प्रियंका-राहुल रोड शो, किसकी बढ़ीं उम्मीदें, किसकी बेचैनी?
११ फ़रवरी २०१९कार्यकर्ताओं की भीड़ देखकर रथ पर सवार नेता भाव-विभोर थे, तो सड़क पर गांधी भाई बहन की राह देख रहे कार्यकर्ता उत्साह से लबरेज. काफी दूर तक ये नेता सिर्फ हाथ हिलाकर ही लोगों का अभिवादन करते रहे लेकिन बर्लिंग्टन चौराहे के पास जब बिजली के तारों ने काफिले को आगे बढ़ने से रोक दिया तो राहुल गांधी ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करना शुरू किया.
कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता तो ‘चौकीदार चोर है' के नारे रास्ते भर लगा ही रहे थे लेकिन जब राहुल गांधी ने अपने संबोधन की शुरुआत इसी नारे से की तो लोग हैरान रह गए. राहुल गांधी ने सीधे तौर पर और बेहद आक्रामक अंदाज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला किया. उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राफेल मामले में आम आदमी का पैसा हड़प कर अपने दोस्त अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाया है.”
उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रियंका गांधी को यूपी भेजने का मक़सद ये है कि हम 2022 में यहां अपनी सरकार देखना चाहते हैं. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि इससे 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की गंभीरता कम नहीं हो जाती है. साढ़े बारह बजे से शुरू हुआ ये रोड शो शाम को पांच बजे पार्क रोड स्थित कांग्रेस पार्टी के दफ़्तर पर ख़त्म हुआ और फिर पार्टी दफ्तर पहुंचकर राहुल गांधी ने कार्यकर्ताओं को संबोधित किया.
दिलचस्प बात ये है कि इस दौरान प्रियंका गांधी वैसी ही मूकदर्शक बनकर सिर्फ कार्यकर्ताओं को हाथ हिलाकर या फिर उनसे हाथ मिलाकर उनका अभिवादन करती रहीं, लेकिन बोलीं कुछ नहीं. अगले चार दिन पूर्वी उत्तर प्रदेश के तहत आने वाली 42 लोकसभा सीटों के नेता और कार्यकर्ता उनसे मिलेंगे और पार्टी की रणनीति पर चर्चा करेंगे. समझा जा रहा है कि 14 फरवरी के बाद ही कांग्रेस पार्टी पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी की रैलियां और कार्यक्रम तय करेगी.
राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ पश्चिमी यूपी के प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर, पीएल पुनिया, अनु टंडन, आरपीएन सिंह समेत कई नेता उस गाड़ी पर मौजूद थे जिस पर सवार होकर रोड शो निकाला जा रहा था.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी पिछले क़रीब तीस साल से सत्ता में नहीं है और इस समय लोकसभा में उसके सिर्फ़ दो सदस्य और विधान सभा में महज सात सदस्य हैं. बावजूद इसके पार्टी कार्यकर्ता प्रियंका गांधी से काफी उम्मीद लगाए हुए हैं. इसकी वजह बताते हुए फतेहपुर से आए एक कार्यकर्ता राकेश पटेल का कहना था, "युवा हैं, मृदुभाषी हैं और अच्छी संगठनकर्ता समझी जाती हैं, इसलिए लोगों को उनसे बहुत उम्मीद है.”
वरिष्ठ पत्रकार राधे कृष्ण कहते हैं कि प्रियंका के सामने सबसे बड़ी चुनौती यूपी में "आठ प्रतिशत वोट को 38 प्रतिशत" तक बढ़ाना है और जिस तरह से चुनाव में त्रिकोणात्मक संघर्ष होने की उम्मीद है, उससे ये काम आसान नहीं लगता. वहीं पार्टी के एक बड़े नेता का कहना था, "विपक्षी दलों, खासकर बीजेपी के नेताओं के बयान और प्रियंका के लखनऊ पहुंचने से पहले ही मीडिया में इन खबरों का आना कि गठबंधन कांग्रेस पार्टी से समझौते के मूड में है, प्रियंका की यूपी में राजनीतिक एंट्री की अहमियत को खुद-ब-खुद बयां कर देती है. अभी तक कांग्रेस पार्टी की कमजोरी ही यही थी कि वह बैसाखी की तलाश में रहती थी. अब पार्टी अपने दम पर लड़ेगी और बेहतर परफॉर्म करेगी.”
प्रियंका गांधी अब तक सिर्फ अमेठी और रायबरेली में ही पार्टी के लिए प्रचार करती रही हैं. इन दोनों जगहों पर उनके भाई राहुल गांधी और मां सोनिया गांधी चुनाव लड़ती रही हैं. अमेठी और रायबरेली के कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी की नेतृत्व क्षमता और संगठन क्षमता के कायल हैं और उन्हें पूरा भरोसा है कि वो ऐसा ही संगठन पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में खड़ा करने में कामयाब होंगी.
ऐसा पहली बार हुआ है कि पार्टी ने प्रियंका गांधी को जिम्मेदारी सौंपी है. जाहिर है, इस जिम्मेदारी में चुनौतियां भी हैं और रास्ते में कांटे भी हैं. कांग्रेस पार्टी के बिना समाजवादी पार्टी और बसपा का गठबंधन बनाए जाने के बाद कांग्रेस ने पूरे प्रांत में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की है. पार्टी के एक बड़े नेता नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, "पार्टी ने इतना बड़ा दांव खेला है तो उसके पीछे एक बड़ी रणनीति है. लोकसभा चुनाव में गठबंधन में उसे 15-20 सीटें ही मिल रही थीं जबकि इतनी सीटों पर वो त्रिकोणात्मक संघर्ष में आसानी से जीत सकती है. सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि हमारा संगठन मजबूत हो जाएगा जो 2022 के विधान सभा चुनाव में फायदा पहुंचाएगा.”
कांग्रेस का रोड शो जब हजरत गंज चौराहे से आगे बढ़कर वीवीआईपी गेस्ट हाउस होते हुए पार्टी कार्यालय की ओर बढ़ रहा था, वहीं एक युवा पत्रकार किसी वरिष्ठ पत्रकार से पूछ रहे थे, "क्या लखनऊ में इससे पहले कांग्रेसियों की इतनी भीड़ दिखी है?” वरिष्ठ पत्रकार का जवाब था, "ये आपके लिए आश्चर्य की बात है लेकिन हमने तो वो दौर भी देखा है जब सिर्फ कांग्रेस पार्टी की ही रैलियों और सभाओं में भीड़ होती थी, विधानसभा और लोकसभा में कांग्रेसी सदस्य ही बहुतायत में होते थे.”
अपनी बात खत्म करते हुए वरिष्ठ पत्रकार ने ‘लेकिन' शब्द के साथ जो सवाल खड़ा किया, उसे उत्तर प्रदेश में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के अलावा लगभग हर व्यक्ति पूछ रहा है, "कांग्रेस पार्टी इस भीड़ को क्या वोट में बदल पाएगी?”