बिना अपराध 20 साल बिताए जेल में, अब कोर्ट ने किया रिहा
२५ फ़रवरी २०२१एससी/एसटी एक्ट के तहत दुष्कर्म में दोषी ठहराए जाने के बाद यह व्यक्ति कई सालों से आगरा की जेल में बंद था. इस दौरान उसके माता-पिता और दो भाइयों की मौत भी हो गई लेकिन उसे उनके उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति भी नहीं दी गई. बुधवार को हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने उसको आरोपों से बरी कर दिया.
खबरों के मुताबिक, ललितपुर जिले की एक दलित महिला ने सितंबर 2000 में विष्णु तिवारी पर दुष्कर्म करने का आरोप लगाया था. उस वक्त विष्णु की उम्र 23 साल थी. पुलिस ने विष्णु तिवारी पर आईपीसी की धारा 376, 506 और एससी/एससी एक्ट की धारा 3 (1) (7), 3 (2) (5) के तहत मामला दर्ज किया था.
मामले की जांच तत्कालीन नरहट सर्कल अधिकारी अखिलेश नारायण सिंह ने की थी और इसके बाद सेशन कोर्ट ने विष्णु को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. विष्णु को फिर आगरा जेल में स्थानांतरित कर दिया गया जहां वह इतने सालों से बंद है. 2005 में विष्णु ने हाईकोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील की लेकिन 16 साल तक मामले पर सुनवाई नहीं हो सकी.
बाद में राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण ने वकील श्वेता सिंह राणा को उनका बचाव पक्ष का वकील नियुक्त किया. 28 जनवरी को हाईकोर्ट के जस्टिस कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस गौतम चौधरी ने अपने आदेश में कहा, "तथ्यों और सबूतों को देखते हुए हमारा मानना है कि अभियुक्त को गलत तरीके से दोषी ठहराया गया था, इसलिए ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए आरोपी को बरी कर दिया गया है."
विष्णु के भतीजे सत्येंद्र ने संवाददाताओं से कहा, "मेरे चाचा को इस तरह गलत दोषी ठहराए जाने ने हमारे पूरे परिवार को आर्थिक और सामाजिक रूप से तोड़ दिया. सदमे और सामाजिक कलंक के कारण मैंने अपने पिता, चाचा और दादा-दादी को खो दिया. इस केस को लड़ने में परिवार को जमीन का एक बड़ा हिस्सा बेचना पड़ा. मेरे चाचा को अपनी जिंदगी के सबसे बेहतरीन साल बिना गलती के जेल में बिताने पड़े. उनकी तो पूरी जिंदगी ही बर्बाद हो गई."
आईएएनएस/आईबी
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