बहुत से विचारकों से सुना है कि वो आजाद पैदा होना व मरना चाहते हैं. यही उनकी तमन्ना है. आज के दौर की बात करें तो हर कोई आत्म सामान से जीना चाहता है. साथ ही अपनी मनमर्जी का मालिक होकर हर तरह की आजादी चाहता है. इसी तरह की अभिव्यक्ति और स्वतंत्रता को दिखाने के लिए मानवाधिकारों को लागू किया गया. पूरी दुनिया के लोगों के लिए, हालांकि मेरी नजर में मानवाधिकार किताबों तक सिमट कर रह गए है, इस दुनिया में जहां आज भाई भाई का दुश्मन है, जहां लोग एक दूसरे को मारने में लगे हैं, मानवाधिकार तो क्या, किसी भी अधिकार के लिए क्या जगह रह गयी है, मैं नहीं जानती. मैं हमेशा से चाहती हूं ये मानवाधिकारों की बाते किताबों से निकल के आम जन मानस तक पहुंचे और उनकी जिन्दगी में बदलाव की हवा चलायें, लोगों को पता तो लगे की मानवाधिकार भी कुछ होते हैं. उत्तर कोरिया हो या अफगानिस्तान, चीन हो या इराक, मानवाधिकार पूरे विश्व में सिर्फ लिखित ही न, हो लागू भी हो. - त्रिशला जी, करनाल, हरियाणा

"हर ओर है मानवाधिकारों की दुहाई, जिसने मानवाधिकारों के लिए आवाज उठाई, उसी की जेलों में ठूंस ठूंस के हुई पिटाई." मेरी लिखी इन लाइनों से अंदाजा हो गया होगा कि हम खुद क्या है. पूरी दुनियां में मानवाधिकारों की क्या इज्जत है. ये बनाये तो गए थे संयुक्त राष्ट्र और विश्व समुदाय के द्वारा, पर सिर्फ किताबो तक ही सिमट के रह गए हैं. शायद ही दुनिया का कोई देश हो जहां इसका दुरूपयोग न हो रहा हो. इसके लिए आवाज उठाने वालों का हाल तो दो लाइनों में आपको लिख ही चुका हूं. बाकी तो सब आपके सामने है. - सचिन सेठी, करनाल, हरियाणा

जहां तक मुझे जान पड़ता है, जैसे हम अपनी मर्जी से कानून का उपयोग या दुरूपयोग करते हैं बिलकुल उसी तरह से विश्व समुदाय द्वारा मानवाधिकार बनाये तो गए थे पूरे विश्व समुदाय के लिए, पर किताबों तक ही सिमट गए ये अधिकार. हम मानवाधिकारों का दमन देखते है या यूं कंहे कि शायद ही दुनियां का कोई कोना होगा जहां रीयलिस्टिक तरीके में मानवाधिकारों का बोलबाला हो. हर जगह से उसके दमन की खबर आती है. सिर्फ मानवाधिकार की दुहाई दी जाती है. मेरे अपने नजरिए में मानवाधिकार भी हमारे दूसरे अधिकारों की तरह प्रयोग में हों, तो ही उनका कोई औचित्य होगा, नहीं तो सिर्फ सुनने बोलने के जैसी चीज रह जाएगी मानवाधिकर. जो खुद मानवाधिकारों को स्वीकार न करते हो उनपर खुद भी मानवाधिकार कभी लागू या प्रयोग नहीं हो. - रितु रानी, करनाल, हरियाणा

मानवाधिकार का मूलमंत्र है "वसुधैव कुटुंबकम" की भावना का होना. मानवीय मूल्यों की कद्र करते हुए मानव मात्र की भावनात्मक और बुनियादी जरूरतों को पूरा करना ही "मानवाधिकार" है. भौतिकवाद और कल के इस युग में मानव स्वयं मशीनी बनकर रह गया है. वह अपने और अपने परिवार के अलावा दूसरों के प्रति संवेदनशून्य होता जा रहा है. सत्ता-देश-धर्म-कर्म की सीमाओं से परे सम्पूर्ण मानव जाति के प्राथमिक हितों की सुरक्षा करना ही मानवाधिकार का उद्देश्य होना चाहिए. सभी राष्ट्रों को मानवता के हित में अपने निजी स्वार्थों को छोड़ना होगा. शुरुआत स्वयं से करना ज्यादा अच्छा रहेगा. हम खुद थोड़ा दूसरों को अपना मानकर जीना तो सीखें. - माधव शर्मा, राजकोट, गुजरात

मेरे लिए मानवाधिकार का मतलब है कि मुझे वो अधिकार मिले हुऐ हैं जो एक मानव को अपने जीवन यापन के लिए आवश्यक हैं. मानवीय अधिकारों को जैसे क्षेत्रिय, धार्मिक या आर्थिक आधार पर नियंत्रित नही किया जा सकता है. पुलिस बिना किसी तथ्य के मुझे जेल में नहीं बन्द कर सकती है. मैं किसी काम के लिए किसी को निर्धारित मजदूरी से कम पैसे में काम करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता हूं. संविधान से प्राप्त मेरे सारे अधिकार कोई नहीं ले सकता है. यदि कोई इसमें आंशिक या पूरी तरह से बाधा खडी करता है तो मेरे पास मानवाधिकार आयोग है जहां से मैं अपने अधिकारों को संरक्षित मानता हूं. कुछ अपवाद छोड़कर मानवाधिकार आयोग आज के समय में हम लोंगो के लिए अत्यन्त आवश्यक है. - अनिल द्विवेदी, अमेठी

मानवाधिकार से मेरा अभिप्राय मानव के उन अधिकारों से है जो कि मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, भौतिक, सामाजिक एवं श्रेष्ठ जीवनयापन और विकास के लिए स्वतन्त्रता प्रदान करते हैं तथा मानव के सम्मान व गरिमा के साथ जीवन जीने के लिए अनिवार्य हैं. मानव अधिकार को लोक की आवश्यकता और तन्त्र का आधार तथा धुरी कहा जा सकता है. जिन राष्ट्रों में मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता नहीं है, वहां मानव के सम्मान और गरिमापूर्ण जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियों की बात करना बेमानी है. आज भारत सहित दुनिया के लगभग सभी राष्ट्रों ने अपने संविधान और राष्ट्र में मानव अधिकारों को समुचित स्वरूप में व्यवस्थित किया है, लेकिन राज्यों की आन्तरिक तन्त्र की विफलता,लोकमन की नाराजगी,लोकतान्त्रिक मूल्यों का क्षरण, सामाजिक विषमता आदि सभी कारक एक राष्ट्र के अन्दर ही मानवाधिकारों की घोर अवमानना कर रहे हैं. दुनिया के विभिन्न देशों के आपसी सामरिक, सीमान्त, आर्थिक, राजनीतिक टकराव और आन्तरिक विद्रोह के कारण मानवधिकारों के उल्लघंन के मामले सामने आते रहें हैं. एम्नेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के मुताबिक 77 देशों में अभिव्यक्ति की आजादी पर तमाम प्रतिबन्ध हैं तथा 54 देशों मेँ आपराधिक मामलों का उचित पारदर्शी परीक्षण नहीं हो रहा है. भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में भी मानवाधिकार समाज लक्ष्य प्राप्ति से दूर है. भारत बड़ी संख्या में कुपोषित बच्चों को पालता है, विशेष निर्देशों आदि नियम कानून स्थापित होने के बाबजूद महिलाओं के खिलाफ हिंसा जैसे मामले कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं. - अंकप्रताप सिंह, अलीगढ, उत्तर प्रदेश

संकलनः विनोद चड्ढा

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन