'भारत की बुनियाद मजबूत है'
२२ जुलाई २०१३डीडब्ल्यूः पिछले महीने ही विदेश मंत्री जॉन केरी भारत का दौरा करके गए हैं और अब उप राष्ट्रपति जो बाइडन आ रहे हैं. उपराष्ट्रपति का यह दौरा विदेश मंत्री के दौरे की अगली कड़ी है या इस दौरान कुछ नई बात होने वाली है?
कमर आगाः विदेश नीति एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है. दोनों की यात्राएं एक दूसरे से जुड़ी भी हैं और कुछ अलग बातें भी हैं. काफी पहले यह यात्राएं तय हुई थीं. खास तौर से अफगानिस्तान को लेकर पिछले दिनों काफी गर्मी बढ़ गई है और भारत और अमेरिकी अधिकारी एक दूसरे के देशों में आ जा रहे हैं. इस यात्रा को भारत में काफी महत्व दिया जा रहा है.
किस लिहाज से यह दौरा अहम है, राजनीतिक मुद्दों को लेकर या फिर कारोबारी समझौतों की नजर से?
तीन चीजें है जो बेहद अहम हैं. भारत के लिए अफगानिस्तान पर बातचीत एक बहुत बड़ा मुद्दा है. जो बाइडन लंबे समय से इससे जुड़े रहे हैं वो इससे जुड़ी कमेटी में भी रहे हैं और फिर वह उपराष्ट्रपति हैं और राष्ट्रपति बराक ओबामा के करीबी भी. दूसरा मुद्दा है एशिया प्रशांत क्षेत्र जो अमेरिका के लिए बेहद जरूरी बन गया है, इसमें वो भारत को बहुत बड़ी भूमिका देने जा रहे हैं, जो नजर भी आ रहा है और तीसरी चीज है हमारे द्वीपक्षीय संबंध जिसमें कई बातों पर चर्चा होनी है. आपसी कारोबार जिस तरह बढ़ना चाहिए वो नहीं बढ़ा है. इनमें ऊर्जा पर भी बातचीत होनी है, परमाणु उर्जा पर सहयोग भी है, करार होने के बावजूद अभी तक बहुत ज्यादा काम नहीं हुआ है. रिएक्टर नहीं आए हैं, भारत की तरफ से भी कुछ दिक्कतें हैं इनके अलावा आतंकवाद एक साझा मुद्दा है जिस पर चर्चा होनी ही हैं.
अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर आपकी उम्मीदें क्या हैं?
मुझे लगता है कि अफगानिस्तान में स्थिरता आ सकती है. तालिबान लाख कोशिश कर ले इस सरकार को नहीं गिरा पाएगी. तालिबान से बात करके अमेरिका दूसरी सबसे बड़ी गलती करने जा रहे हैं. तालिबान उस तरह की ताकत नहीं है. जैसे ही अमेरिका वहां से जाएगा मेरा मानना है कि जो तालिबान का समर्थन है आम जनता में वह खत्म हो जाएगा. लेकिन इसके बाद वहां एक सत्ता का खालीपन होगा और कब्जे के लिए भारी लड़ाई होगी. तालिबान के अलग अलग गुट हैं, अमेरिकी वहां एक गुट से बात करने जाते हैं और इस बीच दूसरा गुट हमला कर देता है. इनके अलावा भी अफगानिस्तान की और भी दिक्कतें हैं - उनमें भ्रष्टाचार और न्यायपालिका सबसे बड़ी है, लेकिन धीरे धीरे स्थिरता आएगी. बहुत से देशों के हित अफगानिस्तान से जुड़े हुए हैं और सब मिल कर उसे बिखरने नहीं देंगे. क्योंकि तालिबान आ गया तो सबकी मुसीबत आएगी और इसमें पाकिस्तान की भूमिका भी बहुत चिंता में डालने वाली है.
जो बाइडन दिल्ली के बाद दो दिन मुंबई में रहेंगें. जाहिर है कि उनका ध्यान कारोबार पर भी है. फिलहाल भारत की अर्थव्यवस्था का जो हाल है उसमें आपको लगता है कि अंतरराष्ट्रीय जगत ने जितना भरोसा भारत की कारोबारी क्षमता पर किया था वह अब भी बचा हुआ है?
मैं समझता हूं कि यह एक तात्कालिक स्थिति है जिससे भारत गुजर रहा है. सुधारों की काफी जरूरत थी जिस पर काम नहीं हुआ लेकिन अब काफी तेजी आई है. दुनिया की आर्थिक मंदी का भारत पर भी असर हो रहा है. मगर एक बात मैं कहूंगा कि तमाम मुश्किलों के बाद भी भारत की जो अर्थव्यवस्था की बुनियाद है वह मजबूत है. विकास में कमी जरूर आई है लेकिन कुल मिला कर अर्थव्यवस्था की हालत उतनी बुरी नहीं है. थोड़े दिनों की बात है, फिर निवेश होगा, बाहर से भी निवेश आएगा. बहुत से क्षेत्रों में विदेशी निवेश की सीमा भी बढ़ा दी गई है. रक्षा के क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ने वाला है. हम कह सकते हैं कि पश्चिमी देशों की बहुत सी मांगें मान ली गई हैं. इसके अलावा भी कई बातें हैं जो अंतरराष्ट्रीय जगत के लिए भारत को अहम बनाती हैं. यहां का लोकतंत्र इसमें सबसे अहम है इसके अलावा अंग्रेजी भाषा बोलने वाले और कंप्युटर के जानकार, प्रबंधन की तकनीकों पर भारत के लोगों की मजबूत पकड़ है. इसके अलावा चीन का जो रवैया कोरिया, जापान और भारत को लेकर है, उससे भी पश्चिमी देश चिंतित हैं और ऐसे में उनकी नजर भारत पर है.
बुनियादी ढांचे के विकास के साथ ही जिस तरह तरह के कदमों की सरकार से अपेक्षा थी उस पर ठीक से काम न होने के कारण क्या अंतरराष्ट्रीय जगत को निराशा हुई है?
बहुत सी गलतियां हुई हैं. सबसे बड़ी बात रही कि पिछले डेढ़ दो साल से सरकार आंतरिक मसलों में उलझी रही. एक के बाद एक भ्रष्टाचार के मामले सामने आए, संसद में कोई कामकाज नहीं हो सका, बिल नहीं पास हो सके, सुधारों का काम बहुत पहले हो जाना चाहिए था उसमें बहुत देर हो गई, बुनियादी ढांचे का उस तरह से विकास नहीं हो सका. इस देरी की दो प्रमुख वजहें रहीं, एक तो विदेशों से जो हमारे पास फंड आना था वह नहीं आ सका. अरब देशों से भारत को फंड मिलने वाला था वो नहीं मिला, पश्चिमी देशों से निवेश होना था वो नहीं हुआ. प्रधानमंत्री के दौरे के बाद जापान से फंड आना था वो भी नहीं आया. जापान से बहुत बड़े निवेश की हम उम्मीद कर रहे हैं. खास तौर से जो नॉर्थवेस्ट कॉरिडोर बन रहा है ट्रेन का, उसके दोनों ओर जापान बहुत सी फैक्ट्रियां लगाने वाला है. इसके अलावा वह चीन से बहुत सारी फैक्ट्रियों को हटा कर अब भारत में लगाना चाह रहा है क्योंकि यहां मजदूरी सस्ती है और दूसरी सकारात्मक बातें हैं. मैं समझता हूं कि इसमें भी बहुत तेजी से काम चल रहा है. सड़क का काम बीच में ढीला पड़ गया था लेकिन अब इसमें तेजी आ रही है. बिजली की कमी है जो चिंता का कारण है लेकिन भारत सरकार उस दिशा में काम कर रही है, कई नए प्रोजेक्ट हैं. परमाणु उर्जा में दिक्कत आ रही है, प्लांट बनने के बाद भी काम शुरू नहीं हुआ. लेकिन अब उम्मीद की जा रही है.
इंटर्व्यूः एन रंजन
संपादनः मानसी गोपालकृष्णन