भारत-बांग्लादेश सीमा विवाद सुलझा
८ मई २०१५गुरुवार को संसद में एकमत से भूमि सीमा समझौता से जुड़ा संवैधानिक संसोधन विधेयक पास हुआ, जिसके आधार पर दोनों देश अपने अपने दावे वाले इलाके की अदला बदली कर सकेंगे.
गुरुवार की कार्यवाही में भारतीय संसद के निचले सदन ने बिरले ही दिखने वाली एकमतता का प्रदर्शन करते हुए संविधान में 119वां संशोधन विधेयक पास किया. इसके आधार पर 1974 में भारत और बांग्लादेश के बीच हुए लैंड बाउंड्री समझौते का क्रियान्वन शुरु हो सकेगा. सदन के सभी 331 सदस्यों ने इस विधेयक के समर्थन में मत दिया. संसद द्वारा पास किया गया यह 100वां संवैधानिक संशोधन है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर बधाई देने के लिए आगे बढ़कर कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी समेत विपक्ष के कई नेताओं को बधाई दी. इसके पहले सदन में बोलते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि यह समझौता दोनों ही देशों के लिए फायदेमंद होगा.
भारत को बांग्लादेश से करीब 510 एकड़ भूमि वापस मिलेगी जबकि बांग्लादेश को लगभग 10,000 एकड़. सदन में उठे इस सवाल पर कि क्या इससे भारत को अपनी इलाका खोना पड़ेगा, स्वराज ने कहा, "यह कल्पनिक आंकड़े हैं क्योंकि असल में ये इलाके एक दूसरे देश की सीमा में काफी गहरे स्थित हैं. इससे हमारी सीमाएं नहीं सिमट रही हैं." स्वराज ने बताया कि सीमाओं के पुनर्निर्धारित होने से अवैध आप्रवासियों की समस्या पर बेहतर नियंत्रण हो सकेगा. उन्होंने कहा कि अब बांग्लादेश के साथ भारत का जो सबसे महत्वपूर्ण अनसुलझा मसला है वह केवल तीस्ता जैसी नदियों के पानी के बंटवारे का है.
दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा का विवाद भी अंतरराष्ट्रीय ट्राइब्यूनल के फैसले से बीते साल ही सुलझा लिया गया.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केन्द्र सरकार से मांग की थी कि वह बांग्लादेश से आने वाले करीब 60 से 70 हजार लोगों को बसाने के लिए आर्थिक पैकेज दें. विदेश मंत्री स्वराज ने बताया कि अलग अलग अनुमान बता रहे हैं कि करीब 3,500 से 35,000 लोगों को पुनर्वास में मदद की जरूरत होगी, जिसके लिए सरकार ने पश्चिम बंगाल को 3,008 करोड़ रुपये का पैकेज देने का फैसला किया है. इस राशि का इस्तेमाल बांग्लादेश के लोगों को पश्चिम बंगाल में ही बसाने के लिए किया जाएगा. इन इन्क्लेवों में रहने वालों को नागरिकता चुनने का भी अधिकार मिलेगा.
वर्तमान में भारत में 111 जबकि बांग्लादेश में ऐसे 51 इन्क्लेव हैं. यहां रहने वाले लोगों को फिलहाल किसी भी देश के नागरिक होने का अधिकार प्राप्त नहीं है. यह इन्क्लेव किसी द्वीप की तरह ही कुछ ऐसे बसे हैं, कि एक देश के नागरिकों की आबादी के हिस्से चारों ओर से दूसरे देश की भूमि और उसके निवासियों से घिरे हुए हैं. सदियों पहले राजाओं के जमाने में हुए जमीन के बंटवारे के कारण ऐसी स्थिति बनी थी और वही व्यवस्था 1947 में ब्रिटिश शासन के खत्म होने और 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग होने के दौरान भी बरकरार रह गई. संविधान के संसोधन के बाद दोनों देश अपने इन्क्लेवों की अदला बदली कर सकेंगे. भारत में यह क्षेत्र पूर्वोत्तर के असम, त्रिपुरा, मेघालय और पूर्वी बंगाल के हिस्सों में स्थित हैं. किसी एक देश की नागरिकता चुनने के बाद आगे चलकर इन सभी इनक्लेवों का अस्तित्व खत्म हो पाएगा.
आरआर/ओएसजे (पीटीआई, एएफपी)