भारतीय मूल के यूरोपीय बंजारे
१२ दिसम्बर २०१२सिंती और रोमा समुदाय सदियों से यूरोप में रह रहे हैं. यूरोप के अलग अलग देशों में रहते हुए इन्होंने खुद को उस देश के अनुसार ढाला, वहां की भाषा सीखी, लेकिन साथ ही अपनी भाषा को लुप्त नहीं होने दिया. इनकी भाषा को रोमानी कहा जाता है. हालांकि रोमानी कोई एक भाषा न होकर, कई भाषाओं और बोलियों का मिश्रण है. ये सभी भाषाएं ऐसी हैं जिनका मूल संस्कृत है. भाषा विज्ञानी तो 18वीं सदी से ही यह बात कहते आए हैं कि सिंती और रोमा समुदायों की जड़ें भारत में हैं.
1,500 साल पहले हुई शुरुआत
अब विज्ञान पत्रिका 'करंट बायोलॉजी' में छपी एक रिसर्च भी इसकी पुष्टि कर रहा है. इस रिसर्च में इनके आनुवांशिक ढांचे पर शोध किया गया है, जिससे न केवल यह पता चलता है कि सिंती और रोमा भारत से नाता रखते हैं, बल्कि यह भी कि वे भारत के किस हिस्से से जुड़े हुए हैं. शोध करने वाली टीम के मानफ्रेड कायजर ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया, "इस शोध से एक तो हमने इस बात की पुष्टी कर ली कि वे भारत से ही आए थे, इसके साथ हमें यह भी ठोस रूप से पता चल गया है कि वे भारत के उत्तर और उत्तर पश्चिमी इलाके से नाते रखते थे. हम कह सकते हैं कि यहीं से रोमा समुदाय का पलायन शुरू हुआ."
रॉटरडैम की इरैस्मस यूनिवर्सिटी के मानफ्रेड कायजर का कहना है कि शोध से उस समय का भी पता चल पाया है जब वे भारत से यूरोप आए, "हमारे आंकड़े बताते हैं कि भारत से यह पलायन डेढ़ हजार साल पहले शुरू हुआ और फिर हम यह भी देख सकते हैं कि उसके बाद क्या हुआ, ऐसा लगता है कि पूर्व और पश्चिमी यूरोप में रोमा समुदाय दो हिस्सों में बंट गया. ऐसा करीब 900 साल पहले बाल्कन इलाके के करीब हुआ."
पूरे यूरोप में फैले
आज यूरोप भर में करीब 11 करोड़ सिंती और रोमा रहते हैं. अकेले जर्मनी में ही इनकी संख्या 70,000 है. सर्बिया, हंगरी, बुल्गारिया, रोमेनिया और स्पेन में भी वे काफी बड़ी तादाद में हैं. हालांकि सही आंकड़ें मौजूद ही नहीं हैं, क्योंकि आम जनता के बीच सिंती और रोमा मूल के लोगों की पहचान करना मुश्किल है.
इससे पहले ऐसे शोध हुए थे जिनसे अनुमान लगाया गया था कि यह समुदाय अफ्रीका से स्पेन आया. लेकिन इस नए शोध ने इन अटकलों को हमेशा के लिए खत्म कर दिया है. अब तक शोधकर्ताओं के लिए एक बड़ी समस्या रोमानी भाषा भी थी. इसकी कोई लिपि नहीं है. भले ही ये लोग सदियों से अपनी भाषा को बचाने में कामयाब रहे हों, लेकिन भाषा को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक केवल मौखिक रूप से ही आगे बढ़ाया गया. शोधकर्ताओं के लिए बिना लिपि के उनके इतिहास को समझना चुनौती भरा काम था, इसलिए जीन के ढांचे को समझ लेने वाले इस शोध की अहमियत और भी बढ़ जाती है.
भाषा विज्ञानी लम्बे समय से सिंती और रोमा पर शोध करते आए हैं. वे समझना चाहते हैं कि ये समुदाय यूरोप में कब और कहां पहुंचा. मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी में भाषा विज्ञान के प्रोफेसर यारोन माटरास भी इन नतीजों को शानदार मानते हैं, "भाषा विज्ञान की नजर से देखें तो आनुवांशिक ढांचे की तुलना के चलते अब हमारे पास बहुत ज्यादा जानकारी है. जीन के ढांचे के बारे में जो पता चला है वह हमारे नतीजों की पुष्टि करता है."
भाषा विज्ञानियों की मानें तो उत्तर और उत्तर पश्चिमी भारत से यूरोप आने से भी पहले, यह समुदाय मध्य भारत में रहता था. माटरास वैज्ञानिकों के इस नए शोध को बेहद अहम मानते हैं और उम्मीद करते हैं कि आगे भी उनके शोध को इस से फायदा होगा.
रिपोर्ट: मार्कुस ल्यूटिके/आईबी
संपादन: ओंकार सिंह जनौटी