फिर बाहर निकला फिक्सिंग का भूत
३० अगस्त २०१०सन 2000 में जब दक्षिण अफ्रीका के पूर्व दिवंगत कप्तान हैंसी क्रोन्ये ने क्रिकेट बिरादरी में 'मैच फिक्सिंग' का खुलासा किया था तो पूरी दुनिया में हड़कप मच गया था. तब भारतीय स्टार कपिल देव, अजहरुद्दीन, हर्शल गिब्स, निकी बोए, मनोज प्रभाकर, अजय जड़ेजा, निखिल चोपड़ा, अजय शर्मा से लेकर और भी कई बड़े नामों पर 'मैच फिक्सिंग' के आरोप लगे.
दुनिया के कुछ नामी क्रिकेटरों ने बिना हिचके सट्टेबाजों से संपर्क करने की बात स्वीकारी थी और कुछ बाकायदा टीवी के सामने आंसू बहाते नजर आए थे. याद रहे कि अफ्रीकी कप्तान क्रोन्ये ने सट्टेबाज मुकेश गुप्ता से फिक्सिंग की बात कबूली थी. यह बात अलग है कि अफ्रीका में जांच के चलते क्रोन्ये एक विमान हादसे में मारे गए थे.
कहते है ना कि वक्त गहरे से गहरा घाव भर देता है. कुछ ऐसा ही क्रिकेट के साथ ही हुआ. समय बीतता चला गया और लोग फिक्सिंग की बात भूलते चले गए और क्रिकेट को शर्मसार करने वाले यही लोग आज सम्मान के साथ सबके बीच बैठते हैं, अपने गले में हार डलवाते हैं और मीडिया भी इन्हें सिर आंखों पर बैठाता है.
हैंसी क्रोन्ये की मैच फिक्सिंग स्वीकारोक्ति की घटना गुजरे 10 साल हो गए हैं लेकिन इसके बाद भी क्रिकेट में 'फिक्सिंग' का गोरखधंधा बदस्तूर जारी है. ड्रेसिंग रूम में मोबाइल के प्रतिबंध, होटल में फोन कॉल्स पर नजर और किसी भी अनजान व्यक्ति से न मिलने की आईसीसी की तमाम कोशिशों के बावजूद पैसों के भूखे ये क्रिकेटर किसी न किसी माध्यम से सट्टेबाजों की जद में आ ही जाते हैं और खेल को दांव पर लगा बैठते हैं.
हाल ही में पाकिस्तानी क्रिकेटरों के लॉर्ड्स टेस्ट मैच में इंग्लैंड के खिलाफ ‘स्पॉट फिक्सिंग' रैकेट में शामिल होने जो खबर आई है उसने एक दफा फिर आईसीसी की नींद उड़ा दी है.
पाकिस्तानी टीम मैनेजर यावद सईद स्वीकार किया है कि स्कॉटलैंडयार्ड के अधिकारियों ने टीम के होटल का दौरा किया, जहां उन्होंने कप्तान सलमान बट, तेज गेंदबाज मोहम्मद आसिफ, मोहम्मद आमिर और विकेटकीपर कामरान अकमल के बयान लिए हैं.
उधर गिरफ्तार सट्टेबाज मजहर मजीद का कहना है कि उसने फिक्सिंग के लिए 1 लाख 50 हजार पाउंड की राशि दी. इस खुलासे के बाद पाकिस्तानी क्रिकेटर मुश्किल में फंस गए है. यह पहला मौका नहीं है कि पाक क्रिकेटर 'नापाक' करार दिए गए हों. इसके पहले सलीम मलिक, आकिब जावेद, राशिद लतीफ तक प्रतिबंध की जलालत झेल चुके हैं.
क्रिकेट को शर्मसार होने से बचाने के लिए आईसीसी चाहे जितने जतन कर ले, चाहे जितने आयोग बना ले, क्रिकेटर जानते हैं कि इसका अंतिम नतीजा कुछ सालों के प्रतिबंध के अलावा कुछ नही हो सकता, प्रतिबंध के पहले अपनी जेब और बैंक बैलेंस बढ़ाने में किस बात की शर्म? लॉर्ड्स टेस्ट में पाकिस्तानी क्रिकेटरों ने 'नो बॉल' के फेंकने के बदले 'स्पॉट फिक्सिंग' की और सट्टेबाज से पैसे लिए. सट्टेबाज को गिरफ्तार कर लिया गया है और पाक क्रिकेटरों से पूछताछ जारी है.
क्रिकेट को सही मायने में चाहने वालों का इस खेल पर से भरोसा तो दस साल पहले ही उठ गया था. आज वे किसी भी मैच को देखने के बजाय सिर्फ इसमें रुचि रखते हैं कि किसने किसको हराया. यह जानने की कोशिश भी नहीं होती कि कितने रन बने और कितने विकेट गिरे. जब आपका किसी चीज पर से विश्वास उठ गया हो तो फिर कुछ रह ही नहीं जाता. क्रिकेट अपना भरोसा कभी वापस पा पाएगा, इसमें शक है.
पाकिस्तानी क्रिकेटरों के सट्टेबाजी में लिप्त होने की खबर से दुनिया का क्रिकेट बंद नहीं हो जाएगा. यूं भी क्रिकेट के तीनों प्रारुपों की अधिकता की वजह से इसका रोमांच तो कभी का लुप्त हो चुका था. आईसीसी और दुनिया के क्रिकेट बोर्डो के लिए क्रिकेटर पैसा उगलने वाली 'एटीएम' मशीन बन चुके हैं.
क्रिकेट खिलाड़ी भले ही क्रिकेट की अधिकता का रोना रोएं लेकिन भीतर से वे भी खुश रहते हैं कि वे मैच फीस के अलावा विज्ञापन की दुनिया में अपने चेहरे को दिखाकर करोड़ों रुपए कमा रहे हैं ताकि उनकी आने वाली नस्ल उन्हें कोसे नहीं. यूं भी आजकल के क्रिकेटर इतने समझदार हो गए हैं कि वे अन्य व्यवसायों में अपना पैसा निवेश कर रहे हैं ताकि रिटायरमेंट के बाद भविष्य की चिंता न हो.
क्रिकेट मैचों को 'फिक्सिंग' के भूत से कब निजात मिलेगी, यह कहना मुश्किल है. जब तक दुनिया की किसी भी टीम में सचिन तेंडुलकर जैसे सभी 11 खिलाड़ी ईमानदार नहीं होंगे, तब तक क्रिकेट मैचों पर भरोसा करना मुश्किल होगा.
रिपोर्टः सीमान्त सुवीर (सौजन्यः वेबदुनिया)
संपादनः ए कुमार