ब्रेक्जिट के लिए ब्रिटिश चुनाव के मायने
ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरीजा मे ने 8 जून को चुनाव कराने की घोषणा की है. एक जनमत संग्रह में ब्रेक्जिट का फैसला लिये जाने के बाद इन चुनावों की ईयू के साथ ब्रिटेन के संबंधों में अहम भूमिका होगी.
स्थिरता के लिए जरूरी
ब्रेक्जिट के मुद्दे पर हर पार्टी में विभाजन था. मतदाताओं के फैसले के बावजूद यह विभाजन बना हुआ है. नये चुनाव संसद और सरकार में स्थिरता लायेंगे और ईयू के साथ सौदेबाजी में मददगार साबित होंगे.
मजबूरी का फैसला
मध्यावधि चुनाव कराने का थेरीजा मे का फैसला यू टर्न है क्योंकि पहले उन्होंने इससे इंकार किया था. उन्होंने कहा था कि देश को चुनाव के बदले स्थिरता की जरूरत है. लेकिन साफ है कि वेस्टमिंस्टर विभाजित है.
जीत का फायदा
थेरीजा मे के लिए चुनाव करवाना जुआ खेलने जैसा है. यदि वह चुनाव जीत जाती है तो घरेलू मोर्चे पर और अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर उनकी स्थिति मजबूत होगी. ईयू के साथ वार्ता में वह आत्मविश्वास दिखा पाएंगी.
बहुमत का फायदा
यदि थेरीजा मे को चुनावों में बड़ा बहुमत मिलता है तो वह कंजरवेटिव पार्टी के अंदर मौजूद ईयू विरोधियों के शिकंजे से बाहर निकल पाएंगी. इसके अलावा ये जीत प्रधानमंत्री के रूप में भी उनकी स्थिति को मजबूत करेगी.
वार्ता में मजबूती
यूरोपीय संघ के नेता ब्रेक्जिट के फैसले के बाद ब्रिटेन पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. चुनावी जीत उन्हें मार्च 2019 में होने वाली वार्ता के लिए घर पर पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध करायेगी.
राजनीतिक दबाव
यदि संसदीय चुनाव योजना के अनुसार 2020 में होते तो ईयू के साथ सदस्यता छोड़ने की वार्ता में थेरीजा मे पर बहुत दबाव होता. वार्ता का असर चुनावी बहस और उसके नतीजों पर भी होता. अब उन्हें इस दबाव से राहत मिल जायेगी.
अगले चुनाव
अब अगले चुनाव 2022 में होंगे. यदि ईयू के साथ ब्रेक्जिट वार्ता के कुछ नकारात्मक आर्थिक असर होते हैं तो उनसे निबटने के लिए उन्हें काफी समय मिल जायेगा. थेरीजा मे आने वाले समय के लिए तैयार हो रही हैं.
चुनाव के मायने
ब्रिटिश प्रधानमंत्री के चुनाव कराने के फैसले का मतलब यह भी है कि यूरोपीय संघ की तीन प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी 2017 में ही चुनावों का सामना कर रही हैं. ये चुनाव ईयू का भविष्य तय करेंगे.