महिलाओं को तकनीक की दुनिया में आगे लाने की मुहिम
३१ मई २०२२अरबों डॉलर की फूड डिलीवरी कंपनी ग्रैब की सह संस्थापक के तौर पर तान हुई लिंग पहले ही औरतों के बारे में बनी पारंपरिक छवि को तोड़ रही हैं. अब उन्होंने अगली पढ़ी की महिला उद्यमियों के लिये भी रास्ता बनाने की ठान ली है.
इसी महीने कंपनी ने फैसला किया कि 2030 तक लीडरशिप भूमिकाओं वाली नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ा कर 40 फीसदी किया जाएगा. फिलहाल यह आंकड़ा 34 फीसदी का है. इसके साथ ही कंपनी ने समान वेतन सुनिश्चित करने का भी फैसला लिया है. लैंगिक समानता की उनकी लड़ाई में प्रमुख हथियार बने हैं आंकड़े. 38 साल की तान हुई लिंग ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "आंकड़े हमें ईमानदार बनाए रखते हैं. फिलहाल हमारे पास हर महीने और हर तीन महीने में रिपोर्ट आती है. इसकी मदद से हमें पता चलता है कि अलग-अलग टीमों में कितनी महिला "ग्रैबर्स" हैं, ताकि हम यह तय कर सकें कि बिना सोचे-समझे एकतरफा पक्षपात ना हो. साथ ही यह भी सुनिश्चित हो कि वेतन में समानता है."
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महिलाओं की भागीदारी कम
वैश्विक स्तर पर तकनीकी कंपनियों में गंभीर रूप से लैंगिक असंतुलन दिखाई देता है. कंसल्टेंसी फर्म एक्सेंचर और गैर-सरकारी संगठन "गर्ल्स हू कोड" की एक स्टडी से पता चला कि इस सेक्टर में काम करने वाली महिलाओं की संख्या अब 1984 का तुलना में भी कम है. मेटा के मार्क जकरबर्ग और अलीबाबा के सह संस्थापक जैक मा को हर कोई जानता है, लेकिन तकनीकी क्षेत्र में शीर्ष पर मौजूद महिलाओं को कम ही लोग पहचानते हैं.
तान सिंगापुर के मुख्यालय वाले ग्रैब की सह संस्थापक हैं. 2012 से ही दक्षिण पूर्वी एशिया में यह घरßघर में जाना जाने वाला नाम बन गया और अब कंपनी के लिए सैकड़ों इंजीनियर काम करते हैं. तान को उम्मीद है कि पुरुषों के वर्चस्व वाले इस सेक्टर में वह बदलाव की प्रेरणा बनेंगी. तान इस बात पर जोर देती हैं कि उन्हें लैंगिक भेदभाव नहीं सहना पड़ा क्योंकि उन्होंने खुद अपनी कंपनी बनाई थी. लेकिन वह मानती हैं कि हर किसी के साथ ऐसा नहीं है. तान ने कहा, "मैं यही भूमिका निभाने की उम्मीद कर रही हूं, ताकि जिस वातावरण में मैं बढ़ी, उसी तरह का वातावरण ज्यादा-से-ज्यादा बनाया जा सके."
हालांकि उद्योग के जानकारों का कहना है कि लैंगिक समानता के मामले में तकनीकी जगत की चुनौतियां बहुत बड़ी हैं क्योंकि कई कंपनियों में लैंगिक भेदभाव बहुत आम है. तकनीकी कंपनियों की स्थापना करने वाली 44 फीसदी महिलाओं का कहना है कि उन्हें उत्पीड़न झेलना पड़ा. ये आंकड़े "वूमन हू टेक" नाम की गैर-सरकारी संस्था के हैं, जिसने एक हजार से ज्यादा लोगों का सर्वे करने के बाद नतीजे निकाले.
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ज्यादातर महिलाओं को झेलना पड़ता है दुर्व्यवहार
पिछले साल अलीबाबा की एक महिला कर्मचारी ने आरोप लगाया कि बिजनेस ट्रिप पर उसके मैनेजर और एक क्लाइंट ने उसके साथ यौन दुर्व्यहार किया. चीनी ई- कॉमर्स कंपनी ने मैनेजर को नौकरी से हटा दिया, लेकिन बाद में पुलिस ने केस बंद कर दिया और उस महिला को भी नौकरी से निकाल दिया गया. इसी तरह अमेरिका में वीडियो गेम से जुड़ी कंपनी एक्टीविजन ब्लिजार्ड की लैंगिक दुर्व्यवहार और भेदभाव के आरोपों में जांच चल रही है. पूरे सेक्टर में वातावरण को बेहतर बनाने के लिए आलोचकों का कहना है कि लैंगिक असंतुलन को दूर करना सबसे जरूरी है.
दक्षिणपूर्वी एशिया में तकनीकी जगत में काम करने वालों में 32 फीसदी महिलायें हैं. वैश्विक औसत की तुलना में यह काफी ज्यादा है. हालांकि यह दूसरे उद्योगों की तुलना में कम है, जहां 38 फीसदी कामगार महिलायें हैं.
विज्ञान, गणित जैसे विषय में कम हैं लड़कियां
तान का कहना है कि लड़कियों को साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमैटिक्स जैसे विषय में आगे बढ़ने के लिये प्रेरित नहीं किया जाता. 2017 की यूनेस्को रिपोर्ट के मुताबिक, पूरी दुनिया में इन विषयों में उच्च शिक्षा हासिल करने वाली महज 35 फीसदी महिला हैं. तान की कंपनी महिलाओं के लिए लीडरशीप के कार्यक्रम कराती है और उन्हें मेंटर करने के लिए योजनाएं चलाती है, ताकि उद्योग में आने वाली नई महिलाओं को गाइड किया जा सके. तान का यह भी कहना है कि कंपनियों को कामकाजी मांओं के लिए बेहतर माहौल बनाने की जरूरत है, ताकि महिलायें काम छोड़ कर ना जाएं.
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सिविल इंजीनियर की बेटी तान मलेशिया के एक मध्यमवर्गीय परिवार में पली-बढ़ीं. उन्होंने यूके से मेकैनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और फिर मैकिंजे में काम किया. उसके बाद उन्होंने हॉवर्ड जा कर एमबीए की पढ़ाई की, जहां उनकी मुलाकात एंटनी तान से हुई. इसके बाद इन दोनों के मन में ग्रैब का विचार आया. एंटनी तान अब कंपनी के सीईओ हैं. एक दशक बीतने के बाद अब कंपनी की वैल्यू 10 अरब अमेरिकी डॉलर को पार कर गई है. उनकी कंपनी डिजिटल पेमेंट से लेकर कूरियर डिलिवरी तक की सेवायें मुहैया कराती है.
भविष्य की उम्मीद
सिंगापुर के बेहद व्यवस्थित बाजारों से लेकर ट्रैफिक जाम से भरे जकार्ता और मनीला की सड़कों तक कंपनी अलग-अलग तरह के माहौल में काम करती है और उसके सामने अक्सर अनोखी चुनौतियां होती हैं. तान ग्रैब के ड्राइवरों पर नजर रखती हैं और उन्होंने कंप्लेन डेस्क पर भी काफी समय बिताया है, जिससे कि वो कारोबार के सारे पक्षों को समझ सकें. वो खुद को कंपनी का "प्लंबर" कहती हैं.
स्थानीय इलाके की बेहतर समझ ने कंपनी को इस लायक बनाया कि उसने इस इलाके में ऊबर को भी पीछे छोड़ दिया और 2018 में अमेरिकी कंपनी के दक्षिण पूर्वी एशिया का ऑपरेशन खरीद लिया. हालांकि कंपनी के सामने अब भी कई चुनौतियां हैं. पिछले साल नैस्डैक में लिस्टिंग के बाद कमाई घटने की खबरों के बीच अपनी तीन चौथाई कीमत गंवा चुकी है.
बहरहाल इन चुनौतियों से परे तान कहती हैं कि ग्रैब कई पीढ़ियों के लिए हुनर पैदा करने के प्रति समर्पित है और उम्मीद करती है कि महिलायें भविष्य में टेक सेक्टर में नेतृत्व की भूमिका निभाएंगी.
एनआर/एसएम (एएफपी)