"मंगलयान में सब कुछ मंगल"
६ नवम्बर २०१३भारतीय समाचार एजेंसी पीटीआई ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी इसरो के हवाले से रिपोर्ट दी है, "पृथ्वी की कक्षा के अंदर यह बिलकुल सही तरह से काम कर रहा है. हमारी योजना है कि कल (गुरुवार) सुबह हम इसकी कक्षा को और ऊपर करें." इसरो के सूत्रों का कहना है कि यह यान फिलहाल पृथ्वी की कक्षा में पहला चक्कर लगा रहा है.
इस मंगलयान को पृथ्वी की कक्षा छोड़ने से पहले पांच चक्कर लगाने हैं, जिसके बाद यह एक दिसंबर को सूर्य की परिधि में प्रवेश कर जाएगा. वहां से लगभग नौ महीने बाद यह यान मंगल तक की अपनी यात्रा पूरी कर पाएगा.
भारत के ऊपर नहीं
लगभग 450 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट के तहत भारत ने मंगल ग्रह के लिए अपना पहला यान श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित किया. मंगलवार को इसे छोड़े जाने के बाद से इसका नियंत्रण बैंगलोर में इसरो के वैज्ञानिकों ने अपने हाथों में ले लिया है. सैटेलाइटों पर नजर रखने वाली वेबसाइट एन2वाईओ डॉट कॉम के मुताबिक भारतीय यान ने दोपहर एक बजे के आस पास अफ्रीकी देश नाइजीरिया को पार कर लिया और वह चाड के ऊपर से उड़ रहा है. इस वेबसाइट के मुताबिक मंगलयान की कक्षा ऐसी बनी है कि यह भारत के ऊपर से नहीं उड़ेगा, बल्कि हिन्द महासागर के ऊपर से गुजरेगा.
अंतरिक्ष की दिशा में यह भारत की दूसरी बड़ी उपलब्धि है. इससे पहले भारत ने 2008 में चांद पर अपना अंतरिक्ष यान चंद्रयान 1 भेजा था. भारत के पड़ोसी देश और अंतरिक्ष की बड़ी ताकत बनते जा रहे देश चीन ने भारत की इस उपलब्धि पर खुशी जताई है और उसे मुबारकबाद दिया है. चीन के विशेषज्ञों ने कहा है कि अगर यह प्रोजेक्ट कामयाब रहता है, तो भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में ऐसा करना वाला पहला एशियाई देश बन जाएगा.
चीन ने की तारीफ
बीजिंग चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी के दक्षिण एशिया विशेषज्ञ ये हाइलिन ने कहा, "चीनी लोगों की तरह भारतीयों का भी अंतरिक्ष को लेकर सपना है. अगर मंगल पर भेजा गया यान सफल रहा, तो मानव जाति का ज्ञान बढ़ेगा और हमारी जिन्दगी बदल सकती है."
चीन के अखबारों ने पहले पन्ने पर पूरी महत्ता के साथ इस खबर को प्रकाशित किया है. रिपोर्टों में इस बात का भी जिक्र है कि मंगल ग्रह के मामले में भारत ने चीन से बाजी मार ली है. ये का कहना है कि भारत और चीन मिल कर भी काम कर सकते हैं, और उन्हें "अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धा" में फंसने की जरूरत नहीं.
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता होंग ने कहा कि ब्रह्मांड का बाहरी आवरण "मानव जाति की सामूहिक विरासत" है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इसके विकास के लिए एकजुट होना चाहिए.
बाकी है इम्तिहान
चीन के अंतरिक्ष तकनीक अकादमी के रिसर्चर पांग जीहाओ का कहना है कि अभी भारत की इस परियोजना के आखिरी नतीजे का इंतजार करना होगा, क्योंकि अभी तो इसकी बस सफल शुरुआत ही हुई है. उनका कहना है, "इस यान को मंगल की कक्षा में स्थापित करना उतना ही मुश्किल है, जितना एक गोल्फ बॉल को टोक्यो के गोल्फकोर्स से मार कर पेरिस में किसी गोल्फकोर्स के होल में डालना है." उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में चीन मंगल ग्रह को लेकर अपनी परियोजना भी शुरू करने वाला है.
करीब 1350 किलो भारी मंगलयान को 78 करोड़ किलोमीटर की दूरी तय करके लाल ग्रह तक पहुंचना है और अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो इस काम में 300 दिन लगेंगे. भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो के प्रमुख के राधाकृष्णन का कहना है, "सबसे बड़ी चुनौती मंगल ग्रह तक पहुंचने तक इस यान पर नजर रखनी होगी. हमें 24 सितंबर, 2014 को पता चलेगा कि हम इम्तिहान में पास हुए या नहीं."
एजेए/एनआर (पीटीआई, एपी)