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समाज

माओवादी फाइटर महिलाओं की मायूस जिंदगी

२३ दिसम्बर २०१६

नेपाल में 10 साल तक चले गृहयुद्ध में माओवादी महिलाओं ने बड़ी भूमिका निभाई. बाद में सत्ता का संघर्ष तो खत्म हो गया लेकिन इन महिलाओं का संघर्ष आज भी जारी है.

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Nepal Protest gegen Vergewaltigung in Kathmandu
तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Shrestha

काठमांडू की व्यस्त रिंग रोड के पास बने एक घर में एक तस्वीर टंगी है. तस्वीर में एक महिला है जिसने वर्दी पहनी है और उसके हाथ में ऑटोमैटिक राइफल है. ये रजनी भंडारी की पुरानी दिनों की तस्वीर है. उन दिनों की जब वह जान की परवाह किये बिना माओवाद की लड़ाई लड़ रही थी. 27 साल की रजनी अब अपने पति और तीन साल के बेटे के साथ रहती हैं. छोटे से घर में किचन नहीं है. खाना कमरे में ही बनता है. यह सिर्फ रजनी की कहानी नहीं है. 40 लाख की आबादी वाले शहर में सैकड़ों महिलाओं यूं ही जिंदगी काट रही हैं.

रजनी के लिए वर्तमान को स्वीकार करना आसान नहीं है. किशोरावस्था में घरेलू नौकरानी का काम कर चुकी रजनी को माओवाद ने अपनी ओर खींचा. बेहतर जिंदगी और अच्छे शासन का सपना लेकर रजनी भी माओवादी धारा में शामिल हो गई. उन्हें लगा कि सत्ता मिली तो बाल मजदूरी खत्म हो जाएगी, महिलाओं को हक मिलेंगे. गरीबों का कल्याण होगा. ऐसे कई नारों के साथ एक दशक तक संघर्ष चला. नवंबर 2006 में संघर्ष खत्म हुआ और माओवादी राजनीति की मुख्य धारा में आ गए.

Nepal Achham - Religion und Frauen
सत्ता के गलियारों से बाहर कैसे निकलेंगे महिलाओं के अधिकारतस्वीर: Getty Images/AFP/P. Mathema

लेकिन शांति कायम होने के 10 साल बाद भी रजनी और माओवादी अतीत वाली सैकड़ों महिलाओं को लगता है कि वे सिर्फ नारे थे, जो नारेबाजी का हिस्सा थे. रजनी के मुताबिक, "वे कहते थे कि लड़ाई समानता और बदलाव के लिये है, वे महिलाओं के खिलाफ हिंसा को खत्म कर देंगे." लेकिन सरकार में शामिल होने के बाद ऐसा कुछ नहीं हुआ. हजारों पूर्व माओवादी लड़ाकों को 8,00,000 नेपाली रुपये का रिटायरमेंट पैकेज दिया गया. लेकिन रजनी समेत 4,000 योद्धाओं को इस रकम के लिए अयोग्य माना गया. उन्हें कम कुशल करार दिया गया. माओवादियों लड़ाकों में 40 फीसदी महिलाएं थीं. आज इन्हीं महिलाओं को सबसे ज्यादा सामाजिक चुनौती की सामना करना पड़ रहा है.

लीला शर्मा अस्मिता पहले माओवादी कमांडर थीं. देवखुरी घाटी में बड़ी हुई लीला स्कूल टीचर बनाना चाहती थीं. लेकिन उनकी बड़ी बहन माओवादी बन गई. लीला भी दीदी के नक्शे कदम पर चल पड़ीं. वे छुपकर माओवाद का प्रचार करती थीं. उन्हें पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की महिला अकादमी का प्रमुख बनाया गया. अब लीला भी रिटायर हैं और पूर्व माओवादी महिलाओं की मदद कर रही हैं. लीला कहती हैं कि हजारों महिलाएं बुरी नीतियों से नाराज हैं, "महिलाओं की अलग जरूरतें होती हैं. सैकड़ों ने कैंप में ही साथी गुरिल्लाओं से शादी कर ली और बच्चों को जन्म दिया. लेकिन सरकार और हमारी पार्टी ने उनकी शिकायतों का निपटारा नहीं किया." लीला की मांग है कि सरकार को इन महिलाओं और उनके बच्चों की सेहत, शिक्षा और ट्रेनिंग की जिम्मेदारी लेनी चाहिए.

Nepal Wahlen 2013
नेपाल में सरकार भी बना चुके हैं माओवादीतस्वीर: Reuters

नेपाल में माओवादियों के सरकार में आने के बाद कुछ बदलाव हुए. सरकारी प्रतिष्ठानों में महिलाओं की हिस्सेदारी उत्साहजनक तरीके से बढ़ी. लेकिन इसका फायदा चंद महिलाओं को मिला. रजनी समेत हजारों महिलाओं के जीवन में इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. रजनी कहती हैं, "हमारी पार्टी ने सिखाया कि लोगों के लिए लड़ो, अपनी आवाज उठाओ और अन्याय को सहन मत करो. लेकिन अब दो वक्त की रोटी जुटाना और अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देना ही हमारी मुख्य चिंता है."

नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन की मोहना अंसारी कहती हैं, "पुरुष कभी महिलाओं के मुद्दे नहीं उठाएंगे. हमारे समाज में ढांचागत समस्याएं हैं. महिलाओं को खुद अपने लिए आवाज उठानी होगी और अपने हकों के लिये लड़ना होगा. पुरुष प्रधान समाज ने महिलाओं पर बहुत जिम्मेदारियां लादी हैं. महिलाओं पर बहुत ज्यादा दबाव है."

ओएसजे/एमजे (डीपीए)