श्रमिकों को मिलेगा 'उपभोक्ता' होने का लाभ
२४ मार्च २०२०भवन निर्माण उद्योग भारत में महत्वपूर्ण उद्योगों में शामिल है, लेकिन वहीं काम करने करने वाले मजदूरों को कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ता है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में बिल्डिंग निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले देश के लगभग तीन करोड़ पंजीकृत श्रमिकों को उपभोक्ता का दर्जा दे दिया है. इस से वे अपने अधिकार प्राप्त करने के लिए और अपने हितों को सुरक्षित करने के लिए उपभोक्ता फोरम का सहारा ले सकते हैं.
भवन और अन्य निर्माण कर्मी अधिनियम, 1996 के तहत हर राज्य को निर्माण क्षेत्र के श्रमिकों के लिए एक कल्याण बोर्ड बनाना होता है और इन श्रमिकों को कई तरह की सहायता देने के उद्देश्य से बिल्डरों से एक प्रतिशत कर लिया जाता है. यह कर जिस कोष में जाता है उसका इस्तेमाल इन श्रमिकों को और उनके परिवार को विभिन्न लाभकारी योजनाओं के तहत लाभ देने के लिए किया जाता है. श्रमिक भी इस कोष में अपनी कमाई से छोटा सा योगदान देते हैं.
कल्याण बोर्ड जिन मामलों में श्रमिकों की मदद करते हैं उनमें शामिल हैं, दुर्घटना होने पर इलाज का खर्च, 60 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों को पेंशन, अपना घर बनाने के लिए लोन या एडवांस, श्रमिकों के लिए सामूहिक बीमे के प्रीमियम का भुगतान, बच्चों की पढ़ाई के लिए वित्तीय मदद, कोई बड़ी बीमारी हो जाने पर उसके इलाज का खर्च, महिला कर्मचारियों के लिए मैटरनिटी से जुड़े लाभ इत्यादि.
केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के पास इस समय इस कर से इकठ्ठा की हुई राशि लगभग 45,000 करोड़ रुपये है जबकि पंजीकृत श्रमिकों पर सिर्फ 17000 करोड़ रुपये के आस पास खर्च किया गया है. सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद, अगर किसी पंजीकृत श्रमिक को लगता है कि उसे कोष से अपेक्षित लाभ नहीं मिला है तो वो उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम के तहत राहत मांग सकता है.
ये एक बड़ा बदलाव है. माना जाता है कि भारत में 90 प्रतिशत श्रमिक असंगठित हैं जिसकी वजह से उन्हें रोजगार से संबंधित न तो किसी तरह की सुरक्षा मिलती है और न ही कोई लाभ मिल पाता है. भवन निर्माण कर्मी अधिनियम की वजह से कम से कम निर्माण क्षेत्र में तो श्रमिकों को कुछ राहत मिल पाई थी. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद उन्हें कानूनी सुरक्षा भी मिल गई है.
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