भारत में और राज्यों की मांग
३१ जुलाई २०१३तेलंगाना ने नए राज्यों की मांग कर रहे लोगों के लिए नया दरवाजा खोल दिया है. पश्चिम बंगाल को काट कर अलग गोरखालैंड बनाने की मांग करने वाले नेताओं ने पश्चिम बंगाल में एक दिन के बंद की अपील की है.
गोरखालैंड के नेता बिमल गुरुंग का कहना है, "गोरखालैंड की हमारी मांग तेलंगाना से पुरानी है. अगर सरकार तेलंगाना राज्य का एलान कर सकती है, तो इसे गोरखालैंड का भी एलान करना चाहिए."
सुभाष घीसिंग के नेतृत्व में 1980 के दशक में पहाड़ी इलाकों को मिला कर अलग गोरखालैंड की मांग तेज हुई थी, जिसकी राजधानी दार्जिलिंग बनाने की मांग थी. इसकी वजह से हिंसक आंदोलन भी हुए. चाय और पर्यटन स्थल के तौर पर मशहूर दार्जिलिंग को कई बार बंद का सामना करना पड़ा और वहां जाने वाले सैलानियों की संख्या घटती गई.
राजनीतिक फैसला
समझा जाता है कि आने वाले चुनावों को ध्यान में रखते हुए यूपीए सरकार ने यह फैसला किया है. दिल्ली के थिंक टैंक विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के केजी सुरेश का कहना है कि सरकार ने "भानुमति का पिटारा" खोल दिया है, "आपने संदेश दिया है कि कुछ दिनों तक प्रदर्शन करें और उसके बाद उनकी अलग राज्य की मांग मान ली जाएगी."
गोरखालैंड के अलावा कई और छोटे राज्यों की मांग हो रही है. इनमें असम के बोडो जाति के इलाकों में बोडोलैंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्से मिला कर बुंदेलखंड, महाराष्ट्र में नागपुर वाले हिस्से में विदर्भ, उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से को काट कर हरित प्रदेश और कई छोटे मोटे और राज्यों की मांगें शामिल हैं.
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने अपने पिछले कार्यकाल में राज्य को चार हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव भी दे दिया था लेकिन इसके बाद उनकी सत्ता चली गई. तेलंगाना राज्य के गठन के बाद इन छोटे राज्यों की मांग फिर से तेज हो सकती है.
परेशानी भरा फैसला
अलग राज्य का फैसला करने वाली कांग्रेस पार्टी भी इस बात को मानती है कि तेलंगाना के गठन के बाद कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह का कहना है, "किसी राज्य को बांटना किसी परिवार को बांटने जैसा है. यह बहुत अच्छा फैसला नहीं होता है. लेकिन कभी कभी दोनों पक्षों के हितों को देखते हुए ऐसा करना पड़ता है."
भारत ने आखिरी बार अपनी आंतरिक चौहद्दियों को 2000 में बदला था, जब तीन राज्य उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ का गठन किया गया था. तेलंगाना भारत का 29वां राज्य होगा. क्षेत्रफल के लिहाज से आंध्र प्रदेश भारत का पांचवां सबसे बड़ा राज्य है और यहां से लोकसभा की कुल 543 सीटों में से 42 सांसद आते हैं.
विरोध भी शुरू
तेलंगाना इलाके में हैदराबाद सहित आंध्र प्रदेश के 10 प्रमुख जिलों को शामिल किया गया है. हालांकि राजनीतिक समझौते के तौर पर हैदराबाद को अगले 10 साल तक दोनों राज्यों की राजधानी के तौर पर इस्तेमाल किए जाने का प्रस्ताव है. ठीक चंडीगढ़ की तरह, जो पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी है.
आंध्र प्रदेश के कई हिस्सों में तेलंगाना का विरोध शुरू हो गया है. रायलसीमा और तटीय आंध्र प्रदेश में बंद है. सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए हजारों अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया है. केंद्र सरकार ने 2009 में भी इस राज्य की घोषणा की थी लेकिन विरोध प्रदर्शनों के बाद उस फैसले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था. हालांकि इस फैसले को संसद से पास कराना जरूरी है लेकिन बीजेपी भी अलग तेलंगाना राज्य के पक्ष में है, लिहाजा सरकार को उसमें ज्यादा दुश्वारी नहीं होगी.
एजेए/एनआर (डीपीए, एएफपी, एपी)