मानवाधिकारों का कड़वा सच
संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य राष्ट्रों के लिए मानवाधिकारों के वैश्विक घोषणापत्र में जिन अधिकारों का वर्णन है, वे वर्तमान समय में दुनिया के कई हिस्सों में ना के बराबर दिखाई दे रहे हैं...
अभिव्यक्ति की आजादी (अनुच्छेद 18,19,20)
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में 350 से ज्यादा पत्रकार इस समय जेल में हैं.
समानता का अधिकार (अनुच्छेद 1)
कॉन्गो की सोने की खानों में जबरदस्ती काम में ढकेले गए इस बच्चे की सूरत मानवाधिकारों पर सवालिया निशान लगाती है.
नागरिक अधिकार (अनुच्छेद 2)
म्यांमार के अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति को देखकर यह बात कहना मुश्किल है. सभी मानवों को उनकी जाति, रंग, लिंग, भाषा, धर्म या ऐसी किसी भी विभिन्नता के बावजूद समान नागरिक अधिकार मिलने चाहिए.
जीवन और आजादी का अधिकार (अनुच्छेद 3,4,5)
किसी को भी गुलाम बनाकर रखना मानवाधिकार का हनन है. किसी के साथ भी क्रूरता या दंडनीय बर्ताव करना अमानवीय है. भारत की इस कपड़ा मिल में इस बच्चे के मानवाधिकार कुछ ऐसे कारखानों की भेंट चढ़ रहे हैं.
साथी चुनने का अधिकार (अनुच्छेद 16)
यूनीसेफ के मुताबिक दुनिया भर में 70 करोड़ से ज्यादा महिलाएं अपनी मर्जी के खिलाफ दांपत्य संबंध में जी रही हैं. ये है आठ साल की उम्र में शादी के बंधन में बांधा गया एक यमनी जोड़ा.
सम्माननीय कार्य करने का अधिकार (अनुच्छेद 23, 24)
संयुक्त राष्ट्र के श्रम संगठन (आईएलओ) के मुताबिक इस समय 20 करोड़ से ज्यादा लोगों के पास नौकरी नहीं है. फिर घोषणापत्र में दिए गए उनके काम करने के अधिकार का क्या करें.
गरिमा के बारे में (अनुच्छेद 25)
दुनिया भर में दो अरब से ज्यादा लोग कुपोषण से जूझ रहे हैं, जबकि 80 करोड़ भुखमरी के शिकार हैं. हर किसी को जीवन की गरिमा को बरकरार रखते हुए भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य सुविधाएं और सामाजिक सुविधाएं पाने का हक बताया गया है.
शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 26)
कहां तो प्राथमिक शिक्षा को जरूरी और मुफ्त बनाने का मकसद था. जबकि यूनेस्को के मुताबिक आज भी दुनिया भर में 78 करोड़ लोग लिख पढ़ नहीं सकते.