बादलों की छांव में घिरेंगे वैज्ञानिक
२ जून २०१२1,438 मीटर की ऊंचाई पर स्थित महाबलेश्वर में अब वैज्ञानिक बादलों की तस्वीर लेने वाले एक खास स्काई इमेजर की तरह कई आधुनिक यंत्रों की मदद से बादलों पर शोध कर सकेंगे. पास के मधर देवी पहाड़ पर एक एक्स बैंड रडार भी लगाया जाएगा जिसके साथ मिलकर काम कर रहा स्काई इमेजर बादलों की निगरानी कर सकेगा. क्लाउड माइक्रो फिजिक्स प्रयोगशाला चलाने वाले इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटियोरॉलजी आईआईटीएम केजी पंडितुरई कहते हैं, "मानसून के दौरान समुद्र तल से बादलों की ऊंचाई 1000 से लेकर 1,500 मीटर तक होती है. महाबलेश्वर में बादल लगभग जमीन के पास हैं और इससे बादलों को देखने का एक खास मौका मिलता है. साथ ही, अरब सागर पर मानसून के बादल बनने के बाद सबसे पहले वे यहीं आते हैं."
क्लाउड माइक्रो फिजिक्स प्रयोगशाला के बारे में पंडितुरई कहते हैं कि महाबलेश्वर में देखा जा सकता है कि पहाड़ों से टकरा रही हवाएं किस तरह बारिश और मौसम को प्रभावित करती हैं और इनमें कितना बदलाव आता है. महाबलेश्वर में जलवायु के मानकों पर निगरानी रखने से जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के बारे में जानकारी बढ़ सकती है. महाबलेश्वर पर बन रही यह प्रयोगशाला दुनिया की कुछ गिने चुने शोध केंद्रों में से है.
महाबलेश्वर में जानकारी जमा करने के साथ साथ सीएआईपीईईएक्स नाम के एक प्रोजेक्ट से भी जानकारी मिलेगी. इस प्रोजेक्ट के तहत बादलों पर सूचना हवाई जहाजों की मदद से हासिल की जाती है. इससे पानी और गैस के मिश्रण वाले मॉलिक्यूल यानी एरोसॉल, बादलों और हवा के संचार का पता लगाया जा सकता है. आईआईटीएम के वैज्ञानिकों का कहना है कि हवाई जहाजों में मौसम संबंधी उपकरणों के लगाए जाने से ऊपर से लेकर नीचे तक, बादल कैसे दिखते हैं, इसका पता लगाया जा सकता है. साथ ही, लंबे समय तक बादलों की खासियत को समझने से उनके बनने और खत्म होने के बारे में जानकारी हासिल हो सकती है.
आईआईटीएम में दस वौज्ञानिकों की टीम बारिश के मौसम में बादलों को जानने की कोशिश में लग चुकी है.वैज्ञानिकों का कहना है कि वायुमंडलीय विज्ञान के इतिहास में यह प्रयोगशाला एक मील का पत्थर है. मानसून के बादलों पर जानकारी हासिल करने वाली यह प्रयोगशाला भारत में अपनी तरह की पहली होगी.
रिपोर्टः एमजी/एएम(पीटीआई)