बच्चे के साथ रहकर बदल गया मर्दों का रवैया
१९ अक्टूबर २०१८जर्मनी इस मायने में दूसरे देशों से अलग नहीं कि यहां भी लड़कियां समाज में बराबरी के लिए संघर्ष कर रही हैं. लगातार कई सालों से पुरुषों और महिलाओं के वेतन में औसत 22 प्रतिशत का अंतर बना हुआ है. यहां भी बराबरी के लिए संघर्ष कर रही महिलाओं को दोहरी जिम्मेदारी लेनी पड़ रही है, नौकरी पर और घर में भी. पुरुष आम तौर पर घरबार चलाने और बच्चों की परवरिश में जिम्मेदारियों से किनारा कर लेते हैं, लेकिन स्थिति बदल रही है.
पिछले कुछ समय से जर्मनी ने बच्चे के जन्म के बाद मांओं को दी जाने वाली मातृत्व अवकाश को अभिभावक अवकाश में बदल दिया है. अब वह छुट्टी माता पिता में से कोई भी ले सकता है या उसे बांट सकता है. एक सर्वे से पता चला है कि अभिभावक अवकाश पर जाने वाले पिता छुट्टी के दौरान तो बच्चों के साथ ज्यादा समय गुजारते ही हैं, वे घर के कामकाज में भी हाथ बंटाते हैं. दिलचस्प बात ये है कि ऐसे पिता छुट्टी के सालों बाद भी अपनी ये आदत नहीं भूलते.
जर्मन शहर एसेन के आर्थिक शोध संस्थान के एक सर्वे के अनुसार अभिभावक अवकाश लेने वाले पिता छुट्टी खत्म हो जाने के बाद बच्चे के पहले छह वर्षों में हर वीकएंड सामान्य रूप से काम करने वाले पिताओं के मुकाबले डेढ़ घंटा ज्यादा समय गुजारते हैं. यह जानकारी सोशियो इकोनॉमिक पैनल के डाटा के आकलन से पता चली है. घर के कामकाज में हाथ बंटाने के मामले में भी अभिभावक अवकाश का असर सालों तक रहता है.
अभिभावक अवकाश और अभिभावक भत्ता पाने वाले पिता हर दिन आधा घंटा ज्यादा घर का कामकाज करते हैं. इस सर्वे के लिए काम करने वाले रिसर्चर मार्कुस टाम कहते हैं, "भले ही छुट्टी सिर्फ दो महीने की हो लेकिन वह परिवार में पिता की भूमिका को दूरगामी रूप से बदल देता है."
इस अध्ययन में उन पुरुषों के व्यवहार की तुलना की गई है जो 2007 में अभिभावक अवकाश के लागू होने के पहले और बाद में पिता बने हैं. इसलिए व्यवहार में बदलाव के लिए इस बात को जिम्मेदार नहीं कहा जा सकता कि पिता पहले से ही घरबार में हाथ बंटाने में सक्रिय थे. एक ही पिता के व्यवहार में शोधकर्ताओं ने पहले और दूसरे बच्चे के जन्म के बाद अंतर देखा है.
जर्मनी की परिवार मंत्री ने बच्चे के जन्म के बाद माता और पिता दोनों ही को भत्ता और छुट्टी लेने की संभावना देने को सफल परीक्षण बताया है और कहा है कि इससे सामाजिक बदलाव लाने में सफलता मिली है.
एमजे/एनआर (डीपीए)
देखिए लड़कियां क्या क्या झेल रही हैं: